केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शुक्रवार को बिहार के पुनौरा धाम पहुंचे. यहां उन्होंने माता सीता मंदिर के निर्माण के लिए भूमिपूजन किया. देवी सीता, जो श्रीराम की पत्नी हैं, उन्हें पौराणिक कथाओं में लक्ष्मी का अवतार, जगत की माता और आदिशक्ति कहा गया है. पुनौरा धाम, बिहार के सीतामढ़ी में है और पौराणिक आधार पर इसकी काफी मान्यता रही है. देवी सीता के जन्म स्थान के तौर पर तो इसकी मान्यता है ही, इसके अलावा यह ऋषि पुंडरीक की तपस्थली भी रही है.
पौराणिक काल में यह क्षेत्र राजा जनक के मिथिला का बाहरी ग्रामीण इलाका भी था. मिथिला के राजाओं द्वारा पूजित भगवान परशुराम भी जब भी इस नगर में आते थे तो इसी स्थान पर रुकते थे, क्योंकि यह जनस्थान नहीं था. भगवान परशुराम ने सारी पृथ्वी जीतकर अपने गुरु शिवजी को दान कर दी थी, इसलिए वह धरती पर कहीं भी एक स्थान पर नहीं रह सकते थे और नगर में रुक भी नहीं सकते थे. इसलिए वह पुंडरीक आश्रम के बाहर ही रुकते थे.
जब मिथिला में पड़ा था 12 वर्ष का अकाल
आज पुनौराधाम जिस जगह पर स्थित है, वह जिला सीतामढ़ी है. यह नाम भी पौराणिक घटनाओं और किवदंतियों से ही निकला हुआ है. इसका नाम अलग-अलग समय पर बदलकर आज सीतामढ़ी हुआ है. यह घटना तो सभी को पता है कि जब मिथिला में 12 वर्ष का भीषण अकाल पड़ा था, तब राजा जनक ने महान यज्ञ का अनुष्ठान किया. इस अनुष्ठान के तहत ही उन्हें और महारानी को खुद जाकर बंजर-पथरीली भूमि को हल से जोतना था.
राजा-रानी (राजा जनक और सुनैना) इन्हीं पुंडरीक ऋषि के आश्रम की सीमा से बाहर मौजूद बंजर भूमि को जोतने पहुंचे थे. यहीं पर हल की नोंक (जिसे सीता कहा जाता है) उससे टकराकर एक पिटारी बाहर निकल आई. इस पिटारी में ही देवी सीता नवजात अवस्था में थीं. नवजात शिशु को जैसी ही महारानी सुनैना ने हृदय से लगाया तैसे ही आकाश बादलों से घिर आया. एक तरफ उनकी छाती मातृत्व के पयोधर (मां के दूध) से भींग गई तो दूसरी तरफ प्यासी तप्त धरती को वर्षा ने अपार सुख दिया.

एक मड़ई में रखी गई थीं नवजात सीता
अचानक आई बारिश से नवजात को भीगने से बचाने के महाराज जनक ने उसी बारिश में अस्थायी झोपड़ी बनाने का आदेश दिया. गांव में आज भी अरहर-चने की सूखी डंडियों, खर-पतवार के अलावा कुशा-मूंज की बेंतों और लहराती पत्तियों को इकट्ठा कर अस्थायी झोपड़ी बनाई जाती है. बिहार में इसे मड़ई कहते हैं. इसे बस इकट्ठा करके बांस के आधार पर छाजन की तरह डालकर फंसा देते हैं.
कैसे बना पुनौरा धाम? जानिए महत्व
राजा के आदेश पर तुरंत ही ऐसी ही मड़ई बनाकर तैयार कर दी गई और भींगती हुई सीताजी को लेकर माता सुनैना उसमें बैठ गईं. यहां उन्होंने उनको स्तनपान कराया और वर्षा से उनकी रक्षा हुई. सीता जी के लिए बनी मड़ई के कारण यह स्थान सीतामड़ई कहलाने लगा. चूंकि देवी सीता यहां भूमि से उत्पन्न हुई थीं, इसलिए इसका नाम सीतामही भी रहा. मही का अर्थ पृथ्वी होता है. बदलते-बदलते यह नाम सीतामठी भी रहा, लेकिन बहुत प्रचलित नहीं रहा और लोक की भाषा में सीतामड़ई अधिक प्रयोग में रहा तो इसका नाम धीरे-धीरे सीतामढ़ी हो गया. पुंडरीक ऋषि का आश्रम स्थल ही बाद में पुनौरा धाम भी कहलाया.
सीता जी का असली जन्मस्थान कौन सा है और कहां रहा है? इस प्रश्न पर भी कई विवादित चर्चाएं होती रही हैं. नेपाल में जनकपुर नाम से एक स्थान है और वहां जानकी महल नाम से एक भव्य मंदिर भी बना हुआ है. इसे जनकजी का प्राचीन राजमहल भी कहते हैं. नेपाल सरकार की टूरिज्म वेबसाइट पर जनकपुरी को खुले तौर पर जानकी यानी सीता की जन्मभूमि बताया गया है. साइट पर जिक्र है कि आज से लगभग 12 हजार साल पहले जनकपुर मिथिला की राजधानी हुआ करता, जिसके शासक जनक थे. यहीं पर सीता उन्हें खेत जोतने के दौरान मिली थीं.
क्या है नेपाल का दावा?
नेपाल के इस दावे पर विद्वानों के अलग-अलग मत हैं, लेकिन इस बात पर सभी एकराय हैं कि बिहार का नेपाल की सीमा से लगता हिस्सा और सीतामढ़ी का पूरा क्षेत्र, इसके आगे सहरसा से पूर्णिया तक, मुजफ्फरपुर, दरभंगा और चंपारण-मधुबनी तक का क्षेत्र मैथिल भाषी है और यही मिथिला नगरी का इलाका भी रहा होगा. महाभारत में यही अंग प्रदेश कहलाया, जो कर्ण के अधिकार में रहा. इसलिए ऐसा हो सकता है कि महाराज जनक का महल आज के जनकपुर में रहा हो और सीता समेत उनकी सभी राजकुमारियों का बचपन वहां बीता हो, लेकिन सीता के जन्मस्थान के तौर सीतामढ़ी का दावा अधिक मिलता है.

पुनौराधाम में कई तीर्थ स्थल
यहां के कई तीर्थस्थल भी इस दावे की पुष्टि करते हैं कि सीता जी का जन्म जिस भूमि से हुआ, वह सीतामढ़ी के पास ही कहीं रहा होगा. संत देवरहा बाबा ने भी अपने जीवनकाल में इस स्थान को देवी सीता के उत्पत्ति स्थल के तौर पर चिह्नित किया था. यहां पर जानकी कुंड नाम से एक प्राचीन तालाब है. जिस स्थान पर राजा जनक ने इंद्र प्रसन्ना यज्ञ कराया था, वहां उर्वीजा कुंड नाम से तालाब मंदिर है. उर्वीजा देवी सीता का ही नाम है.
यहां से डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर हलेश्वरनाथ शिवधाम है. मान्यता है कि खेत जोतने से पहले राजा जनक ने यहां हलपूजन किया था और इसी स्थान पर शिवजी ने उन्हें हल चलाने का सुझाव भी दिया था. सीतामढी से 8 किलोमीटर उत्तर-पूरब में बहुत पुराना पाकड़ का एक पेड़ है, जिसे रामायण कालीन माना जाता है. कहते हैं कि विदा होकर अयोध्या जा रही देवी सीता की पालकी कुछ देर यहां रुकी थी. यह पाकड़ तब जनकपुर की सीमा पर था. सीता ने यहां भूमि पूजन कर एक बार और अपने मायके को निहारा था. बिहार में यह किवदंतियां स्त्रियों के पास उनकी विरासत के तौर पर पीढ़ी दर पीढ़ी मौजूद हैं. इन्हें सुनाकर वह जब-तब विभोर हो जाया करती हैं. जनकपुरी इस स्थान से लगभग 40 किमी दूर है. जो आज नेपाल का इलाका लगता है. ऐसे में वहां महल का होना और नगर के बाहर भूमि को जोतने वाला स्थल होने की मान्यता होना कोई बड़ी बात नहीं है.
सीता जी के पिता जनक का असली नाम क्या था?
यहां यह भी बताना जरूरी है कि सीता के पिता जनक का असली नाम जनक नहीं है. पद्म पुराण में उन्हें सीरध्वज कहा गया है. उनके पिता हर्षरोमा थे. असल में राजा सीरध्वज जनक के एक पूर्वज थे निमि. किसी श्राप के कारण असमय ही उनकी मृत्यु हो गई थी. निमि महाराज का कोई पुत्र नहीं था, तब ऋषियों ने उनके शरीर को मथ कर एक नए पुरुष को उत्पन्न किया. चूंकि उनका जन्म दूसरी देह से हुआ था इसलिए वह उत्पन्न पुरुष विदेह कहलाया. इस तरह इस कुल का हर राजा विदेहराज और विदेह जनक भी कहलाने लगा. मथने से उत्पन्न होने के कारण उस नए उत्पन्न पुरुष का नाम मिथि पड़ा और उन्हीं के नाम पर मिथिला राजधानी की स्थापना हुई.
इन्हीं मिथि के पुत्र हुए जनक, जिन्होंने प्रजा का पालन अपनी संतान की तरह किया और तबसे प्रजा ने मिथिला के हर राजा को जनक कहना शुरू कर दिया. यानी असली वास्तविक जनक, मिथि के ही पुत्र थे. इसके बाद अगले राजा बने महारोमा, जिन्हें जनक रोमा कहा गया और उनके पुत्र स्वर्णरोमा ने भी अपने कुल की मर्यादा का पूरा ध्यान रखा. उनके बाद महाराज हर्षरोमा मिथिला के राजा हुए. उनके दो पुत्र हुए सीरध्वज और कुशध्वज. यही सीरध्वज, विदेहराज सीरध्वज जनक कहलाए. इन्हें ही सीता और उर्मिला के पिता होने का पुण्य प्राप्त हुआ. मांडवी और श्रुतकीर्ति उनके छोटे भाई कुशध्वज की पुत्रियां थीं.

मधुबनी पेंटिंग में रची-बसी है सीता जी की कहानी
मधुबनी की विख्यात मधुबनी पेंटिंग में सीता मुख्य चित्र आकृति हैं. इस पेंटिंग में उनके जीवन के तमाम पहलुओं को उकेरा गया है. हल चलाते राजा जनक को सीता का मिलना, देवी गार्गी से शिक्षा प्राप्त करना. अष्टावक्र ऋषि का आशीर्वाद मिलना. वनफूल चुनतीं सीता, शिव पूजन करती सीता, सखियों संग झूला झूलतीं सीता, सीता विवाह, राम-सीता सप्तपदी, गौरी पूजन, स्वयंवर ऐसे तमाम प्रकरण और प्रसंग हैं जिन्हें मधुबनी पेंटिंग में जगह मिली है.
आज भी बिहार से लेकर बंगाल और पूर्वी उत्तर प्रदेश में विवाह के दौरान, जो मंडप, तेल , माटी-मिथौरी और कोहबर जैसी परंपराएं हैं, वह सब सीताजी के जीवन से प्रेरित हैं. कोहबर में तो देवी सीता के ही प्रतीकात्मक चित्र बनाए जाते हैं और शुभ कार्यों में गाए जाने वाले मंगलगीत भी देवी सीता को समर्पित होते हैं. सीतामढ़ी में बनने वाला जानकीमंदिर इसी लोक परंपरा की विरासत बन सकता है.