'फॉर्म से बाहर नहीं हूं, बस रन नहीं बन रहे.'
यह वह लाइन है, जिस पर सूर्यकुमार यादव पिछले कुछ महीनों से बार-बार भरोसा जताते रहे हैं. मानो इसे ज़ोर से कहने से उनके पैरों के नीचे की ज़मीन स्थिर हो जाएगी. उन्होंने पहली बार यह बात सितंबर में एशिया कप की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कही थी, जब बातचीत का रुख पहले ही बदलने लगा था. इसके बाद उन्होंने धर्मशाला में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ तीसरे टी20I के बाद भी यही दोहराया. हर बार संदेश एक जैसा और थोड़ी राहत देने वाला था. मेहनत सही है, इरादा नहीं बदला है और रन अपने समय पर आ जाएंगे.
पहले सूर्या ने कहा, 'मैं नेट्स में बहुत अच्छी बल्लेबाज़ी कर रहा हूं. जो मेरे नियंत्रण में है, वह सब कर रहा हूं.' फिर उन्होंने कहा, 'जब रन आने होंगे, तो ज़रूर आएंगे. मैं फॉर्म से बाहर नहीं हूं, लेकिन रन नहीं बन रहे हैं.' आखिरकार रविवार को उनका लहजा और तीखा हो गया. जब उन्होंने कहा, 'मेरे 14 सैनिक फिलहाल मुझे कवर कर रहे हैं. उन्हें पता है, जिस दिन मैं फट पड़ा, क्या होगा.'
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यह बात आत्मविश्वास से भरी होनी चाहिए थी. लेकिन इसके बजाय यह बेचैन करने वाली लगी, क्योंकि आंकड़े अब बहुत तेज़ आवाज़ में बोलने लगे हैं.
सूर्या के टी20I आंकड़े चिंताजनक
सूर्यकुमार यादव के लिए यह टी20I साल बेहद बेरहम रहा है.
19 पारियां.
218 रन.
औसत 13.62.
एक भी अर्धशतक नहीं.
सर्वोच्च स्कोर 47 जो एशिया कप के दौरान, महीनों पहले आया था.
हालिया घरेलू सीरीज़ में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ, उन्होंने चार पारियों में सिर्फ 34 रन बनाए, जबकि भारत ने आराम से सीरीज़ जीत ली. टीम सहजता से आगे बढ़ती रही. कप्तान नहीं.
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पुराने आंकड़े भी अच्छे नहीं
चेतावनी के संकेत काफी समय से दिख रहे थे. पिछले नवंबर दक्षिण अफ्रीका दौरे पर उन्होंने तीन पारियों में सिर्फ 26 रन बनाए. वह दौरा उतना ही उनके प्रभावहीन प्रदर्शन के लिए याद किया गया, जितना नंबर तीन से हटकर तिलक वर्मा के लिए जगह छोड़ने के फैसले के लिए. जनवरी में इंग्लैंड के खिलाफ घरेलू सीरीज़ से भी कोई राहत नहीं मिली.
अक्टूबर में ऑस्ट्रेलिया में कुछ पारियों में हल्की-सी चमक दिखी. जहां स्ट्राइक रेट बेहतर था लेकिन वह जल्द ही फीकी पड़ गई. दक्षिण अफ्रीका सीरीज़ ने सिर्फ उसी पैटर्न की पुष्टि की, जो पहले से बन चुका था.
आखिर कहां चूक रहे हैं सूर्या
सूर्या पर अपेक्षाओं का अदृश्य बोझ भी है. कप्तान होने के नाते और पिछले एक दशक के भारत के सबसे चर्चित टी20 बल्लेबाज़ों में से एक होने के कारण, हर कम स्कोर ज़्यादा भारी पड़ता है. हालिया आउट होने के तरीके यह संकेत देते हैं कि शायद वह एक ही स्ट्रोक से वापसी का एलान करना चाहते हैं, बजाय इसके कि पारी को सांस लेने दें.
टीम के भीतर मौजूद लोग ज़ोर देकर कहते हैं कि मेहनत में कभी कमी नहीं आई. एशिया कप के दौरान वह घंटों नेट्स में रहे, बदलाव करते रहे, कोशिश करते रहे. तैयारी समस्या नहीं रही. आउटपुट रहा है.
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आम तौर पर, ऐसा प्रदर्शन चयन को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर देता. लेकिन सूर्यकुमार एक अलग श्रेणी में आते हैं. भारत जीत रहा है. दूसरे खिलाड़ी योगदान दे रहे हैं. उनके रन न बनने से अभी तक नतीजों पर असर नहीं पड़ा है. और इसी ने उन्हें समय दिया है.
गिल हुए बाहर तो उठे सवाल
बेचैनी तब और बढ़ गई, जब उपकप्तान शुभमन गिल को टी20 वर्ल्ड कप टीम से बाहर कर दिया गया. गिल का बाहर होना फॉर्म और संतुलन के आधार पर बताया गया. संदेश साफ था. सिर्फ प्रतिष्ठा या ज़ोरदार बयान सुरक्षा की गारंटी नहीं देते. प्रदर्शन ही अंतिम सच है.
हालांकि, इसमें कोई शक नहीं है कि सूर्यकुमार अब भी भारत के सबसे बड़े टी20 मैच विनर्स में से एक हैं. जसप्रीत बुमराह के बाद शायद दूसरे नंबर पर जो अकेले दम पर मैच मोड़ सकते हैं. वर्ल्ड कप से पहले सिर्फ एक टी20I सीरीज़ बची है. 21 से 31 जनवरी तक न्यूज़ीलैंड के खिलाफ. कोई भी चयन समिति इस दौर में उथल-पुथल नहीं चाहेगी. यह सूर्यकुमार के पास चीज़ें सुधारने की आखिरी खिड़की है.