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कहानी ओपनहाइमर की, वो वैज्ञानिक जिसने पहला परमाणु बम बनाया, फिर पछतावे और दर्द से खुद टूट गया...

भारत ने आतंकवाद के ख‍िलाफ जीरो टॉलरेंस का संदेश देते हुए पाकिस्तान पर ऑपरेशन सिंदूर चलाया और वहां के नौ आतंकी ठ‍िकाने ध्वस्त किए. इसके बाद से लगातार दोनों देशों के बीच युद्ध के हालात बन गए हैं. पूरी दुनिया दो न्यूक्लर पावर से लैस देशों की आपसी टकराहट को अच्छा नहीं मान रही हैं. परमाणु बम की धमकी देने वाले पाकिस्तान को एक बार ओपनहाइमर के जीवन से सबक लेना चाहिए. जान‍िए- ओपनहाइमर की कहानी...

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Robert Oppenheimer (file photo/India Today )
Robert Oppenheimer (file photo/India Today )

पाक‍िस्तान की ओर से लगातार आतंकवाद का दंश झेल रहे भारत के धैर्य को बरसों दुन‍िया ने देखा. अब जब भारत ने आतंकवाद के ख‍िलाफ जीरो टॉलरेंस का संदेश देते हुए पाकिस्तान पर ऑपरेशन सिंदूर चलाया और वहां के नौ आतंकी ठ‍िकाने ध्वस्त किए. इसके बाद से लगातार दोनों देशों के बीच युद्ध के हालात बन गए हैं. पूरी दुनिया दो न्यूक्लर पावर से लैस देशों की आपसी टकराहट को अच्छा नहीं मान रही हैं. परमाणु बम की धमकी देने वाले पाकिस्तान को एक बार ओपनहाइमर के जीवन से सबक लेना चाहिए. जान‍िए- ओपनहाइमर की कहानी...

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जुलाई 1945 की एक सुबह न्यू मैक्सिको के रेगिस्तान में एक चमकदार रोशनी ने आसमान को चीर दिया. यह था 'ट्रिनिटी टेस्ट', दुनिया का पहला परमाणु बम विस्फोट. इस ऐतिहासिक पल के पीछे थे जे. रॉबर्ट ओपनहाइमर, जिन्हें 'परमाणु बम का जनक' कहा जाता है. लेकिन इस वैज्ञानिक की कहानी सिर्फ विज्ञान की जीत की नहीं बल्कि अपार पछतावे, नैतिकता के सवालों और मानवता के प्रति जिम्मेदारी की है. 

एक ऐसा पल भी आया जब हिरोशिमा और नागासाकी की तबाही के बाद ओपनहाइमर ने कहा कि 'मेरे हाथ खून से सने हैं'. उनकी यह बात आज भी दुनिया को झकझोरती है. खासकर तब जब भारत और पाकिस्तान जैसे परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच तनाव की स्थ‍िति बढ़ी है. भारत ने आतंकवाद के ख‍िलाफ अपनी प्रत‍िक्र‍िया में भले ही इस बात का ध्यान रखा, लेकिन पाकिस्तान परमाणु बम की धमकी से बाज नहीं आता. मानवतावादी और शांति प्र‍िय मुल्क कभी इस तरह की धमकी नहीं देते. उन्हें पता होता है कि आख‍िर ओपनहाइमर को इतना क्यों पछताना पड़ा. 

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कौन हैं ओपनहाइमर 
22 अप्रैल, 1904 को न्यूयॉर्क में जन्मे जूलियस रॉबर्ट ओपनहाइमर एक असाधारण बुद्धिजीवी थे. हार्वर्ड से केमिस्ट्री में डिग्री, जर्मनी के गॉटिंगेन विश्वविद्यालय से भौतिकी में पीएचडी और क्वांटम मैकेनिक्स में महत्वपूर्ण योगदान द‍िया. सीधे शब्दों में कहा जाए तो उनमें बेजोड़ प्रतिभा थी. 

उपलब्ध जानकारी के अनुसार साल 1942 में जब द्वितीय विश्व युद्ध अपने चरम पर था. अमेरिका ने 'मैनहट्टन प्रोजेक्ट' शुरू किया. इस प्रोजेक्ट का मकसद था नाजियों से पहले परमाणु बम बना लेना. इस प्रोजेक्ट की कमान सौंपी गई वैज्ञान‍िक ओपनहाइमर को जिन्होंने न्यू मैक्सिको के लॉस एलामोस लैबोरेट्री में हजारों वैज्ञानिकों को एकजुट किया. 

Robert Oppenheimer during Trinity Test

फिर 16 जुलाई 1945 को ट्रिनिटी टेस्ट की सफलता ने इतिहास रच दिया. उस वक्त ओपनहाइमर के दिमाग में हिंदू धर्मग्रंथ भगवद गीता की पंक्तियां गूंजीं...उन्हें जैसे कोई कह रहा हो'अब मैं मृत्यु बन गया हूं, विश्व का संहारक'. यह पल उनके लिए विजय और भय का मिश्रण था. 

हिरोशिमा-नागासाकी के बाद का पछतावा... 

6 अगस्त 1945 को हिरोशिमा पर 'लिटिल बॉय' और 9 अगस्त को नागासाकी पर 'फैट मैन' परमाणु बम गिराए गए. इन हमलों में करीब 2 लाख लोग मारे गए, इनमें ज्यादातर आम नागरिक थे. जापान ने 15 अगस्त को आत्मसमर्पण कर दिया और यहां से द्वितीय विश्व युद्ध खत्म हुआ. बताते हैं कि शुरू में ओपनहाइमर ने इस जीत का जश्न मनाया. फिर नागासाकी की बमबारी जिसे उन्होंने सैन्य दृष्टिकोण से गैरजरूरी माना था, इस बमबारी ने उन्हें भीतर तक तोड़ दिया. 

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25 अक्टूबर, 1945 को ओपनहाइमर ने अमेर‍िका के राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन से मुलाकात की. थोड़ी ही देर चली इस मुलाकात में उन्होंने कहा, 'मिस्टर प्रेसिडेंट, मुझे लगता है मेरे हाथ खून से सने हैं' ट्रूमैन को यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने जवाब दिया, 'खून मेरे हाथों पर है, इसकी चिंता मुझे करने दो'. ट्रूमैन ने उन्हें 'रोता हुआ वैज्ञानिक' कहकर ऑफिस से निकाल दिया और कहा, 'इसे दोबारा यहां मत आने देना'.

परमाणु हथियारों के खिलाफ उठाई आवाज

हिरोशिमा और नागासाकी की तबाही ने ओपनहाइमर को पूरी तरह से बदल दिया था. वह परमाणु हथियारों के प्रसार के खिलाफ मुखर हो गए. 1947 में वे अमेरिकी परमाणु ऊर्जा आयोग (AEC) की जनरल एडवाइजरी कमेटी के चेयरमैन बने और अंतरराष्ट्रीय नियंत्रण की वकालत की. उन्होंने हाइड्रोजन बम के विकास का विरोध किया जो परमाणु बम से हजार गुना विनाशकारी था. उनकी यह नैतिकता उनके लिए मुसीबत बन गई. मैकार्थी युग में उनकी पुरानी कम्युनिस्ट सहानुभूति को आधार बनाकर 1954 में उनकी सिक्योरिटी क्लीयरेंस छीन ली गई. सच पूछ‍िए तो यह उनके करियर का अंत था. 1960 में ओपनहाइमर जापान भी गए लेकिन हिरोशिमा या नागासाकी नहीं जा सके.

ओपनहाइमर को समझना क्यों जरूरी 

आज जब भारत और पाकिस्तान दो परमाणु शक्ति संपन्न पड़ोसी देशों के बीच तनाव की स्थिति है, दुनिया के कई देश अपनी च‍िंता जता रहे हैं. दोनों देशों के पास सैकड़ों परमाणु हथियार हैं और दुनिया डरती है कि किसी गलतफहमी या संघर्ष से व‍िनाश की कोई कहानी न ल‍िखी जाए. भारत जहां इस लड़ाई को बहुत तार्क‍िक ढंग से लड़ रहा है, वहीं पाकिस्तान लगातार धमकी देने से बाज नहीं आता. भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के जरिये पाकिस्तान के टेरर कैंप को नष्ट किया, लेकिन नागर‍िकों को नुकसान नहीं पहुंचाया. पाकिस्तान को भी इस वक्त अतीत से बहुत कुछ सीखने की जरूरत है. 

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ओपनहाइमर ने 1946 में कहा था कि परमाणु बम ने भविष्य के युद्ध को असहनीय बना दिया है. वो मानते थे कि परमाणु हथियारों का नियंत्रण और पारदर्शिता ही मानवता को बचा सकती है. 

नहीं मांग सके माफी 
कहा जाता है कि ओपनहाइमर कभी भी औपचारिक रूप से परमाणु बम के लिए माफी नहीं मांग सके, लेकिन उनका जीवन पछतावे और सुधार की कोशिशों से भरा रहा. साल 1967 में गले के कैंसर से उनकी मृत्यु हो गई, लेकिन उनकी कहानी आज भी जीवित है. उनकी कहानी हमें सिखाती है कि विज्ञान की शक्ति जितनी रचनात्मक हो सकती है उतनी ही विनाशकारी भी. आज पूरी दुनिया इस बात से डरती है कि क्या हम उस हथियार को नियंत्रित कर पाएंगे, जिसे हमने ही बनाया?

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