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'हर समस्या की जड़ पुरुष...', जानें- पानी संकट पर ऐसा क्यों बोलीं एक्सपर्ट

इंडिया टुडे मुंबई कॉन्क्लेव 2025 में जल संकट पर चर्चा हुई जिसमें राजेंद्र सिंह ने भारत में पानी के सम्मान में कमी और सरकारों की नीतियों पर सवाल उठाए. किरण राव ने महाराष्ट्र की महिलाओं की जल संरक्षण में भूमिका को उजागर किया और पूनम मुत्तरेजा ने इसे जेंडर आधारित संकट बताया.

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पैनल चर्चा के दौरान राजेंद्र सिंह, किरण राव और पूनम मुत्तरेजा (Photo: India Today)
पैनल चर्चा के दौरान राजेंद्र सिंह, किरण राव और पूनम मुत्तरेजा (Photo: India Today)

इंडिया टुडे मुंबई कॉन्क्लेव 2025 में एक पैनल चर्चा के दौरान भारत में बढ़ते जल संकट और महाराष्ट्र में पानी बचाने में महिलाओं की अहम भूमिका पर चर्चा की गई. इस चर्चा में Water Man Of India के नाम से मशहूर राजेंद्र सिंह, फिल्ममेकर, पानी फाउंडेशन की को-फाउंडर किरण राव और पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर पूनम मुत्तरेजा ने हिस्सा लिया. इस दौरान राजेंद्र सिंह ने कहा कि भारत में पानी को लेकर सम्मान घटा है और इसी वजह से पानी की दिक्कत बढ़ती जा रही है.

वहीं, पूनम मुत्तरेजा ने पानी संकट को जेंडर आधारित संकट बताया और कहा कि अगर समाज का पुरुष बदलता है तो देश बदलेगा और पानी की किल्लत कम होगी.

राजेंद्र सिंह ने कहा कि कभी भारत में पानी को लेकर गहरा सम्मान था और लोग इसे टिकाऊ तरीके से मैनेज करते थे.

उन्होंने कहा, 'अंग्रेजों के आने के बाद हमारे पानी प्रबंधन को नुकसान पहुंचा और आजादी के बाद भी सरकारों ने स्थानीय विविधता का सम्मान नहीं किया और न ही समुदायों को सशक्त बनाया. भारत में कभी भी किसी राजा ने पानी का प्रबंधन नहीं किया बल्कि उनके लोगों ने वो काम किया. लेकिन आजादी के बाद की सभी सरकारों ने पानी को लेकर सामुदायिक जागरूकता पर कभी जोर नहीं दिया.'

पानी संरक्षण को लेकर देश की सरकारों पर राजेंद्र सिंह का निशाना

राजेंद्र सिंह का कहना था कि जो समुदाय अपने स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को समझते हैं, वे सूखी नदियों को फिर से बहाल करने और क्लाइमेट चेंज से निपटने में सफल रहे हैं.

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उन्होंने कहा, 'सरकारें मालिक बनकर बैठ गई हैं... पानी के नाम पर पैसा बांटती हैं और हर साल इतना पैसा बांटती हैं...हर घर नल...न जाने कितने स्कीम. घर में नल तो पहुंच गया है लेकिन उसमें पानी नहीं है. इन योजनाओं से समाज पानीदार नहीं हो सकता...अगर समाज को पानीदार बनना है तो अपने लोगों में विश्वास करना होगा, उन्हें आत्मनिर्भर बनाना होगा.'

पानी लाती हैं महिलाएं लेकिन नहीं मिलता क्रेडिट

पानी फाउंडेशन की संस्थापक किरण राव ने कहा कि महाराष्ट्र की महिलाएं, जिन्हें अक्सर ‘वॉटर वाइव्स’ (Water Wives) कहा जाता है, इस आत्मनिर्भरता की असली आधारशिला रही हैं.

उन्होंने कहा, 'पानी की समस्या बनी-बनाई समस्या है क्योंकि धरती के संसाधनों के साथ हमारा जुड़ाव टूट चुका है. हम अपने ही बारे में सोचते हैं, लेकिन हमें एक समुदाय की तरह सोचना होगा.'

किरण राव ने कहा कि पानी की समस्या होने की वजह से सबसे अधिक परेशानी महिलाओं को ही होती है. उन्होंने बताया, 'महिलाएं मीलों पैदल चलकर पानी लाती हैं, अपने परिवार, मवेशियों और खेतों के बारे में सोचती हैं, लेकिन उन्हें न तो पहचान मिलती है और न ही कोई मुआवजा.'

उन्होंने कहा कि जब महिलाओं को अवसर, शिक्षा और नेतृत्व की भूमिका दी जाएगी तो वो जल संरक्षण आंदोलनों की असली नेता बनकर उभर सकती हैं.

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'पानी का संकट जेंडर आधारित संकट है'

पैनल में शामिल पूनम मुत्तरेजा ने कहा कि पानी का संकट पर्यावरण और स्वास्थ्य संकट है लेकिन इससे बढ़कर यह एक जेंडर आधारित संकट है.

वो कहती हैं, 'महिलाएं सिर पर, अपने कंधों पर पानी का भारी बोझ ढोती हैं... बहुत सी महिलाओं को कमजोरी, पीठ दर्द की दिक्कत हो गई है. पानी की वजह से लड़कियां स्कूल नहीं जा पातीं. हर पांच में से एक लड़की पानी की वजह से स्कूल छोड़ रही है. महाराष्ट्र को सूखे जिलों में अधिकतर महिलाओं ने नसबंदी करा ली है क्योंकि पानी की किल्लत है, उन्हें और बच्चे नहीं चाहिए.'

'हर समस्या की जड़ पुरुष...'

सेशन के दौरान पूनम मुत्तरेजा ने सवाल किया कि महिलाएं पानी लाती हैं, घर संभालती हैं, बच्चों का पालन-पोषण करती हैं तो फिर पुरुष कहां हैं? वो क्या कर रहे हैं?

वो कहती हैं, 'समाधान हो सकता है... पुरुष ही पॉलिसी बनाते हैं और वो ही इस काम से मिसिंग हैं. अगर पुरुषों को पानी ढोना पड़ जाए तो आप कल्पना कीजिए कि क्या स्थिति होगी... बिल्कुल अलग. हमने नल से जल स्कीम शुरू कर दी... मैं कहूंगी कि हम एक स्कीम वाली सोसाइटी हैं लेकिन ये स्कीम केवल पाइप तक ही सीमित रह गया है. हर समस्या की जड़ कहीं न कहीं पुरुष हैं...देश बदलेगा जब देश के पुरुष बदलेंगे.' 

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