अटलांटिक महासागर की मुख्य समुद्री धारा (Ocean Current) जो यूरोप और कई महाद्वीपों को गर्म रखती है वो खत्म हो रही है. यानी ठंडी हो रही है. इसे आइसलैंड ने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बता दिया है. यह धारा अगर रुक गई तो पूरे यूरोप में फिर से हिमयुग आ सकता है. यानी चारों तरफ बर्फ ही बर्फ.
आइसलैंड के जलवायु मंत्री जोहान पाल जोहानसन ने कहा कि यह देश की अस्तित्व के लिए खतरा है. सरकार अब सबसे बुरे हालात के लिए योजना बना रही है. क्योंकि आइसलैंड एकदम नॉर्थ पोल पर ही है. सबसे बुरा असर उसे ही होगा.
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अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (AMOC) नाम की यह धारा गर्म पानी को उष्णकटिबंधीय क्षेत्र से आर्कटिक की ओर ले जाती है. इससे यूरोप के सर्दियां हल्की रहती हैं. लेकिन जलवायु परिवर्तन से आर्कटिक की बर्फ पिघल रही है. ग्रीनलैंड की बर्फीली चादर से ठंडा पानी समुद्र में बह रहा है.
वैज्ञानिक कहते हैं कि यह ठंडा पानी धारा को बाधित कर सकता है. अगर AMOC ढह गई, तो उत्तरी यूरोप में सर्दियों का तापमान बहुत गिर जाएगा. बर्फ और बर्फीले तूफान बढ़ जाएंगे. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह धारा पहले भी ढह चुकी है. लगभग 12,000 साल पहले आखिरी बर्फीले युग से पहले यही हुआ था.
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Iceland has declared threat to Atlantic Ocean current a national security risk, a potential collapse of which could trigger a modern-day ice age, with winter temperatures across Northern Europe plummeting to new cold extremes https://t.co/33MOWrq2aS pic.twitter.com/ZhPgbGpWze
— Reuters (@Reuters) November 12, 2025
मंत्री जोहानसन ने कहा कि यह हमारी राष्ट्रीय मजबूती और सुरक्षा के लिए सीधा खतरा है. यह पहली बार है जब किसी खास जलवायु घटना को राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सामने अस्तित्व का खतरा बताया गया. अब सभी मंत्रालय सतर्क हैं और जवाब तैयार कर रहे हैं. सरकार शोध, नीतियां और आपदा तैयारी पर काम कर रही है.
खतरों में ऊर्जा और भोजन सुरक्षा, बुनियादी ढांचा और अंतरराष्ट्रीय परिवहन शामिल हैं. जोहानसन ने कहा कि समुद्री बर्फ जहाजों को रोक सकती है. चरम मौसम कृषि और मछली पकड़ने को नुकसान पहुंचा सकता है, जो हमारी अर्थव्यवस्था और भोजन के लिए जरूरी हैं. आइसलैंड इंतजार नहीं कर सकता.

AMOC के ढहने का असर उत्तरी यूरोप से कहीं आगे जाएगा. अफ्रीका, भारत और दक्षिण अमेरिका के किसानों पर वर्षा पैटर्न बिगड़ सकती है. अंटार्कटिका में गर्मी तेज हो सकती है, जहां बर्फ पहले ही खतरे में है. वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि अगले कुछ दशकों में घटना पूरी हो जाएगी, क्योंकि वैश्विक तापमान बढ़ रहा है.
फिनलैंड के मौसम विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक एलेक्सी नुमेलिन ने कहा कि कब होगा, इस पर बहुत शोध हो रहा है. लेकिन समाज पर असर के बारे में कम जानकारी है. जर्मनी के पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट के स्टेफन राह्मस्टॉर्फ ने कहा कि विज्ञान तेजी से बदल रहा है. समय कम है, क्योंकि टिपिंग पॉइंट करीब आ रहा है.
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उत्तरी यूरोप के अन्य देश भी सतर्क हैं. आयरलैंड के मौसम विभाग ने प्रधानमंत्री और संसदीय समिति को जानकारी दी है. नॉर्वे का पर्यावरण मंत्रालय नया शोध कर रहा है. ब्रिटेन ने 81 मिलियन पाउंड से ज्यादा शोध के लिए दिए.

नॉर्डिक काउंसिल ने अक्टूबर में 60 विशेषज्ञों के साथ "नॉर्डिक टिपिंग वीक" कार्यशाला की. वे समाज पर असर की सिफारिशें तैयार कर रहे हैं. सोमवार को 30 से ज्यादा विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों ने पृथ्वी की बर्फ पिघलने पर चेतावनी दी.
आइसलैंड ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन बढ़ने और गर्मी तेज होने के बीच जोखिम नहीं ले रहा. सरकार जलवायु अनुकूलन योजनाओं में जोखिमों को शामिल कर रही है. विशेषज्ञ कहते हैं कि समाज को प्रभाव समझने के लिए ज्यादा शोध चाहिए. यह मुद्दा दिखाता है कि जलवायु परिवर्तन अब सिर्फ पर्यावरण नहीं, बल्कि सुरक्षा का सवाल है.