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हम भूल जाते हैं फिर भी जिंदगी में असर डालती हैं दिमाग में बसी यादें, इस लेटेस्ट रिसर्च में खुला राज 

ये स्टडी दिमाग की अनसुलझी पहेली को समझने में मील का पत्थर है.  ये रिसर्च हमें अपने व्यवहार को बेहतर समझने में मदद कर सकती है. ये यादों के रूप में जो बातें और स्थ‍ितियां दिमाग के किसी कोने में बस जाती हैं, वो कैसे इंसान की पर्सनैलिटी को बनाने में मदद करती हैं.

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How memory works
How memory works

सोच‍िए हम और आप जो बातें आप भूल चुके हैं, क्या वो भी हमारे फैसलों को कहीं से प्रभावित कर सकती हैं? हम कभी इतनी गहराई से सोचते भी कहां हैं, लेकिन वैज्ञानिकों ने न स‍िर्फ इस पर गहराई से सोचा, बल्क‍ि एक ऐसी खोज भी कर ली है. ये खोज दिमाग के रहस्यों की ऐसी ही परत खोलती है. आइए जानते हैं कैसे? 

हाल ही में नेचर जर्नल में छपी 2025 में हुई इस स्टडी में शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि भले ही हम कोई पुरानी बात याद न कर पाएं, फिर भी उसका असर हमारे रोजमर्रा के फैसलों पर पड़ता है. येल यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंटिस्ट निक टर्क-ब्राउन ने इस रिसर्च के बारे में कहा कि हम दिनभर पुरानी यादों में खोए नहीं रहते, लेकिन हमारा 95% दिमाग इन यादों को कहीं न कहीं दबाए रहता है. फिर वो यादें हर काम में नजर आती हैं. वो वर्कप्लेस हो या घर पर पेरेंट‍िंग, शॉप‍िंग या कोई भी काम हम करते हों, ये यादें हमेशा गाइड करती हैं. 

कैसे हुई ये खोज?

शोधकर्ताओं ने fMRI स्कैन की मदद से 60 लोगों के दिमाग का अध्ययन किया. इन लोगों को कुछ तस्वीरें और शब्द दिखाए गए जिन्हें बाद में वे भूल गए. लेकिन हैरानी की बात ये थी कि जब इन लोगों से कुछ फैसले लेने को कहा गया तो उनके दिमाग में उन्हीं भूली हुई यादों का असर साफ-साफ देखाने को मिला. इससे तय होता है कि ये यादें भले ही हर समय याद न रहें लेकिन ये हमारे व्यवहार को प्रभावित करती हैं. 

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कैसे असर डालती हैं यादें 

अगर रोजमर्रा की जिंदगी की बात करें तो मान लीजिए आप किसी दुकान में कुछ खरीदने गए. वहां आपको किसी खास चीज ने आपका ध्यान खींचा और आप उसे खरीद लेते हैं. ऐसे में हो सकता है कि ये फैसला किसी पुरानी भूली हुई याद से प्रभावित हो. आपने बचपन में भी वो चीज खाई हो या देखकर खाने की इच्छा आई हो मन में. 

इसी तरह शिक्षा और मार्केटिंग के क्षेत्र में कहा जा रहा है कि ये खोज स्कूलों में पढ़ाई के तरीकों तक को बदल सकती है. यहां तक कि मार्केटिंग कंपनियां भी इसका फायदा उठा सकती हैं क्योंकि ग्राहकों की पसंद को समझने में ये मददगार हो सकता है. भारत में जहां संस्कृति और परंपराएं बचपन से स‍िखाए जाते हैं, ऐसे में ये यादें हमारे पारिवारिक फैसलों जैसे शादी या त्योहारों के आयोजन को भी प्रभावित कर सकती हैं. 

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

मनोवैज्ञान‍िक डॉ विध‍ि एम प‍िलन‍िया कहती हैं कि ये स्टडी दिमाग की अनसुलझी पहेली को समझने में मील का पत्थर है.  ये रिसर्च हमें अपने व्यवहार को बेहतर समझने में मदद कर सकती है. ये यादों के रूप में जो बातें और स्थ‍ितियां दिमाग के किसी कोने में बस जाती हैं, वो कैसे इंसान की पर्सनैलिटी को बनाने में मदद करती हैं.गौरतलब है कि वैज्ञानिकों का कहना है कि इस खोज को अभी और गहराई से समझने के लिए बड़े पैमाने पर रिसर्च की ज़रूरत है. लेकिन इतना साफ है कि हमारा दिमाग एक रहस्यमयी खजाना है जो भूली हुई यादों को भी संजोकर रखता है. 

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