नवंबर का महीना चल रहा है. आम तौर पर इस समय कश्मीर में बर्फ की मोटी चादर बिछ जाती है. हिमालयी काले भालू (जिन्हें लोकल भाषा में हापुत कहते हैं) अपनी मांद में गहरी नींद (हाइबरनेशन) में सो जाते हैं. लेकिन इस बार कुछ अलग हो रहा है. बर्फ नहीं गिरी. जंगल में खाना कम हो गया. भालू भूखे-प्यासे इंसानी बस्तियों में घुस आए हैं.
कश्मीर के वन्यजीव विभाग के अधिकारियों के मुताबिक नवंबर महीने में ही करीब 50 भालुओं को पकड़ा है. पिछले कई सालों में एक महीने में इतने भालू कभी नहीं पकड़े गए. ये भालू गांवों में सेब के बागों में घुस रहे हैं. कूड़े के ढेर खंगाल रहे हैं. कई बार श्रीनगर शहर के बीचों-बीच डल झील के किनारे तक पहुंच जा रहे हैं.
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वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. इंतियाज अहमद लोन कहते हैं कि भालुओं का हाइबरनेशन का समय दिसंबर से मार्च तक होता है. इसके लिए उन्हें ठंड और बर्फ चाहिए. लेकिन पिछले कुछ सालों से तापमान सामान्य से ज्यादा रह रहा है. बर्फ देर से गिर रही है या बिल्कुल नहीं गिर रही. जंगल में जंगली फल, मेवे और कीड़े-मकोड़े कम हो गए हैं. ऐसे में भालू भूखे रहकर इंसानी इलाकों में खाना ढूंढने आ रहे हैं.
लोग कह रहे हैं कि इस बार दिसंबर शुरू हो गया, कड़ाके की ठंड तो पड़ रही है लेकिन न बर्फ गिर रही है, न बारिश हो रही. मौसम वैज्ञानिक भी मानते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से कश्मीर का मौसम तेजी से बदल रहा है.
जब भालू गांवों में आते हैं तो खतरा दोनों तरफ होता है...
अधिकारी बता रहे हैं कि कूड़े के खुले ढेर और सेब-अखरोट के बाग भालुओं को लुभाते हैं. एक बार उन्हें पता चल जाता है कि इंसानी इलाके में आसानी से खाना मिलता है, तो वे बार-बार आते हैं.
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वन्यजीव विभाग ने विशेष टीम बनाई है जो 24 घंटे अलर्ट पर है. भालुओं को पकड़कर दूर के जंगलों में छोड़ा जा रहा है. गांव वालों को जागरूक किया जा रहा है कि कूड़ा इधर-उधर न फेंकें. कुछ जगहों पर बिजली की फेंसिंग लगाई जा रही है.
श्रीनगर शहर में डल झील के किनारे बुलेवार्ड रोड पर, यहां तक कि कुछ रिहायशी इलाकों में भी भालुओं के दिखने की खबरें आ रही हैं. लोग डर गए हैं. एक स्थानीय निवासी गुलाम मोहम्मद कहते हैं कि पहले भालू सिर्फ जंगल में रहते थे. अब लगता है जंगल हमारे घरों तक आ गया है.
विशेषज्ञों की चेतावनी साफ है – अगर जलवायु परिवर्तन पर काबू नहीं पाया गया, बर्फबारी का पैटर्न नहीं सुधरा और हमने कूड़े का सही प्रबंधन नहीं किया, तो भालू और इंसान के बीच यह टकराव हर साल और बढ़ेगा.
कश्मीर की खूबसूरती हमेशा से बर्फ और जंगलों में रही है. लेकिन अब यही बर्फ कम हो रही है. जंगल हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रहा है. यह सिर्फ भालुओं की कहानी नहीं, आने वाले कल की चेतावनी है.