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Does God exist: क्या थी वो दलील जिसमें अटके जावेद अख्तर, मौलवी नदवी से बार-बार पूछा मतलब

नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में ईश्वर के अस्तित्व पर हुई जावेद अख्तर और मुफ्ती शमाइल नदवी की बहस सोशल मीडिया पर छा गई. बहस का सबसे चर्चित पल तब आया, जब ‘कंटिंजेंसी’ जैसे फिलॉसफिकल शब्द पर चर्चा अटक गई. जानिए कंटिंजेंसी, इनफाइनाइट रिग्रेस और नेसेसरी बीइंग क्या है.

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'क्या भगवान है' की बहस इस सवाल पर टिक गई थी कि आखिर कंटिंजेंसी क्या है?  (Photo: ITG)
'क्या भगवान है' की बहस इस सवाल पर टिक गई थी कि आखिर कंटिंजेंसी क्या है? (Photo: ITG)

नई दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में शनिवार को एक ऐसे मुद्दे पर बहस देखने को मिली, जिसने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया. सवाल बेहद पुराना था, लेकिन आज भी उतना ही प्रासंगिक है और वो सवाल है 'क्या ईश्वर का अस्तित्व है?' इस सवाल पर हुई अकादमिक बहस सिर्फ हॉल में बैठे लोगों तक सीमित नहीं रही, बल्कि सोशल मीडिया तक फैल गई और विश्वास, तर्क और दर्शन पर नई चर्चा छेड़ दी.

इस मंच पर आमने-सामने थे मशहूर गीतकार-लेखक जावेद अख्तर, जो अपने आपको नास्तिक कहते हैं. उनके सामने इस्लामिक स्कॉलर मुफ्ती शमाइल नदवी थे, जो ईश्वर के अस्तित्व के पक्ष में अपने तर्क रख रहे थे. करीब दो घंटे चली इस बहस को लल्लनटॉप के एडिटर सौरभ द्विवेदी ने मॉडरेट किया, जिन्होंने शुरुआत में ही साफ कर दिया कि ये कोई धर्म प्रचार या विरोध का मंच नहीं, बल्कि एक अकादमिक संवाद है.

दिलचस्प बात यह रही कि इस पूरी चर्चा का सबसे ज्यादा चर्चित पल किसी तीखे बयान, तंज या भावनात्मक अपील से नहीं आया. बल्कि बहस उस वक्त सोशल मीडिया पर छाई, जब बातचीत एक दार्शनिक शब्द पर आकर टिक गई और वो शब्द कंटिंजेंसी (Contingency) था. दरअसल, ये शब्द सुनकर जावेद अख्तर भी थोड़े कंफ्यूज नजर आए क्योंकि उन्हें ये समझ ही नहीं आया और उन्होंने मौलवी नदवी से इसके बारे में एक नहीं दो बार सवाल किया. ऐसे में ये शब्द लोगों के बीच जिज्ञासा का केंद्र भी रहा.

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अब सवाल ये है कि आखिर क्या है ये ‘कंटिंजेंसी’ और क्यों इस एक शब्द ने पूरी बहस की दिशा ही बदल दी? 

जब 'कंटिंजेंसी' शब्द पर आकर ठहर गई बहस
क्रॉस-एग्जामिनेशन के वक्त मुफ्ती शमाइल नदवी ने अपनी दलील रखते हुए अंग्रेजी के कुछ शब्दों का सहारा लिया. उन्होंने कंटिंजेंसी (Contingency), इनफिनिट रिग्रेस (Infinite Regress) और नेसेसरी बीइंग (Necessary Being) जैसे टर्म्स का इस्तेमाल किया. उस समय बहस पूरी तरह गंभीर मोड़ पर थी और बातचीत आम मुद्दों से आगे बढ़कर गहरे मुद्दों तक पहुंच चुकी थी.  

इसी बीच जावेद अख्तर ने बातचीत रोक दी. उन्होंने बिल्कुल साफ और ईमानदारी से कहा, 'देखिए मैं ईमानदारी से बात करूं तो मैं कंटिंजेंसी शब्द ठीक से समझता नहीं हूं (मुझे कंटिंजेंसी शब्द ठीक से समझ नहीं आता है). और अभी आपने जो अंग्रेजी के अल्फाज इस्तेमाल किए, वो भी मुझे थोड़े मुश्किल और कॉम्प्लिकेटेड लगे. आप जरा सिंपल जबान में सवाल पूछ सकते हैं?'

इसके बाद मुफ्ती शमाइल नदवी ने भी अपने तर्क को सरल शब्दों में समझाने की कोशिश की.  

मुफ्ती नदवी ने कैसे समझाई ‘कंटिंजेंसी’?

जावेद अख्तर के अनुरोध के बाद मुफ्ती शमाइल नदवी ने अपनी बात को बिल्कुल आसान और आम भाषा में समझाने की कोशिश की.

उन्होंने कहा, 'यूनिवर्स की हर चीज कंटिंजेंट होने का मतलब ये है कि वो अपने एक्जिस्टेंस में किसी के ऊपर डिपेंडेंट है. जो भी चीज डिपेंडेंट होगी वो चीज इंडिपेंडेंट नहीं हो सकती. तो उसका कोई ना कोई कॉज होगा. तो अब आप क्या समझते हैं कि ये इनफाइनाइट रिग्रेस है यानी कॉज पर कॉज..कॉज पर कॉज..कॉज पर कॉज और कभी कोई एंड यानी एंडलेसली चलता रहा क्योंकि अगर ऐसा होगा तो हम तो एक्जिस्टेंस में आते ही नहीं. लॉजिकली ये रिग्रेस तो पॉसिबल नहीं है. तो कहीं ना कहीं आपको रुकना पड़ेगा.' 

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साफ शब्दों में कहें तो मौलवी नदवी ने 'कंटिंजेंसी' का मतलब समझाते हुए कहा कि किसी भी चीज को अपने अस्तित्व के लिए किसी दूसरी चीज पर निर्भर होना पड़ता है.

जावेद अख्तर ने इस दलील पर सीधा सवाल उठाया. उन्होंने कहा, 'आप रुकते हैं खुदा पर? आप कहते हैं वो हमेशा से है. जब वक्त नहीं था, तब भी था. तो हम क्यों नहीं मान सकते कि यूनिवर्स या मल्टीवर्स हमेशा से हैं?' उन्होंने कहा कि अगर ईश्वर के लिए ‘हमेशा से होना’ स्वीकार किया जा सकता है, तो ब्रह्मांड के लिए क्यों नहीं.

उदाहरण से समझिए क्या होती है 'कंटिंजेंसी'
रोजमर्रा की जिंदगी से लिए एक उदाहरण से समझें तो सोचिए एक कुर्सी अपने आप नहीं बन जाती. उसे बनाने के लिए बढ़ई चाहिए, लकड़ी चाहिए और कुछ फिजिकल लॉज की भी जरूरत होती है. यानी कुर्सी का होना एक नहीं बल्कि दूसरी बहुत सी चीजों पर निर्भर करता है.

इसी तरह एक पेड़ को ही देख लीजिए. वो मिट्टी, पानी, हवा और धूप के बिना जिंदा नहीं रह सकता. अगर इनमें से कुछ भी न मिले, तो उसका अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाता है. ठीक वैसे ही इंसान भी अपने आप नहीं पैदा होता, बल्कि वह अपने माता-पिता पर निर्भर होता है. यानी हर चीज के पीछे कोई न कोई वजह होती है और यह वजहों की कड़ी आगे बढ़ती चली जाती है.

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अगर आप अपने आसपास नजर डालेंगे, तो पाएंगे कि लगभग हर चीज किसी न किसी सहारे पर टिकी हुई है. कुछ भी पूरी तरह अपने दम पर इस दुनिया में एक्जिस्ट नहीं करता है. फिलॉसफी में इसी निर्भर होने की स्थिति को ही कंटिंजेंसी कहा जाता है.

यहीं से एक बड़ा सवाल पैदा होता है क्या वजहों की ये कड़ी कभी खत्म ही नहीं होती, या फिर किसी न किसी जगह आकर इसे रुकना ही पड़ता है? यहीं पर आता है इनफाइनाइट रिग्रेस.

क्या होता है ‘इनफाइनाइट रिग्रेस’?
इस सवाल के जवाब से ही एक सवाल और पैदा होता है कि आखिर इनफाइनाइट रिग्रेस क्या होता है? तो बता दें कि किसी भी जीच की एक्जिस्टेंस का एक कॉज होता है, फिर उसका कॉज होता है, फिर उस कॉज का भी कॉज होता है.. और इसे ही इनफाइनाइट रिग्रेस ऑफ कॉजेज कहते हैं. यानी वजह के पीछे वजह और फिर उसके पीछे वजह वो भी बिना किसी शुरुआत के. ये बात सुनने में थोड़ी अजीब लग सकती है.

इसे और आसान शब्दों में समझें तो सोचिए, आप एयरपोर्ट पर एक ऐसी लाइन में खड़े हैं, जिसकी शुरुआत ही कहीं से नहीं होती. यानी लाइन हमेशा से चलती आ रही है और उसमें कोई पहला इंसान है ही नहीं. अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आप कभी काउंटर तक पहुंच पाएंगे? इसका जवाब साफ है, नहीं. क्योंकि जब लाइन की कोई शुरुआत ही नहीं है, तो आगे बढ़ने का सवाल ही नहीं उठता.

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यही बात वजहों की उस कड़ी पर भी लागू होती है, जो हर चीज के एक्जिस्टेंस की वजह है. अगर हर चीज के पीछे सिर्फ वजह ही वजह हो और कभी कोई शुरुआत न हो, तो आज हमारा अस्तित्व ही संभव नहीं होता. हमारा मौजूद होना ही इस बात का संकेत है कि वजहों की ये कड़ी कहीं न कहीं से शुरू हुई होगी और वो कड़ी भगवान (नेसेसरी बींग) है.

क्या होता है नेसेसरी बीइंग?
अब इस कहानी में एक नया शब्द आता है और वो नेसेसरी बीइंग है. इस दुनिया में वजूद यानी अस्तित्व दो तरह का होता है. पहला, वो जो किसी न किसी पर निर्भर होता है. जैसे इंसान अपने माता-पिता पर, पेड़ मिट्टी और पानी पर और बाकी चीजें किसी वजह पर टिकी होती हैं. ऐसे अस्तित्व को फिलॉसफी में कंटिंजेंट एग्जिस्टेंस कहा जाता है.

दूसरा वजूद वह होता है, जो किसी पर भी निर्भर नहीं होता. जिसका होना किसी वजह या सहारे पर टिका नहीं होता, बल्कि वह अपने आप में मौजूद होता है. उसका अस्तित्व उसकी अपने से ही होता है. मुफ्ती नदवी ने कहा कि वजहों की जो लंबी जंजीर हम अपने आसपास देखते हैं, वह कहीं न कहीं जाकर रुकती है. वो रुकावट उसी सत्ता पर होती है, जो खुद किसी पर निर्भर नहीं है. फिलॉसफी मानती है कि वो सत्ता समय, जगह और फिजिकल चीजों की सीमाओं से बाहर होती है. उसी सत्ता को नेसेसरी बीइंग कहा जाता है, जिसे हम ईश्वर के नाम से जानते हैं.

सदियों पहले लाइबनिज ने दिया था जवाब
इस पूरी बहस की नींव एक बहुत पुराने लेकिन अहम सवाल पर टिकी है. सवाल ये था कि अगर दुनिया की हर चीज के होने की कोई वजह मानी जाती है, तो फिर भगवान के होने की वजह क्यों नहीं पूछी जाती? और अगर ये कहा जाता है कि भगवान को किसी वजह की जरूरत नहीं है, तो फिर यह सवाल भी उठता है कि यूनिवर्स और बाकी चीजों को ही वजह क्यों चाहिए?  

इस सवाल का जवाब देते हुए जर्मन फिलॉसफर गॉटफ्रिड लाइबनिज ने सदियों पहले चीजों को समझने का एक आसान तरीका बताया था. उन्होंने कहा कि इस यूनिवर्स में मौजूद हर चीज को दो हिस्सों में बांटा जा सकता है.

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पहली कैटेगरी में वे चीजें आती हैं, जो अपने आप मौजूद होती हैं (नेसेसरिली एक्जिस्ट करती हैं). यानी उनका होना किसी वजह पर निर्भर नहीं होता. उनका अस्तित्व उनके अपने स्वभाव से जुड़ा होता है. ऐसी चीजों के बारे में ये सोचा ही नहीं जा सकता कि वे कभी न हों.

दूसरी कैटेगरी में वे चीजें आती हैं, जो जरूरी नहीं हैं, बल्कि किसी वजह से मौजूद हैं (कंटिंजेंटली एक्जिस्ट). ऐसी चीजें अपने आप नहीं होतीं, बल्कि किसी कारण या हालात की वजह से अस्तित्व में आती हैं. अगर वह वजह न होती, तो वे चीजें भी नहीं होतीं.

लाइबनिज के मुताबिक यह पूरी दुनिया, यानी यूनिवर्स, उस श्रेणी में आती है जो अपने आप जरूरी नहीं होती. मतलब ये कि दुनिया का होना कोई मजबूरी नहीं थी. ये अपने आप नहीं बनी, बल्कि किसी वजह से अस्तित्व में आई है.

अब सवाल ये उठता है कि जब यह दुनिया अपने आप जरूरी नहीं है, तो फिर ये है क्यों? लाइबनिज कहते हैं कि जो चीज अपने आप जरूरी नहीं होती, उसके पीछे कोई ऐसी सत्ता होनी चाहिए, जो खुद जरूरी हो. यानी जो किसी पर निर्भर न हो और जिसका न होना मुमकिन ही न हो.

आसान शब्दों में समझें तो अगर ये दुनिया, इंसान या बाकी चीजें न भी होतीं, तो भी कोई हैरानी की बात नहीं होती. इसलिए इनके होने के पीछे किसी वजह का होना जरूरी माना जाता है. और जब हर चीज किसी वजह पर टिकी होती है, तो आखिर में वह वजह किसी ऐसी सत्ता पर जाकर रुकती है, जिसे खुद किसी वजह की जरूरत नहीं होती. फिलॉसफी में इसे नेसेसरी बीइंग और आम भाषा में ईश्वर कहा जाता है.

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