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'प्राण पखेरू उड़ जाना' कहां से आया ये मुहावरा... देवी भागवत पुराण में आता है जिक्र

एक पौराणिक तपस्वी किरदार त्रिशिरा के तीन मुखों से विभिन्न पक्षियों का जन्म हुआ, जो प्राणों के प्रतीक माने जाते हैं. इंद्र ने तपस्या भंग करने के लिए त्रिशिरा को वज्र से मारा, लेकिन उसके प्राण पक्षी बनकर आकाश में उड़ गए.

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देवी भागवत पुराण में देवराज इंद्र द्वारा त्रिशिरा के वध की कथा मौजूद है
देवी भागवत पुराण में देवराज इंद्र द्वारा त्रिशिरा के वध की कथा मौजूद है

जब किसी की मृत्यु होती है तो अक्सर ही यह कहा जाता है 'प्राण पखेरु उड़ गए'. यहां पखेरू का अर्थ है पक्षी. प्राणों को हमेशा पक्षी की संज्ञा दी गई है. प्राण यानी जो एक ऊर्जा और चेतना है, जो किसी आकार रूप में नहीं है, लेकिन जब भी उसे एक आकृति के रूप में देखा जाता है तो उसकी कल्पना हमेशा एक पक्षी की तरह की गई है. यह पक्षी एक सफेद कबूतर जैसा हो सकता है. 

प्राण को पक्षी के रूप में बताया गया है क्यों?
अध्यात्म में इसे हंस कहा गया है. कबीर भी अपने एक निर्गुण पद में लिखते हैं 'उड़ जाएगा हंस अकेला' यहां हंस का अर्थ प्राण ही है. इसी तरह अरबी-फारसी की लोककथाओं में एक कहानी बहुत प्रसिद्ध है, जिसमें आता है कि एक जादूगर की जान तोते में बसती थी. यानी यहां तोता भी प्राण का प्रतीक है. 

सवाल है कि प्राण का प्रतीक कोई न कोई पक्षी ही क्यों है? इस प्रश्न का उत्तर देवी भागवत में शामिल एक कथा से मिलता है. देवी भागवत पुराण देवी दुर्गा के आदिशक्ति स्वरूप का विस्तार से वर्णन करता है, यह पुराण बताता है कि देवी की इच्छा से कैसे-कैसे सृष्टि का निर्माण और विकास हुआ है. इसी क्रम पक्षियों की उत्पत्ति कैसे हुई है इस कथा का भी जिक्र मिलता है.

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प्रजापति त्वष्टा की कथा
बात तबकी है जब ब्रह्ना के मानस पुत्र त्वष्टा प्रजापति के पद पर थे. त्वष्टा को सभी देवताओं में भी प्रधान माना गया है. त्वष्टा ही देवताओं के सभी कार्यों की व्यवस्था देखते थे और धरती पर यज्ञ-हवन आदि के नियम से पालन करवाले वाले भी वही थी. त्वष्टा को ब्राह्नणों और तपस्वियों में भी प्रमुख माना गया है. इन्हीं त्वष्टा का एक पुत्र था विश्वरूप. 

इस विश्वरूप के तीन सिर थे, जिसके कारण इसे त्रिशिरा कहा गया. त्रिशिरा अपने पिता से भी महान तपस्वी था. उसके तीन मुख अलग-अलग कार्य करते थे. एक मुख से वह वेदका पाठ करता था, दूसरे से मधुपान करता था और तीसरे मुख से वह सभी दिशाओं में देख सकता था. 

त्वष्टा का पुत्र त्रिशिरा करने लगा तपस्या
त्रिशिरा ने संयम और ब्रह्मचर्य को अपनाया था. फिर धीरे-धीरे वह भोग-विलास से पूरी तरह दूर हो गया और उसने कठिन तपस्या का मार्ग चुना. बिना कुछ पाने की इच्छा लिए और बिना किसी लोभ-लालसा के सिर्फ ज्ञान के लिए त्रिशिरा कठिन तप करने लगा. भयंकर गर्मी में वह पंचाग्नि में तपस्या करता और भयंकर जाड़े में जल में रहकर तप करने लगता. इस तरह उसने निराहार भी रहना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे इंद्रियां उसके वश में हो गईं. 

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त्रिशिरा के इस घोर तप के कारण इंद्र को दुख हुआ. उन्हें लगने लगा कि जरूर यह त्रिशिरा इंद्र पद पाने के लिए इतना कठिन तप कर रहा है. ऐसा सोचते हुए इंद्ग ने त्रिशिरा का तप भंग करने के लिए अपनी सर्वश्रेष्ठ अप्सराओं उर्वशी, मेनका, रंभा, घृताची को बुलाया और अपना उद्देश्य बताकर त्रिशिरा के पास भेजा. अप्सराओं ने कई माह तक नृत्य किया, लेकिन त्रिशिरा पर कोई असर नहीं पड़ा.अप्सराएं थककर इंद्रलोक लौट गईं. 

त्रिशिरा की तपस्या से विचलित हुए इंद्र
यह देखकर इंद्र बहुत विचलित हुए. कोई उपाय न देखकर वह खुद वहां गए जहां त्रिशिरा तप कर रहा था. इंद्र ने देखा कि त्रिशिरा के तप के प्रभाव से पूरा वन ही दिव्य आभा से चमक रहा है. त्रिशिरा को देखकर पहले तो इंद्र घबराए लेकिन फिर उन्होंने अपना वज्र प्रकट किया और त्रिशिरा पर चला दिया. तप करता हुआ त्रिशिरा वज्र के आघात से वहीं गिर पड़ा. इंद्र के ऐसा करते ही मुनियों में हाहाकर मच गया. उन्होंने इंद्र को पापी कहा और बोले कि इस पाप के दोष से इंद्र मुक्त नहीं हो सकेगा. 

इधर इंद्र त्रिशिरा की हत्या करने के बाद अपने भवन जाने को हुए, तभी उन्होंने देखा कि मृत्यु के बाद भी त्रिशिरा का तेज कम नहीं हुआ है. उसके सभी अंगों से वैसा ही प्रकाश फूट रहा है जैसा उसके तप करते समय निकल रहा था. यह देखकर इंद्र चिंता में पड़ गए और सोचने लगे कि कहीं ऐसा तो नहीं कि वज्र का आधात पूरी तरह फलदायी न हुआ हो, या फिर यह आघात के कारण सिर्फ बेहोश हुआ हो, लेकिन फिर जीवित हो जाए. ऐसा सोच-सोचकर जब इंद्र परेशान हो रहे थे, तभी इंद्र को सामने तक्षा नाम का एक दिव्य पुरुष दिखाई दिया. 

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इंद्र ने उससे कहा- तक्षा! तुम मेरे इस शत्रु को मार डालो. मुझे लगता है कि कहीं यह जीवित न हो जाए. 

इंद्र ने तक्षा को दिया यज्ञ में भाग
तब तक्षा बोले- एक पापकर्म तो आप पहले ही कर चुके हैं, लेकिन अब मुझे भी ऐसा करने को क्यों कह रहे हैं? इससे मेरा क्या लाभ होगा? तब इंद्र ने संकल्प लेकर तक्षा को यज्ञ में भाग देने का निश्चय किया. उसके लिए बलि भी निर्धारित की. इसके बाद कहा- तक्षा अब तुम यज्ञ भाग के अधिकारी हो गए हो. इसलिए अब मेरा काम कर दो. इसके मस्तकों को काटकर धड़ से अलग कर दो.

इंद्र की यह बात सुनकर लोभ में आए तक्षा ने अपनी कुल्हाड़ी से त्रिशिरा के मस्तकों को काटकर जमीन पर गिरा दिया. तीनों मुख के कटते ही हजारों पक्षियों का जन्म हो गया और वे सारे नभ में फैल गए. इस तरह त्रिशिरा के प्राण पक्षी बनकर उड़ने लगे. 

त्रिशिरा जिस मुख से मधु पीता था उस पहले मुख से गौरेया का समूह निकला. दूसरा मुख जिससे वह सभी दिशाओं में देख सकता था उससे तीतर पक्षी की उत्पत्ति हुई और जिस मुख से सोमरस पीकर वह वेदपाठ करता था, उससे कबूतरों का जन्म हुआ. 

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त्रिशिरा के प्राणों से हुई पक्षियों की उत्पत्ति
इस तरह त्रिशिरा के प्राण जो मृत्यु के बाद भी तप के प्रभाव में शरीर में भीतर फंसे हुए थे, वह पक्षी बनकर बाहर निकल गए और आकाश में फैल गए. इसके बाद आखिरकार त्रिशिरा की मृत्यु हो गई और वह स्वर्ग सिधार गया.

इस तरह त्रिशिरा की मृत्यु के बाद प्राण पक्षी बनकर उड़े इसलिए मुहावरा बना 'प्राण पखेरू उड़ना' इंद्र को ब्रह्महत्या का पाप लगा और फिर देवी भगवती ने अपने प्रभाव से स्वर्ग की रक्षा की. 

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