रंगों के त्योहार होली की तैयारियां शुरू हो गई हैं. शास्त्रों में फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर होलिका दहन तक की अवधि को होलाष्टक कहा जाता है. ज्योतिष शास्त्र में होली से आठ दिन पूर्व शुभ कार्यों के करने की मनाही होती है. होली से पूर्व के इन आठ दिनों को होलाष्टक कहा जाता है. इस साल होलाष्टक 03 मार्च यानी आज से शुरू हो रहा है जो कि होलिका दहन (09 मार्च ) के दिन तक रहेगा.
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मान्यता है कि होलाष्टक की शुरुआत वाले दिन ही शिव जी ने कामदेव को भस्म कर दिया था. इस काल में हर दिन अलग-अलग ग्रह उग्र रूप में होते हैं. इसलिए होलाष्टक में शुभ कार्य नहीं करते हैं लेकिन जन्म और मृत्यु के बाद किए जाने वाले कार्य कर सकते हैं. जानते हैं कि इन आठ दिनों में कौन से काम नहीं करने चाहिए.
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होलाष्टक के दौरान ना करें ये काम
होलाष्टक के 8 दिन किसी भी मांगलिक शुभ कार्य को करने के लिए शुभ नहीं होता है. इस दौरान शादी, भूमि पूजन, गृह प्रवेश, मांगलिक कार्य, कोई भी नया व्यवसाय या नया काम शुरू करने से बचना चाहिए.
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शास्त्रों के अनुसार, होलाष्टक शुरू होने के साथ ही 16 संस्कार जैसे नामकरण संस्कार, जनेऊ संस्कार, गृह प्रवेश, विवाह संस्कार जैसे शुभ कार्यों पर रोक लग जाती है.
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किसी भी प्रकार का हवन, यज्ञ कर्म भी इन दिनों में नहीं किया जाता है. इसके अलावा नवविवाहिताओं को इन दिनों में मायके में रहने की सलाह दी जाती है.
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होलाष्टक का महत्व
होलाष्टक की अवधि भक्ति की शक्ति का प्रभाव बताती है. इस अवधि में तप करना ही अच्छा रहता है. होलाष्टक शुरू होने पर एक पेड़ की शाखा काट कर उसे जमीन पर लगाते हैं. इसमें रंग-बिरंगे कपड़ों के टुकड़े बांध देते हैं. इसे भक्त प्रहलाद का प्रतीक माना जाता है.
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मान्यताओं के अनुसार, जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए एक पेड़ की शाखा
काट कर उसे जमीन पर लगाते हैं, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ
कार्य नहीं किया जाता है.
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होलाष्टक की पौराणिक मान्यता
मान्यता है कि होली के पहले के आठ दिनों यानी अष्टमी से लेकर पूर्णिमा तक विष्णु भक्त प्रहलाद को काफी यातनाएं दी गई थीं. प्रहलाद को फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी को ही हिरण्यकश्यप ने बंदी बना लिया था. प्रहलाद को जान से मारने के लिए तरह-तरह की यातनाएं दी गईं. लेकिन प्रह्लाद विष्णु भक्ति के कारण भयभीत नहीं हुए और विष्णु कृपा से हर बार बच गए.
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अपने भाई हिरण्यकश्यप की परेशानी देख उसकी बहन होलिका आईं. होलिका को
ब्रह्मा ने अग्नि से ना जलने का वरदान दिया था. यातनाओं से भरे उन आठ दिनों
को ही अशुभ मानने की परंपरा बन गई.
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भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर नृसिंह भगवान प्रकट हुए और प्रहलाद की रक्षा कर हिरण्यकश्यप का वध किया. तभी से भक्त पर आए इस संकट के कारण इन आठ दिनों को होलाष्टक के रूप में मनाया जाता है. होलाष्टक के दौरान शुभ कार्य वर्जित होते हैं.
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इसके साथ ही एक कथा यह भी है कि भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के कारण शिव ने कामदेव को फाल्गुन की अष्टमी पर ही भस्म किया था.
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होलाष्टक का वैज्ञानिक महत्व
मौसम के परिवर्तन के कारण मन अशांत, उदास और चंचल रहता है. ऐसे मन से किए हुए कार्यों के परिणाम शुभ नहीं हो सकते हैं. इस समय मन को आनंदित करने के कार्य किए जाना बेहतर होता है. इसीलिए जैसे ही होलाष्टक समाप्त होता है, रंग खेलकर हम आनंद में डूबने का प्रयास करते हैं.
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धार्मिक ग्रंथ और शास्त्रों के अनुसार होलाष्टक के दिनों में किए गए व्रत और किए गए दान से जीवन के कष्टों से मुक्ति मिलती है और ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है. इस दिन वस्त्र, अनाज और अपने इच्छानुसार धन का दान भी आप कर सकते हैं.
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ऐसे करें होलाष्टक के दिन की शुरुआत
होलाष्टक के दिनों में ही संवत और होलिका की प्रतीक लकड़ी या डंडे को गाड़ा जाता है. इस समय में अलग-अलग दिन अलग-अलग चीजों से होली खेली जाती है.
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पूरे समय में शिव जी या कृष्ण जी की उपासना की जाती है. होलाष्टक में प्रेम और आनंद के लिए किए गए सारे प्रयास सफल होते हैं.