टाटा संस के पूर्व चेयरमैन साइरस मिस्त्री की महाराष्ट्र के पालघर में सड़क हादसे में मौत हो गई. साइरस मिस्त्री उस समय कार से गुजरात के उदवाड़ा से मुंबई लौट रहे थे. गाड़ी में चार लोग सवार थे, जिनमें दो की मौत हो गई और दो घायल बताए जा रहे हैं. साइरस मिस्त्री के निधन के बाद उद्योग जगत में शोक की लहर है. साइरस मिस्त्री के शव का पोस्टमार्टम करने के बाद उनके शव को परिजनों को सौंप दिया गया है.
रिपोर्ट्स की मानें तो साइरस मिस्त्री के कुछ रिश्तेदार दूसरे देश से भारत आ रहे हैं, जिस वजह से अंतिम संस्कार सोमवार की जगह मंगलवार को किया जाएगा. रिपोर्ट्स की मानें तो मुंबई के वर्ली के विद्युत शवदाह गृह या डुंगरवाड़ी स्थित 'टावर ऑफ साइलेंस' में साइरस के शव का अंतिम संस्कार किया जा सकता है.
पारसी समुदाय के अंतिम संस्कार का तरीका बिल्कुल अलग
हजारों साल पहले पर्शिया (ईरान) से भारत आए पारसी समुदाय में शव के अंतिम संस्कार का तरीका काफी अलग है. पारसी समुदाय में न शव को हिंदू धर्म की तरह जलाया जाता है और ना ही इस्लाम और ईसाई धर्म की तरह दफनाया जाता है.
पारसी समुदाय में जब किसी की मौत हो जाती है तो शव को श्मशान या कब्रिस्तान नहीं ले जाया जाता है, बल्कि उनके शवों को आसमान के सुपुर्द करते हुए 'टावर ऑफ साइलेंस' के ऊपर रख दिया जाता है. जिसके बाद गिद्ध उन शव को आकर खा जाते हैं. गिद्धों का शवों को खाना भी पारसी समुदाय के रिवाज का ही एक हिस्सा है.
मुंबई में जोरास्ट्रियन स्टडीज इंस्टिट्यूट के एक्सपर्ट ने बताया कि पारसी समुदाय में शव का अंतिम संस्कार करने का तरीका दूसरे समुदायों से काफी अलग है. पारसी शव को सूरज की किरणों के सामने रख दिया जाता है, जिसके बाद शव को गिद्ध, चील और कौए खा लेते हैं. उन्होंने बताया कि पारसी धर्म में किसी शव को जलाना या दफनाना प्रकृति को गंदा करने जैसा माना जाता है.
मर चुके शरीर को अशुद्ध मानते हैं पारसी समुदाय के लोग
पारसी समाज में शव को खुले आसमान में छोड़ देने के पीछे भी एक कारण है. दरअसल, पारसी समुदाय में माना जाता है कि मृत शरीर अशुद्ध होता है. पारसी पर्यावरण को लेकर भी सजग हैं इसलिए वे शरीर को जला नहीं सकते हैं क्योंकि इससे अग्नि तत्व अपवित्र हो जाता है. वहीं, पारसी शवों को दफनाया भी नहीं जाता है क्योंकि इससे धरती प्रदूषित हो जाती है और पारसी शवों को नदी में बहाकर भी अंतिम संस्कार नहीं कर सकते हैं क्योंकि इससे जल तत्व प्रदूषित होता है.
पारसी धर्म में पृथ्वी, जल, अग्नि तत्व को बहुत ही पवित्र माना गया है. परंपरावादी पारसियों का कहना है कि शवों को जलाकर अंतिम संस्कार करना धार्मिक नजरिए से यह पूरी तरह अमान्य और गलत है.
क्या होता है 'टावर ऑफ साइलेंस'
पारसी समुदाय किसी की मौत के बाद उसके शव को 'टावर ऑफ साइलेंस' ले जाते हैं. 'टावर ऑफ साइलेंस' को आम भाषा में दखमा भी कहा जाता है. टावर ऑफ साइलेंस एक गोलाकार ढांचा होता है, जिसके ऊपर ले जाकर शव को सूरज की धूप में रख दिया जाता है.
कम गिद्ध बढ़ा रहे पारसियों के अंतिम संस्कार में परेशानी
दुनिया की बढ़ती रफ्तार के साथ पारसी समुदाय के लोगों को एक नई परेशानी का सामना भी करना पड़ रहा है. दरअसल, भारत में गिद्धों की संख्या काफी कम हो गई है. शहरों में तो मुश्किल ही कोई गिद्ध अब नजर आता है. ऐसे में पारसी समाज को मरने के बाद आगे की रीति रिवाजों को पूरा करने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
एक पारसी पुजारी रमियार करनजिया ने इस मामले में कहते हैं कि गिद्ध तेजी के साथ इंसान का मांस खा जाते हैं. लेकिन अब गिद्ध न होने की वजह से इसमें काफी मुश्किल हो रही है. जो काम गिद्ध पहले कुछ घंटों में कर लेते थे, अब उसे होने में काफी दिन लग जा रहे हैं. इससे कई दिनों तक लाश सड़ते रहती है और इससे दुर्गंध आने लगती है.
गिद्धों की कमी की वजह से पारसी समाज इंसान के बनाए साधनों पर टिकने को मजबूर है. भारत के कई हिस्सों में शव को जल्दी गलाने के लिए पारसी लोग अब सोलर कंसंट्रेटर का सहारा भी ले रहे हैं. लेकिन यह तरीका परमानेंट इलाज नहीं है.
हिंदू रिवाज की तरह शवों को जलाने लगे कुछ पारसी लोग
हैदराबाद और सिकंदराबाद में पारसी अंजुमन के ट्रस्टी में रहे और पेशे से सीए जहांगीर बिजने ने एक इंटरव्यू में बताया कि पिछले कुछ सालों में कुछ पारसी लोग अपने रिवाज को छोड़कर शवों को जलाकर अंतिम संस्कार भी कर रहे हैं. ये लोग शवों को अब टावर ऑफ साइलेंस के ऊपर नहीं रखते हैं बल्कि हिंदू श्मशान घाट या विद्युत शवदाह गृह में ले जाते हैं.
जहांगीर ने बताया कि पारसी समुदाय में शव को टावर ऑफ साइलेंस में रखने बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए चार दिन लगातार प्रार्थना की जाती है, जिसे अरंघ कहते हैं. लेकिन अगर किसी पारसी इंसान के शव को जलाया या दफनाया दिया जाता है तो उसके लिए प्रार्थना नहीं की जाती है, क्योंकि पारसी समुदाय इसे टैबू मानता है.