मित्रों का जीवन में सबसे अधिक महत्व माना जाता है. अच्छा दोस्त हो तो वो हर परिस्थिति में साथ खड़ा रहता है और कठिन परिस्थितियों को आसान करने में मददगार साबित होता है. हालांकि यह एक ऐसा रिश्ता है जिसे व्यक्ति खुद चुनता है और आगे बढ़ाता है. लेकिन मित्र अगर स्वार्थी हो तो व्यक्ति बर्बाद हो जाता है. चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में मित्रता को लेकर काफी बातें कही हैं, जिसकी मदद से हम जीवन की कठिनाइयों से बच सकते हैं. आइए जानते हैं उन नीतियों के बारे में...
परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्ष प्रियवादिनम्।
वर्जयेत्तादृशं मित्रं विषकुंभम् पयोमुखम्।।
चाणक्य नीति के दूसरे अध्याय में लिखे इस 5वें श्लोक में चाणक्य कहते हैं कि जो लोग मित्रता के रिश्ते में रहते हुए सामने से मीठी बातें करते हैं और तारीफों के पुल बांधते हैं. लेकिन मौका मिलने पर पीठ पीछे बुराई करते हैं या काम बिगाड़ने की कोशिश करते हैं, उनसे मित्रता नहीं रखनी चाहिए. ऐसे लोगों को जितनी जल्दी हो सके खुद से अलग कर लेना चाहिए.
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इस प्रकार के मित्र ठीक उसी घड़े के जैसे होते हैं जिनके मुंह के किनारों पर तो दूध दिखता है और अंदर विष भरा रहता है. ऐसे मित्रों का साथ होना नुकसानदायक होता है. इसलिए ऐसे दोस्त और उनकी दोस्ती के रिश्ते से दूरी बनाकर रखने में ही भलाई होती है.
इसके अलावा चाणक्य एक दूसरे श्लोक में लिखते हैं...
न विश्वसेत् कुमित्रे च मित्रे चाऽपि न विश्वसेत्।
कदाचित् कुपितं मित्रं सर्वं गुह्यं प्रकाशयेत्।।
इसका अर्थ है कि मनुष्य को कुमित्र यानी बुरे मित्र भूलकर भी भरोसा नहीं करना चाहिए. वो कहते हैं कि किसी भी दोस्त पर आंख बंद करके भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने पर आप उसे अपने सारे राज बता देते हैं और भविष्य में किसी मोड़ पर अगर वो आपसे अलग हो जाए तो आपके राज उजागर कर सकता है.
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