आज देशभर में बकरीद का त्योहार मनाया जा रहा है. बकरीद यानी ईद-उल-अजहा इस्लाम धर्म का दूसरा सबसे प्रमुख त्योहार है. इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, बारहवें महीने की 10 तारीख को बकरीद का त्योहार मनाया जाता है. बकरीद का त्योहार रमजान खत्म होने के 70 दिन बाद आता है. इस दिन इस्लाम धर्म के लोग मस्जिद में जाकर नमाज अदा करते हैं और फिर जानवर की कुर्बानी देते हैं. हालांकि जानवर की कुर्बानी देते वक्त कुछ लोग जाने-अनजाने गलतियां कर बैठते हैं. आइए आपको कुर्बानी से जुड़ी 5 ऐसी गलतियां बताते हैं जिन्हें इस्लाम में गलत माना गया है.
बकरीद पर ना करें ये 5 गलतियां
1. बकरीद पर जिस जानवर की कुर्बानी दी जाती है उसकी उम्र एक वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए. कमजोर, बीमार या लंगड़े जानवर की कुर्बानी देने से बचना चाहिए. कुर्बानी के जानवर की आंख, कान, पांव और सींघ सही सलामत होने चाहिए.
2. बकरीद के मौके पर हर मुसलमान जानवर की कुर्बानी देता है. कुर्बानी में इस्तेमाल होने वाले हथियार जैसे कि छुरा या चाकू खुले में ना रखें. सार्वजनिक रूप से कुर्बानी करने से बचें.
3. इस्लाम धर्म में कुर्बानी के लिए ईद का दिन सबसे अच्छा माना गया है. यदि आप किसी वजह से ईद पर कुर्बानी नहीं दे पा रहे हैं तो तीन दिन बाद तक कुर्बानी दी जा सकती है.
4. बकरीद पर दी जाने वाली कुर्बानी गोश्त खाने की नियत से नहीं होनी चाहिए. इस्लाम के मुताबिक, कुर्बानी सिर्फ और सिर्फ सवाब की नियत से ही की जानी चाहिए.
5. कुर्बानी के बाद जानवर का गोश्त ढककर रखें और इसके अवशेष गड्ढे में दबा दें. रक्त और अवशेष नाली में न बहाएं. गोश्त को तीन हिस्सों में बांटें. पहला हिस्सा रिश्तेदारों, दोस्तों और पड़ोसियों को दें. दूसरा हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों में बांटें और तीसरा परिवार के लिए रखें.
कैसे हुई बकरीद की शुरुआत?
इस्लाम धर्म में बकरीद के दिन कुर्बानी का बड़ा महत्व बताया गया है. कुरान के मुताबिक, एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा ली. उन्होंने हजरत इब्राहिम को आजमाते हुए उसे हुक्म दिया कि वह अपनी सबसे प्यारी चीज को कुर्बान कर दे. हजरत इब्राहिम को उनके बेटे हजरत ईस्माइल से बहुत प्यार था और वो उसे जान से भी ज्यादा अजीज था.
लेकिन अल्लाह का हुक्म मिलने के बाद हजरत इब्राहिम मजबूर हो गया और उसने बेटे की मोहब्बत की जगह अल्लाह की बंदगी को चुना. हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया. हजरत इब्राहिम को 80 साल की उम्र में औलाद नसीब हुई थी, इसलिए बेटे की कुर्बानी देना उसके लिए बेहद मुश्किल काम था.
हजरत इब्राहिम ने अल्लाह का नाम लेते हुए आंखें बंद कर अपने बेटे के गले पर छुरी चला दी. लेकिन जब उन्होंने आंख खोली तो देखा कि उनका बेटा बगल में जिंदा खड़ा है और उसकी जगह बकरे जैसी शक्ल का जानवर कटा हुआ पड़ा है. ऐसा कहा जाता है कि उसी दिन से अल्लाह की राह में कुर्बानी देने की शुरुआत हुई. पैगंबर इब्राहिम जब अपने बेटे की कुर्बानी देने जा रहे थे, तब अल्लाह ने अपना एक दूत भेजकर बेटे को एक बकरे से बदल दिया था.
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