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Pradosh Vrat 2021: भौम प्रदोष व्रत आज, ये कथा पढ़ने से होती है भगवान शिव की कृपा

प्रदोष व्रत को सबसे अधिक शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है. मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. मंगलवार के दिन पड़ने की वजह से इसे भौम प्रदोष व्रत (Bhaum Pradosh Vrat) कहा जाता है.

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भौम प्रदोष व्रत करने से होती है भगवान शिव और हनुमान जी की कृपा
भौम प्रदोष व्रत करने से होती है भगवान शिव और हनुमान जी की कृपा
स्टोरी हाइलाइट्स
  • भौम प्रदोष व्रत आज
  • भगवान शिव-हनुमान की होती है कृपा
  • सभी मनोकामनाएं होती हैं पूरी

प्रदोष व्रत हर महीने में दो बार पड़ता है. ये व्रत माता पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है. मान्यता है कि प्रदोष व्रत करने से अच्छी सेहत और लम्बी आयु की प्राप्ति होती है. आज भौम प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat 2021) है. भौम का अर्थ होता है मंगल और मंगलवार के दिन पड़ने की वजह से इसे भौम प्रदोष व्रत (Bhaum Pradosh Vrat) कहा जाता है. भौम प्रदोष व्रत में शंकर भगवान के साथ हनुमान जी की पूजा भी की जाती है. 
 
भौम प्रदोष व्रत का महत्व

मान्यता है कि भौम प्रदोष का व्रत रखने वालों की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस दिन व्रत और पूजा-पाठ करने से सारे कष्ट मिट जाते हैं और भोले शंकर की विशेष कृपा होती है. भौम प्रदोष व्रत रखने वाले लोग निरोग रहते हैं. भौम प्रदोष के दिन विशेष पूजा के माध्यम से मंगल दोष की पीड़ा से छुटकारा पाया जा सकता है. 

प्रदोष व्रत कथा

स्कंद पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक विधवा ब्राह्मणी अपने पुत्र को लेकर भिक्षा लेने जाती थी और संध्या को लौटती थी. एक दिन जब वह भिक्षा लेकर लौट रही थी तो उसे नदी किनारे एक सुन्दर बालक दिखाई दिया जो विदर्भ देश का राजकुमार धर्मगुप्त था. शत्रुओं ने उसके पिता को मारकर उसका राज्य हड़प लिया था. उसकी माता की मृत्यु भी अकाल हुई थी. ब्राह्मणी ने उस बालक को अपना लिया और उसका पालन-पोषण किया.

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कुछ समय पश्चात ब्राह्मणी दोनों बालकों के साथ देवयोग से देव मंदिर गई. वहां उनकी भेंट ऋषि शाण्डिल्य से हुई. ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को बताया कि जो बालक उन्हें मिला है वह विदर्भ देश के राजा का पुत्र है जो युद्ध में मारे गए थे और उनकी माता को ग्राह ने अपना भोजन बना लिया था. ऋषि शाण्डिल्य ने ब्राह्मणी को प्रदोष व्रत करने की सलाह दी. ऋषि आज्ञा से दोनों बालकों ने भी प्रदोष व्रत करना शुरू किया.

एक दिन दोनों बालक वन में घूम रहे थे तभी उन्हें कुछ गंधर्व कन्याएं नजर आई. ब्राह्मण बालक तो घर लौट आया किंतु राजकुमार धर्मगुप्त 'अंशुमती' नाम की गंधर्व कन्या से बात करने लगे. गंधर्व कन्या और राजकुमार एक दूसरे पर मोहित हो गए. कन्या ने विवाह हेतु राजकुमार को अपने पिता से मिलवाने के लिए बुलाया.

दूसरे दिन जब वह पुन: गंधर्व कन्या से मिलने आया तो गंधर्व कन्या के पिता ने बताया कि वह विदर्भ देश का राजकुमार है. भगवान शिव की आज्ञा से गंधर्वराज ने अपनी पुत्री का विवाह राजकुमार धर्मगुप्त से कराया. इसके बाद राजकुमार धर्मगुप्त ने गंधर्व सेना की सहायता से विदर्भ देश पर पुनः आधिपत्य प्राप्त किया. यह सब ब्राह्मणी और राजकुमार धर्मगुप्त के प्रदोष व्रत करने का फल था. स्कंदपुराण के अनुसार जो भक्त प्रदोषव्रत के दिन शिवपूजा के बाद एकाग्र होकर प्रदोष व्रत कथा सुनता या पढ़ता है उसे सौ जन्मों तक कभी दरिद्रता नहीं होती.
 

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