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उदयपुर फाइल्स: कन्हैया लाल तेली के सिर तन से जुदा होने की कहानी से कौन डर रहा है?

इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि फिल्म उदयपुर फाइल्स कन्हैया लाल हत्याकांड को फिर से सुर्खियों में ला सकती है. हैरानी है कि देश में विचारों की स्वतंत्रता का रोना रोने वाला गैंग उदयपुर फाइल्स पर रोक लगने पर शांत है. पर फिल्म रिलीज हुई तो गुस्सा डबल इंजन की सरकार पर भी बढ़ेगा. आखिर केंद्र और राज्य दोनों ही जगहों पर बीजेपी की सरकार है, फिर भी कन्हैया लाल तेली के हत्यारोपियों को सजा नहीं हो सकी है.

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उदयपुर फाइल्स फिल्म की कहानी कौन सामने नहीं लाना चाहता ?
उदयपुर फाइल्स फिल्म की कहानी कौन सामने नहीं लाना चाहता ?

राजस्थान के उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल की हत्या पर आधारित फिल्म ‘उदयपुर फाइल्स: कन्हैयालाल टेलर मर्डर’ की रिलीज पर दिल्ली हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है. ये फिल्म आज 11 जुलाई को रिलीज होने वाली थी. फिल्म को रोक लगाने में जमीयत उलेमा ए हिंद के मुखिया अरशद मदनी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. इनके वकील हैं वही कपिल सिब्बल जो मोदी सरकार के हर कार्यों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में नजर आते हैं. ये वही कपिल सिब्बल हैं जो मनमोहन सिंह सरकार में एक खास मंत्री हुआ करते थे. फिलहाल अभी कांग्रेस से दूर होकर समाजवादी पार्टी की सहायता से राज्यसभा में हैं.

फिलहाल उदयपुर फाइल्स के निर्माता अमित जानी ने कहा है कि वह फिल्म के रोक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे. हालांकि जमीयत उलेमा-ए-हिंद को अभी कोर्ट ने केंद्र सरकार के पास जाने को कहा है. सरकार 7 दिनों के अंदर यह फैसला लेगी की फिल्म सही है या गलत. इसलिए सबसे पहले कन्हैया लाल दर्जी की कहानी पर चलते हैं. आखिर जाने कि कौन फिल्म को बैन कराना चाहता है और क्यों?

कन्हैया लाल तेली का गला क्यों रेता गया?

उदयपुर, राजस्थान के एक 40 वर्षीय दर्जी का नाम है कन्हैया लाल तेली, जो अब इस दुनिया में नहीं हैं. 28 जून 2022 को मोहम्मद रियाज़ अत्तारी और गौस मोहम्मद ने कन्हैया लाल की दुकान में ही चाकू से हत्या कर दी थी. हत्यारों ने हत्या का विडियो बनाकर सोशल मीडिया पर भी डाला था. और यह भी बताया था गला रेतने का मकसद क्या है? अगर आपको इसके आगे की कहानी नहीं पता है तो जरूर आपको जिज्ञासा होगी कि आखिर कन्हैया लाल ने ऐसा कौन सा गुनाह किया था जिसकी सजा उन्हें उनकी दुकान में गला रेतकर दी गई. कन्हैया लाल का सिर्फ इतना दोष था कि उन्होंने बीजेपी नेता नूपुर शर्मा के पैगंबर मुहम्मद के खिलाफ विवादास्पद बयान का समर्थन एक वाट्सएप ग्रुप में किया था. जब कि जांच में आया कि वह पोस्ट उनके 8 वर्षीय बच्चे ने गलती से फॉरवर्ड कर दिया था. सिर्फ इतनी सी बात पर कुछ जाहिल युवकों ने उनकी बेहद निर्ममता से हत्या की थी. अत्तारी और गौंस ने उनकी दुकान में कपड़ा सिलवाने के बहाने पहुंचे. जब नाप लेने के लिए कन्हैया लाल ने इंचटेप उनके शरीर पर लगाया एक ने उनका गला रेता दूसरे ने विडियो बनाया. उसके बाद ये विडियो धमकी देते हुए सोशल मीडिया पर भी डाला गया.

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यह देश का दुर्भाग्य है कि जिन लोगों ने 3 साल पहले विडियो बनाकर दुर्दांत तरीके से एक शख्स की हत्या की वो अभी हत्या के दोषी साबित नहीं किए जा सके हैं. जबकि राज्य और केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. सारी जांच एजेंसियों पर इनका ही नियंत्रण है. कन्हैया लाल तेली के बेटे कहते हैं कि मेरे पिता के हत्यारों को 3 साल में न्याय नहीं मिल सका पर उनके जीवन पर बनी फिल्म को 3 दिन में बैन कर दिया गया. जाहिर है रोष तो होगा ही.

कन्हैया लाल की कहानी से कौन डर रहा है?

कन्हैया लाल के जीवन पर बनी फिल्म से जाहिर है कि वही डर रहा होगा जो नहीं चाहता कि उनकी कहानी समाज के सामने आए. सोचने वाली बात है कि किसे डर लग रहा है कि कन्हैया लाल तेली की कहानी को फिल्म के माध्यम से सामने लाने से दंगे भड़क सकते हैं. जाहिर है जो यह बात कह रहा है वह स्पष्ट रूप से भारत सरकार और कोर्ट को धमकी दे रहा है.

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने दिल्ली, गुजरात, और महाराष्ट्र हाई कोर्ट में याचिकाएं दायर कीं थी. उनकी आपत्ति थी कि फिल्म का ट्रेलर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकता है और सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा सकता है. यह सीधे सीधे धमकी ही है कि सांप्रदायिक तनाव भड़क जाएगा. इसका मतलब देश के अधिकतर लोग समझते हैं. याचिका में दावा किया गया कि ट्रेलर देखकर ऐसा लग रहा है कि हत्या को धार्मिक नेताओं और संस्थानों की साजिश के रूप में दर्शाया गया.

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हत्याकांड में शामिल एक आरोपी, मोहम्मद जावेद, ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें दावा किया गया कि फिल्म उनके निष्पक्ष मुकदमे के अधिकार को प्रभावित करेगी. जावेद को 2024 में राजस्थान हाई कोर्ट से जमानत मिली थी.  इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि फिल्म कन्हैया लाल हत्याकांड को फिर से सुर्खियों में ला सकती है. जिसमें आरोपियों के खिलाफ जनता का गुस्सा बढ़ सकता है. इतना ही नहीं गुस्सा तो डबल इंजन की सरकार पर भी लोगों का बढ़ेगा. आखिर केंद्र और राज्य दोनों ही जगहों पर बीजेपी की सरकार है.

विपक्षी दलों की चुप्पी रहस्यमय

जब भी किसी फिल्म को बैन करने की मांग उठती है तो देश में कुछ लोग विचारों की स्वतंत्रता का रोना लेकर बैठ जाते हैं. पर शायद उदयपुर फाइल्स से ऐसे लोग को ठेस नहीं लग रही है. नहीं तो सोशल मीडिया पर इस तरह के लोगों की बाढ़ आ जाती. सोशल मीडिया साइट X पर प्रोफेसर दिलीप मंडल लिखते हैं कि ओबीसी टेलर कन्हैया लाल तेली को क्यों और कैसे मारा गया, उसकी कहानी सामने आने से कपिल सिब्बल घबरा क्यों रहे हैं? वे किसको बचा रहे हैं? यह सुझाव देता है कि कुछ संगठनों को डर है कि फिल्म उनकी छवि को नुकसान पहुंचा सकती है.

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शायद मंडल का इशारा बिहार में होने वाले चुनाव में शामिल राजनीतिक दलों से है. क्योंकि बिहार चुनावों में एक ओबीसी दर्जी की हत्या में शामिल लोगों के सामने आने से कुछ राजनीतिक दलों का नुकसान होना तय है. एक हैंडल लिखता है कि कन्हैया लाल ने नूपुर शर्मा का समर्थन किया था, लेकिन सपा, कांग्रेस, और AAP ने इसकी निंदा नहीं की थी. विपक्षी दल इस फिल्म को BJP की रणनीति के रूप में देख रहे हैं, जो सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ा सकती है.

जमीयत उलमा-ए-हिंद और आतंकवाद के आरोपियों को बचाने का उसका इतिहास

फिल्म को बैन कराने में सबसे बड़ी भूमिका जमीयत उलमा-ए-हिंद की रही है. गौरतलब है कि इस संगठन का आतंकियों को बचाने और पनाह देने का इतिहास रहा है. 2007 में इस संगठन ने अपने नेता अरशद मदनी के नेतृत्व में एक लीगल सेल शुरू किया था, इसका मकसद आतंकवाद में गिरफ्तार हुए मुस्लिम लड़कों को कानूनी मदद देना था.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अब तक 700 आरोपियों का बचाव किया है. जमीयत ने 7/11 का मुंबई ट्रेन विस्फोट, 2006 मालेगांव विस्फोट, 26/11 मुंबई आतंकी हमला, 2011 मुंबई ट्रिपल ब्लास्ट केस, मुलुंड ब्लास्ट केस, गेटवे ऑफ इंडिया ब्लास्ट केस के तमाम आरोपियों को बचाने में सफल रही . पर दुखद ये है कि जो बचे उनको कोर्ट ने इसलिए नहीं छोड़ा कि वे बेगुनाह थे बल्कि उनके खिलाफ पक्के सबूतों का अभाव था.

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देवबंद स्थित जमीयत उलेमा-ए-हिंद संगठन ने जून 2021 में उत्तर प्रदेश में कथित अल-कायदा आतंकवादियों के बचाव में अपने वकील लगाए थे. फरवरी 2022 में जमीयत ने उन 49 आतंकवादियों की मदद की जिन्हें अहमदाबाद में 21 बम धमाकों की योजना बनाने और उन्हें अंजाम देने के आरोप में दोषी ठहराया गया था.

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