30 अप्रैल, 2025 को, मोदी सरकार ने घोषणा की कि आगामी राष्ट्रीय जनगणना में जाति आधारित गणना होगी. जहिर है कि अचानक लिया गया यह फैसला एक महत्वपूर्ण नीतिगत बदलाव को दर्शाता है. यह निर्णय उस सरकार के लिए आश्चर्यजनक है, जिसने पहले जाति जनगणना का खुलकर तो नहीं पर अपरोक्ष रूप से जरूर विरोध किया था. जैसे कि 2021 में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा गया था कि जाति जनगणना प्रशासनिक रूप से कठिन और अव्यवहारिक है. शायद यही कारण है कि राहुल गांधी सहित विपक्ष के तमाम नेताओं ने इस निर्णय को विपक्ष के दबाव और मोदी सरकार की राजनीतिक मजबूरी से जोड़ते नजर आते हैं.
हालांकि बीजेपी का स्थानीय नेतृत्व चाहे बिहार-यूपी का हो या महाराष्ट्र का हो जाति जनगणना के फेवर में बयान देता रहा है. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भले भी जाति जनगणना से इनकार करते रहे हों और बंटेंगे तो कटेंगे की बात करते रहे हों पर डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने हमेशा इसके समर्थन में बयान दिया. यही हाल कमोबेश पूरे देश में था. बिहार में जाति जनगणना की डिमांड करने वाले सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में स्थानीय बीजेपी के नेता भी शामिल हुए थे. पर इतना होने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी के बड़े नेताओं के भाषण का अर्थ यही निकल कर आता रहा है कि वे जाति जनगणना नहीं चाहते हैं. पर जाति जनगणना को लेकर बीजेपी सरकार खुद इनिशिएटिव ले लेंगे ऐसा भी कभी नहीं लगा. जाहिर है यह बात उठेगी ही कि ऐसी क्या मजबूरी आ गई कि आनन फानन में मोदी सरकार ने जाति जनगणना कराने का फैसला ले लिया.
1-जाति एक सच्चाई है इसलिए राजनीतिक मजबूरी है
भारत में जाति एक सच्चाई है. कहा जाता है कि जाति कभी नहीं जाती. यही कारण है कि लाख कोशिशों के बाद भी जातियों का अस्तित्व अपनी जगह पर बरकरार है. भारत में अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी कुल आबादी का 40-50% हिस्सा है, जो उत्तर प्रदेश, बिहार, तेलंगाना, और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में एक शक्तिशाली वोट बैंक है. कांग्रेस, मंडलवादी पार्टियां (SP, RJD, JDU), और अन्य विपक्षी दल लंबे समय से जाति जनगणना की वकालत कर रहे हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में जाति जनगणना कराने और 50% आरक्षण सीमा हटाने का वादा किया था. राहुल गांधी ने इसे सामाजिक एक्स-रे बताया, और X पर उन्होंने लिखा कि उनकी डिमांड के चलते मोदी सरकार को मजबूर होना पड़ा. लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में पिछड़ों की राजनीति करके ही 43 सीटें जीतकर BJP को पीछे कर दिया. बीजेपी जानती है कि हिंदू पहले अपनी जाति का है उसके बाद ही वह हिंदू धर्म का है. शायद यही कारण है कि बिहार के चुनावों में पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है. इसलिए सरकार ने जाति जनगणना कराने की घोषणा कर दी है.
2-बिहार चुनावों का ध्यान, आरक्षण का मुद्दा राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील
बिहार, जहां 2025 में विधानसभा चुनाव होने हैं, जाति जनगणना का एक प्रमुख मुद्दा है. बिहार में 2023 के जाति सर्वेक्षण में 36% OBC और 27% अति पिछड़ा वर्ग (EBC) की पहचान हुई थी. यानि कि 63 प्रतिशत आबादी यहां पिछड़ों की है. बिहार में आरजेडी और जेडीयू के मजबूत होने का एक मात्र कारण पिछड़ा और अति पिछड़ा वोट पर दोनों ही पार्टियों का कब्जा होना रहा है. दुर्भाग्य से बीजेपी अभी भी इन दोनों ही पार्टियों के बीच में अपनी जगह नहीं बना पाई है. बीजेपी ने इस राज्य में आज की तारीख में पार्टी अध्यक्ष , डिप्टी सीएम आदि पदों पर दिलीप जायसवाल, सम्राट चौधऱी आदि जैसे पिछड़ी जाति के लोगों को बिठाया हुआ है. इसके बावजूद ओबीसी में बीजेपी की वह पहुंच नहीं बन सकी है जो आरजेडी और जेडीयू की है. बिहार में नीतीश कुमार के साथ बीजेपी गठबंधन में है. जाति जनगणना के बहुत बड़े समर्थक नीतीश कुमार के साथ का लाभ मिल सके इसलिए भी बीजेपी के लिए जरूरी था कि वो जाति जनगणना की घोषणा करे.
3- सामाजिक दबाव: जातियों में अपने वजूद को लेकर चिंता बढ़ी है
भारत में सामाजिक-आर्थिक असमानताए और जातिगत भेदभाव एक गंभीर मुद्दा रहा है. पिछले दशक में मराठा (महाराष्ट्र), जाट (हरियाणा), और पटेल (गुजरात) समुदायों ने जैसे समुदायों ने OBC आरक्षण की मांग के लिए बड़े आंदोलन किए. यह अपनी जाति के वजूद को लेकर चिंतित होना ही है कि पटेल , जाट और मराठा जो अपेक्षाकृत दूसरी जातियों के मुकाबले संपन्न, दबंग और सामाजिक रूप से श्रेष्ठ भी हैं फिर भी आरक्षण की मांग करके और आगे बढ़ना चाहते हैं. यह सामाजिक दबाव सरकार के लिए अनदेखा करना मुश्किल था.
4- धार्मिक पहचान इतनी बड़ी हो गई है कि उसमें सभी जातियों को समेटा जा सकता है
आरएसएस ने पिछले दिनों ये इशारा कर दिया था कि उसे जाति जनगणना से कोई विरोध नहीं है. बशर्ते इस आधार पर राजनीति न हो. हालांकि बीजेपी खुद इस आधार पर राजनीति करेगी. भविष्य में बीजेपी कोई ऐसी तरकीब जरूर निकालेगी जिससे जाति जनगणना को भी कैश कर सके. क्योंकि हिंदू शब्द को पिछल 10 सालों में इतना बड़ा बन चुका है कि पार्टी को कोई चिंता नहीं है. हिंदू धर्म के झंडे के नीचे बहुत सी जातियां और सेक्ट भी अब खुशी खुशी रहने के लिए उत्सुक हैं. पावर बहुत सी समस्याओं का सबसे आसान समाधान होता है. कुछ साल पहले तक जैन धर्म खुद को अल्पसंख्यक घोषित करवाने के लिए संघर्ष कर रहा था पर आज खुद को हिंदू धर्म के एक सेक्ट के तौर पर बताने में फख्र महसूस करता है. यही हाल बौद्ध और अन्य संप्रदायों का है. सिख भी बहुत जल्दी प्राइड के साथ कहेंगे कि हम हिंदू ही हैं. यही हाल जातियों का भी है. हिंदू धर्म इतना बड़ा हो चुका है कि जातियां कुछ दिनों में गौण हो जाएंगी.
5-आरएसएस के पास है प्लान
29 अप्रैल, 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और RSS प्रमुख मोहन भागवत की मुलाकात के बाद जाति जनगणना कराने की घोषणा हुई. जाहिर है कि आरएसएस के पास हिंदुओं की एकता बनाए रखने के लिए प्लान तैयार है. RSS सरकार को सलाह दे रहा है कि जनगणना को वैज्ञानिक और पारदर्शी तरीके से डिजाइन किया जाए, ताकि 2011 की जनगणना की तरह सरकार को असफलता हाथ न लगे. यह डेटा को कल्याणकारी योजनाओं के लिए उपयोगी बनाने पर केंद्रित है.
RSS अपनी शाखाओं और सहयोगी संगठनों के माध्यम से सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए अभियान चलाएगा. यह जनगणना से उत्पन्न होने वाले जातिगत तनाव को कम करने का प्रयास है. RSS ने आरक्षण के उप-वर्गीकरण और आरक्षण बढ़ाने जैसे संवेदनशील मुद्दों पर सभी समुदायों की सहमति पर जोर दिया है, ताकि सामाजिक अस्थिरता से बचा जा सके.
RSS और BJP दोनों को डर है कि अगर विपक्ष को जनगणना का श्रेय मिला, तो यह OBC और दलित वोटरों को उनकी ओर खींच सकता है. RSS इस मुद्दे को कल्याणकारी और सामाजिक समरसता के ढांचे में पेश करके विपक्ष के सशक्तिकरण नैरेटिव का मुकाबला करना चाहता है.
RSS को अपनी हिंदुत्व की विचारधारा को जाति आधारित राजनीति के साथ संतुलित करना होगा. संगठन जाति जनगणना को अपने पंच परिवर्तन (सामाजिक समरसता सहित) के ढांचे में शामिल करने की कोशिश कर रहा है.