दिल्ली में संभावित सीएम को लेकर हर दिन चर्चा का नया बाजार सजता है. और शाम होते होते उठ जाता है. अब तक दिल्ली सीएम पद के लिए जो नाम सबसे आगे चल रहे थे उसमें प्रवेश वर्मा सबसे ऊपर थे. दिल्ली के पूर्व सीएम और आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को हराने के चलते वे दिल्ली बीजेपी में सुपर हीरो बनकर उभरे हैं. मीडिया में उनके नाम की चर्चा सबसे ज्यादा है. पर इंडियन एक्सप्रेस अखबार में छपी एक रिपोर्ट की माने तो दिल्ली का सीएम नवनिर्वीचित विधायकों में से तो चुना जाएगा पर उसमें प्रवेश वर्मा का नाम आगे नहीं है. इस अखबार के अनुसार सीएम पद के लिए संभावितों के नाम में आशीष सूद, रेखा गुप्ता, सतीश उपाध्याय और शिखा रॉय के नाम रेस में सबसे आगे चल रहे हैं. शनिवार से अब तक, आरएसएस और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के बीच कई बैठकें हो चुकी हैं. इन बैठकों में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बी एल संतोष सहित अन्य वरिष्ठ नेता शामिल हुए हैं.
1-प्रवेश वर्मा का क्या होगा?
जिन लोगों ने राजस्थान की राजनीति को बहुत नजदीक से देखा और समझा होगा उन्हें वहां विधानसभा चुनावों के बाद सीएम के पद पर भजनलाल शर्मा का चयन कैसे हुआ पता होगा. राजस्थान में आपको याद होगा कि विधानसभा चुनावों के दौरान महारानी दिया कुमारी को किस तरह हाईलाइट किया गया था. पीएम की सभाओं में कई बार उन्हें राजस्थान बीजेपी के अन्य कद्दावर नेताओं के मुकाबले बहुत अधिक महत्व दिया गया. मीडिया में राजस्थान के सीएम को लेकर सबसे ज्यादा अटकलें दिया कुमारी को लेकर हीं लगाईं गईं थीं. दिया कुमारी को राजस्थान के सबसे डॉमिनेंट कास्ट राजपूत नेता के तौर पर स्थापित किया गया था. करीब करीब यह मान लिया गया था कि दिया कुमारी का सीएम बनना तय है. पर ऐन मौके पर भजनलाल शर्मा जैसे लो प्रोफाइल वाले शख्स के नाम को आगे बढ़ा दिया गया और दिया कुमारी को डिप्टी सीएम के तौर पर शपथ दिलाई गई. दिया कुमारी खुशी खुशी आज राज्य की सेवा कर रही हैं.
प्रवेश वर्मा की कहानी में दिया कुमारी का अक्स दिखाई दे रहा है. दिल्ली की सबसे डॉमिनेंट कास्ट जाट से बिलॉन्ग करने वाले प्रवेश वर्मा को बीजेपी पिछले चुनावों से सीएम बनने का सपना दिखा रही है. 2020 के चुनावों में अरविंद केजरीवाल जब भी किसी बीजेपी नेता को दिल्ली के मामले में बहस के लिए चैलेंज करते थे तो गृहमंत्री के सामने उनके मुकाबले के लिए मनोज तिवारी के बजाए प्रवेश वर्मा ही नजर आते. प्रवेश वर्मा जाट नेता रहे हैं और आउटर दिल्ली में प्रभावी रहे हैं. इसके बावजूद उन्होंने आगे बढ़कर अरविंद केजरीवाल के खिलाफ चुनाव लड़ने के इच्छा जाहिर की. जाहिर है कि गृहमंत्री अमित शाह का इस मामले में उन्हें सपोर्ट था. प्रवेश वर्मा ने कठिन मेहनत करके अरविंद केजरीवाल को नई दिल्ली से बाहर नहीं निकलने दिया. इसका नतीजा रहा कि न केवल अरविंद हारे बल्कि उनके तमाम विधायक भी हारे. नैतिक रूप से देखा जाए तो दिल्ली का सीएम बनने का पहला अधिकार प्रवेश वर्मा के पास ही है. चुनाव जीतने के तुरंत बाद प्रवेश वर्मा और अमित शाह की मुलाकात ने इस संभावना को और बल दिया. दूसरे बीजेपी के लिए प्रवेश वर्मा भविष्य में फायदेमंद भी साबित हो सकते हैं. क्योंकि हरियाणा , पश्चिमी यूपी और राजस्थान में जाटों को संदेश देने में वो काम आएंगे. इसके साथ ही प्रवेश वर्मा को सीएम न बनाने पर जाटों को यह संदेश जाएगा कि बीजेपी वास्तव में उनकी पार्टी नहीं है.
2- आशीष सूद का नाम आगे होने की वजह
दिल्ली में देश भर के लोग आकर बसे हैं और इस शहर ने सभी का स्वागत किया है. पर दिल्ली की संस्कृति और पहचान पंजाबी ही है. इससे कोई इनकार नहीं कर सकता. शायद यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी दिल्ली को कोई पंजाबी नेतृत्व देने की चाहत रखती है. वैसे दिल्ली बीजेपी में कई पंजाबी नेता योग्य नेतृत्व देने में सक्षम हैं. पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से अपनी राजनीति शुरू करने वाले आशीष सूद की आरएसएस से नजदीकियों के चलते राजनीतिक गलियारों में उनके नाम की सबसे अधिक चर्चा है. उन्होंने भारतीय जनता युवा मोर्चा (BJYM) के महासचिव के रूप में काम किया, बाद में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बने. 2008 में उन्हें दिल्ली बीजेपी का सचिव बनाया गया और फिर महासचिव बने. इसके बाद वे एसडीएमसी के पार्षद भी रहे.. इंडियन एक्सप्रेस अपने सूत्रों के आधार पर लिखता है कि उनके पक्ष में यह बात जाती है कि वे दिल्ली बीजेपी के प्रमुख पंजाबी भाषी नेताओं में से एक हैं.उन्हें पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का करीबी भी माना जाता है.वे लंबे समय से संगठन में सक्रिय हैं और पार्षद तथा पूर्व दक्षिण एमसीडी (SDMC) में सदन के नेता भी रह चुके हैं. इसके अलावा, वे बीजेपी के गोवा प्रभारी और जम्मू-कश्मीर के सह-प्रभारी भी रहे हैं. सूद को नड्डा और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का भी करीबी माना जाता है.सूद ने इस चुनाव में जनकपुरी सीट से लगभग 19,000 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की थी. 2020 में वे इस सीट से चुनाव हार गए थे.
2- रेखा गुप्ता और शिखा रॉय की कितनी संभावना?
भारतीय जनता पार्टी किसी महिला को मुख्यमंत्री बनाकर एक तीर से कई निशाने भी लगा सकती है. एक्सप्रेस एक अन्य सूत्र के हवाले से लिखता है कि मुख्यमंत्री पद किसी महिला, पंजाबी या जाट नेता को भी दिया जा सकता है. फिलहाल, पार्टी एक पंजाबी नेता को मुख्यमंत्री बनाने की ओर झुकती दिख रही है. पर मुख्यमंत्री पद के लिए एक और मजबूत दावेदार रेखा गुप्ता हैं, जो आरएसएस से जुड़ी रही हैं. उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत संघ के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) से की थी और 1990 के दशक के अंत में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) की अध्यक्ष बनी थीं.
वे भारतीय जनता युवा मोर्चा (BJYM) की दिल्ली इकाई की सचिव और राष्ट्रीय सचिव रह चुकी हैं. इसके अलावा, वे पार्षद, दिल्ली बीजेपी महिला मोर्चा की महासचिव और बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य भी रह चुकी हैं.
इसके साथ ही ग्रेटर कैलाश से दो बार बीजेपी की पार्षद रह चुकीं शिखा रॉय भी मुख्यमंत्री पद की रेस में हैं. 2011 में कर्फ्यू के दौरान उन्होंने श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा फहराने के बाद सुर्खियां बटोरी थीं. उन्होंने 2015 में कस्तूरबा नगर और 2020 में ग्रेटर कैलाश से विधानसभा चुनाव लड़ा था लेकिन हार गई थीं. वे एसडीएमसी की स्थायी समिति की अध्यक्ष और सदन की नेता रह चुकी हैं. इसके अलावा, वे दिल्ली बीजेपी की सचिव, महासचिव और उपाध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण संगठनात्मक पदों पर भी रही हैं.
दरअसल बीजेपी के किसी भी राज्य में मुख्यमंत्री पद पर इस समय कोई महिला नहीं है. इसके साथ ही दिल्ली में पहले महिला मुख्यमंत्रियों की लंबी परंपरा रही है. सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित के बाद आतिशी ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया है. किसी महिला को मुख्यमंत्री बनाने से पहला फायदा बीजेपी को यह होने वाला कि किसी भी जाति या समुदाय को नाराजगी का अहसास नहीं होने वाला है. किसी खास जाति या समुदाय के किसी शख्स को सीएम बनाने पर सबसे ज्यादा डर इस बात का रहता है कि उसका खास प्रतिद्वंद्वी अपने को उपेक्षित महसूस करने लगता है.
हालांकि इन नामों के अलावा और भी कई नाम रेस में हैं. पूर्व दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष सतीश उपाध्याय भी मुख्यमंत्री पद के संभावित दावेदारों में आगे चल रहे हैं. वे नई दिल्ली नगर परिषद (NDMC) के उपाध्यक्ष रह चुके हैं और दिल्ली बीजेपी के उपाध्यक्ष एवं एसडीएमसी की स्थायी समिति के अध्यक्ष सहित कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य कर चुके हैं.