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बंगाल फतह की स्क्रिप्ट BJP ने कर ली है तैयार, क्या CAA विरोध बनेगा जीत का आधार?

CAA को लेकर पश्चिम बंगाल में बहुत जल्द महासंग्राम होने वाला है. बीजेपी और टीएमसी में इसको लेकर तलवारें खिंच चुकी हैं. बीजेपी को उम्मीद है कि जितना ही इसका विरोध होगा पार्टी उतनी ही बंगाल में मजबूत होगी.

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सीएए पर बंगाल में महासंग्राम होना तय है
सीएए पर बंगाल में महासंग्राम होना तय है

भारतीय जनता पार्टी ने बंगाल विजय की स्क्रिप्ट तैयार कर ली है. इसके लिए सीएए मुख्य हथियार बनने वाला है.गृहमंत्री अमित शाह ने 27 दिसंबर 2023 को कोलकाता में कानून को लागू करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई थी. उन्होंने सीएए पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया था.शाह ने कहा था कि सीएए को लागू करने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता. इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार गृह मंत्रालय के अधिकारी सीएए को लोकसभा चुनाव से पहले लागू करने की तैयारी कर रहे हैं.केंद्र सरकार जल्द ही सीएए के लिए नियमावली जारी कर सकती है.दूसरी ओर टीएमसी ने भी इसके विरोध का बिगुल बजा दिया है.

पश्चिम बंगाल सरकार में  मंत्री और टीएमसी नेता शशि पांजा कहती हैं, दिल्ली में शांतनु ठाकुर ( केंद्र सरकार में मंत्री) एक बात कहते हैं और जब वह बंगाल में होते हैं तो उनका बयान बदल जाता है... हमारी सीएम ने स्पष्ट रूप से कह दिया है कि सीएए को बंगाल में लागू नहीं किया जाएगा.पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही कह चुकी हैं कि सीएए बंगाल में लागू नहीं किया जाएगा. हालांकि सीएए कानून पूरे देश में लागू हो रहा है पर बंगाल की राजनीति के लिए यह विशेष मुद्दा बन चुका है. 

कानून का क्यों होता रहा है विरोध

पहले यह जान लें कि सीएए कानून है क्या? मोदी सरकार ने दूसरी बार सत्ता में आते ही दिसंबर 2019 में सीएए अधिनियम को पारित किया था.इस कानून को दूसरे दिन ही राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई थी. यह कानून भारत के तीन मुस्लिम पड़ोसी देशों से भारत आने वाले गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों से संबंधित है. कानून के अनुसार पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए गैर मुस्लिम प्रवासी लोगों को नागरिकता मिल जाएगी. पर उसके लिए  हिंदू, ईसाई, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी होना जरूरी है. मुस्लिम लोगों के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है. इस कानून का विरोध इसलिए हो रहा है कि इस कानून के चलते बांग्लादेश और म्यांमार आदि से आने वाले अवैध मुस्लिम प्रवासियों के लिए संकट पैदा हो जाएगा. यूपी-बिहार सहित नॉर्थ ईस्ट में अवैध बांग्लादेशी प्रशासन के लिए बहुत बड़ी प्रॉब्लम रहे हैं. इसके साथ ही दशकों से पाकिस्तान-बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत में आए बहुत से हिंदुओं को नागरिकता मिलने में आसानी हो सकेगी.
कानून के पास होने के बाद दिल्ली सहित कई राज्यों में मुस्लिम समुदाय ने केंद्र सरकार का भारी विरोध किया था. दिल्ली में शाहीन बाग में कई महीनों तक रास्ता ब्लॉक रखा गया था.कोविड आने के बाद ये आंदोलन स्वत:समाप्त हो गया था.

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बंगाल विजय बीजेपी के लिए बन चुका है प्रतिष्ठा का प्रश्न

पश्चिम बंगाल में 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने कुल 42 सीटों में करीब 18 सीटें हथिया कर अपने इरादे स्पष्ट कर दिए थे. पार्टी को उम्मीद थी कि 2021 के विधानसभा चुनावों में टीएमसी को का पत्ता साफ कर देगी. पर ऐसा हुआ नहीं. टीएमसी से भारी पैमाने पर नेताओं ने दलबदल करके बीजेपी का दामन भी थाम लिया था पर बीजेपी जनता का विश्वास हासिल करने से चूक गई.विधानसभा चुनावों में बीजेपी दूसरे नंबर की पार्टी बनने में तो सफल हुई पर उसे अपेक्षित सफलता हासिल नहीं हो सकी.

2021 में भाजपा ने बंगाल की कुल 294 विधानसभा सीटों में से 77 सीटें ही जीत सकी, लेकिन अब यह संख्या भी घटकर 68 से भी कम हो गई है. क्योंकि छह विधायक टीएमसी में चले गए हैं, दो विधायकों ने अपना सांसद दर्जा बरकरार रखा है और एक विधायक की मृत्यु हो गई है. 

इतना ही नहीं बंगाल में बीजेपी को लगातार 8 उपचुनावों में भी हार का सामना करना पड़ा.
इतना ही नहीं बीजेपी के वोट शेयर में लगातार भारी गिरावट जारी है. 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को 40 प्रतिशत वोट मिला, 2021 के विधानसभा चुनावों में पार्टी का वोट प्रतिश 2 परसेंट घट गया. पंचायत चुनावों में वोट परसेंटेज 23 प्रतिशत तक घट गया.

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 टीएमसी से बीजेपी में आए नेताओं की घर वापसी से पार्टी विचलित नजर आ रही थी.पार्टी को बंगाल में अपने कार्यकर्ताओं में भरोसा जगाए रखना बहुत भारी पड़ रहा था. शायद यही कारण है कि बीजेपी को लगता है सीएए लागू करके एक बार फिर कार्यकर्ताओं में जोश भरा जा सकता है.

मतुआ और राजवंशी समुदाय का प्रभाव चौथाई लोकसभा सीटों पर

पश्चिम बंगाल में बंग्लादेश से आए मतुआ समुदाय के लोग काफी समय से स्थाई नागरिकता की मांग कर रहे हैं. ये हिंदू शरणार्थी हैं जो देश के विभाजन के दौरान और बाद के दशकों में बांग्लादेश से भारत पहुंचे. पश्चिम बंगाल के चार जिले नादिया , उत्तर 24 परगना, दक्षिण 24 परगना और पूर्वी बर्दवान की करीब 73 विधानसभा सीटों पर इस समुदाय का प्रभाव है. इसी तरह पश्चिम बंगाल की कुल 42 लोकसभा सीटों में से 10 अनुसूचित जनजाति की सीटें हैं. इनमें से चार लोकसभा सीटों पर मतुआ संप्रदाय का प्रभाव है.

2011 की जनगणना के अनुसार असम में 6,31,542 नामशूद्र थे, जो राज्य की अनुसूचित जाति की आबादी का 28.3 प्रतिशत (22,31,321) और राज्य की पूरी आबादी का 2.02 प्रतिशत थे.मतुआ समुदाय के बनगांव लोकसभा केंद्र से बीजेपी के सांसद शांतनु ठाकुर, केंद्रीय राज्य मंत्री भी हैं. मतुआ के साथ-साथ राजवंशी समुदाय की भी स्थाई नागरिकता की डिमांड पुरानी है. कूचबिहार, जलपाईगुड़ी, अलीपुद्वार आदि में राजवंशी समुदाय की आबादी अच्छी खासी है.निशित प्रमाणिक केंद्र सरकार में मंत्री हैं. राजवंशी समुदाय का असर उत्तर बंगाल की 4-5 लोकसभा सीटों पर है.इस तरह कुल मिलाकर राज्य की चौथाई लोकसभा सीटों पर सीएए कानून का डायरेक्ट असर है. राजवंशी भी हिंदू हैं. 1971 के बाद से इन लोगों को अब तक नागरिकता नहीं मिली है. राजवंशियों को बांग्लादेश से आने पर दंडकारण्य, उड़ीसा, अंडमान भेज दिया गया था. इस तरह कुल मिलाकर यह अधिकार की लड़ाई है.

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हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण का काम करेगा सीएए

सीएए के कानून से जिन समुदायों को फायदा होने वाला है उन लोगों ने बंगाल में 2019 के लोकसभा चुनावों में खुलकर बीजेपी का साथ दिया था.इसलिए सीएए कानून से व्यक्तिगत रूप से फायदा लेने वाले वोट तो बीजेपी को मामूली फायदा ही दिलाने में ही सक्षम हैं पर सीएए पर होने वाली राजनीति से बीजेपी को बहुत मजबूत होने की उम्मीद है. पिछले दिनों जब गृहमंत्री अमित शाह ने जब बयान दिया कि सीएए लागू करने से उन्हें कोई रोक नहीं सकता है उसके बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की प्रतिक्रिया गौर करने लायक थी. शाह के बयान से बुरी तरह बिफरीं ममता बनर्जी ने कहा कि बीजेपी सीएए के जरिये देश को धार्मिक आधार पर बांटकर राजनीतिक लाभ लेना चाहती है. ममता ने इसे ध्रुवीकरण के लिए बीजेपी का एजेंडा करार दिया. जाहिर है कि ममता बनर्जी इस कानून का जमकर विरोध करेंगी. टीएमसी सरकार ने पश्चिम बंगाल में चार साल पहले ही सीएए के खिलाफ विधानसभा में प्रस्ताव पास कर चुकी है. बनर्जी जितना इस कानून का विरोध करेंगी बीजेपी उतना ही उन्हें मुस्लिम परस्त कहकर हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण करेगी.

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