बांग्लादेश का सारा हुक्का-पानी भारत भरोसे ही है. हर छोटी-बड़ी चीज के लिए वह भारत पर ही निर्भर है. जिसमें बिजली, पेट्रोलियम जैसी जरूरी चीजें हों. या उसे आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने वाली गारमेंट इंडस्ट्री जिसके लिए कपास और अन्य साजोसामान उसे भारत से ही मिलता है. किसी प्राकृतिक आपदा और अन्य मुसीबत में पड़ने पर सबसे ज्यादा मदद भी भारत से ही मिलती रही है. लेकिन, शेख हसीना सरकार का तख्ता पलट करके काबिज हुए कट्टरपंथियों ने भारत के प्रति अपनी नफरत को जगजाहिर कर दिया है.
इसके लिए पहले उन्हें अमेरिका की बाइडेन सरकार से मदद मिल रही थी, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने राष्ट्रपति पद संभालने पर बांग्लादेश के मामले को भारत के हवाले कर दिया है. एक ऐसे समय में जब चीन कई तरह के आर्थिक और सामरिक संकट से जूझ रहा है, युनूस ने बीजिंग जाकर भारत के खिलाफ बयानबाजी करके अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारी है. भारत ने तो बस उस कुल्हाड़ी के जोर को थोड़ा और ही बढ़ाया है. उम्मीद की जा सकती है कि वह पूर्व में पाकिस्तान की ऐसी हरकतों के नतीजे से सबक लेगा, और शांत हो जाएगा. बाकी अल्लाह खैर करे! आइये, भारत की इस आर्थिक सर्जिकल स्ट्राइक की पृष्ठभूमि और इस कार्रवाई के असर को समझते हैं...
1-भारत के इस कदम के लिए बांग्लादेश क्यों जिम्मदार
पिछले कुछ समय से लगातार बांग्लादेश भारत पर शेख हसीना और उनके समर्थकों को पनाह देने का आरोप लगा रहा है. इस्लामिक कट्टरपंथियों को हिंदुओं के नरसंहार की खूली छूट मिली हुई है. कई बार ऐतराज जताने के बाद भी स्थितियां सुधरने की बजाए भारत विरोध भावनाओ को और हवा दी जा रही है.
भारत के खिलाफ पाकिस्तान और चीन से संबंध साधने के लिए मोहम्मद यूनुस दोनों देशों का दौरा कर चुके हैं. चीन पहुंचकर पूर्वोत्तर भारत पर सीधी टिप्पणी और फिर खुद को समुद्र का एकमात्र गार्जियन बताकर उन्होंने भारत को ये सोचने को मजबूर कर दिया कि अब सर के ऊपर पानी जा रहा है. भारत पहले से ही सिलिगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक) के नजदीक बांग्लादेश में एक एयरपोर्ट डेवलप करने के लिए चीन-पाकिस्तान को आमंत्रित करने से खार खाया हुआ था. यह क्षेत्र भारत के लिए बेहद रणनीतिक महत्व रखता है. जाहिर है कि बांग्लादेश की गलतियों का घड़ा भर चुका था.
2-क्या मोदी-युनूस की मुलाकात के बाद ही तय हो गई थी बांग्लादेश पर आर्थिक स्ट्राइक की बात
भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी की हाल ही में थाईलैंड में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के हेड मोहम्मद यूनुस से मुलाकात हुई थी.दोनों देशों के रिश्ते में तनाव के बीच ये बैठक हुई थी.भारत में विपक्ष नरेंद्र मोदी और यूनुस के बीच 38 मिनट तक चली बैठक को सरकार की कमजोरी के रूप में इंगित कर रहा था.
दोनों नेताओं के बीच बातचीत को सुनकर ऐसा लगा था कि बांग्लादेश अहंकार में डूबा हुआ है. पीएम मोदी के कार्यालय की ओर से जारी बयान से पता चला था कि प्रधानमंत्री ने बांग्लादेश में हिंदुओं सहित अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया था. पर बांग्लादेश की ओर से जारी बयान को सुनकर ऐसा नहीं लगा कि उसे भारत द्वारा उठाई गई समस्याओं से कोई मतलब नहीं है. प्रोफ़ेसर यूनुस ने भारत की चिंताओं को दरकिनार कर बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के प्रत्यर्पण का मुद्दा उठाया.
हालांकि मोहम्मद यूनुस ने कहा था कि बांग्लादेश, भारत के साथ अपने संबंध को बहुत अहमियत देता है. पर यूनुस ने जिस तरह पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को निशाना बनाते हुए कहा, कि वे तमाम मीडिया आउटलेट में भड़काऊ बयान दे रही हैं और बांग्लादेश में हालात को अस्थिर करने की कोशिश कर रही हैं, जो कि भारत की ओर से दी गई मेहमाननवाज़ी का दुरुपयोग है.
उन्होंने कहा, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के ख़िलाफ़ वह लगातार गल़त और भड़काऊ आरोप लगा रही हैं. हम अपील करते हैं कि आपके देश में रहते हुए इस तरह के भड़काऊ बयान देने से भारत सरकार उन्हें रोके.
जो पीएम मोदी की कार्यशैली से परिचित हैं उन्हें यह पता चल गया था कि मोहम्मद यूनुस के इस बयान पर जल्द ही कोई ऐसा कदम भारत उठाएगा जिससे बांग्लादेश चित नजर आएगा.आखिर हफ्ते भर के अंदर एक्शन सामने आ गया.
3-बांग्लादेशी निर्यात पर एक ही झटके में नकेल डाल दी
भारत के इस फैसले का सीधा असर बांग्लादेश से होने वाले निर्यातों पर पड़ना तय है. भारत ने बांग्लादेश के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंच को अधिक सरल और सस्ता बना दिया था. जाहिर है कि भारत के ट्रांसशिफ फैसिलिटी बंद होने से बांग्लादेश का तेज़ी से बढ़ता रेडीमेड गारमेंट उद्योग की लागत बढ़ जाएगी. एक तो बांग्लादेश की अस्थिरता के चलते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर डिमांड कम हो रही है. दूसरे अब भारतीय लॉजिस्टिक्स प्रणाली, विशेषकर नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे जैसे प्रमुख केंद्रों का सहयोग न मिलने से और बांग्लादेश टैक्सटाइल्स उद्योग बरबादी के कगार पर पहुंच सकता है. इसके ठीक उलट बांग्लादेश की फैक्ट्रीज को मिलने वाला काम भारतीय उद्योगपतियों को मिल सकता है.
2024 में बांग्लादेश का निर्यात 50 अरब डॉलर के ऐतिहासिक आंकड़े को पार कर गया था. बांग्लादेश की रेडीमेड गारमेंट इंडस्ट्री देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन रही थी. इसके अलावा, चमड़ा और चमड़ा उत्पादों का निर्यात 10.44% बढ़कर 577.29 मिलियन डॉलर हो चुका है. जबकि कपास और कपास उत्पादों का निर्यात 16.32% बढ़कर 319.06 मिलियन डॉलर पहुंच चुका है. बांग्लादेश भले ही इसे स्वीकार न करे पर बांग्लादेश की इस तरक्की के पीछे कहीं न कहीं भारत बैकबोन की तरह काम कर रहा था.
4-बांग्लादेश अब नहीं सुधरा तो और सख्त कार्रवाई भुगतेगा
बांग्लादेश के खिलाफ भारत का यह सर्जिकल स्ट्राइक केवल आवागमन तक ही सीमित नहीं रहने वाला है. इसका असर भविष्य में व्यापक हो सकता है. बांग्लादेश या तो मालदीव की तरह भारत की शरण में आ सकता है या भविष्य में बांग्लादेश से आने वाले निर्यात पर बढ़ी ड्यूटी के रूप में झेल सकता है. बांग्लादेश की गार्मेट इंडस्ट्री के लिए कच्चा माल जैसे कपास के साथ-साथ कई लेवल पर तकनीक और उर्जा की पूर्ति भारत से होती रही है.
बांग्लादेश अगर भारत के साथ समर्पण मुद्रा में नहीं आता है और चीन की शह पर अनाप शनाम बयानबाजी करता है तो जाहिर है कि आयात-निर्यात का दायरा बदला जा सकता है. वर्ष 2023 में भारत का बांग्लादेश को कुल निर्यात 11.3 बिलियन डॉलर का था, जिसमें से सबसे ज्यादा 1.42 बिलियन डॉलर की बिजली ही बांग्लादेश ने भारत से खरीदी. जो कि कुल निर्यात का 12.5 प्रतिशत रहा. अगर भारत बिजली का निर्यात रोक देता है बांग्लादेश की इंडस्ट्री ठप पड़ सकती है. बांग्लादेश में पिछले साल करीब 115 टेरावॉट बिजली की खपत हुई जिसमें करीब 12 टेरावॉट भारत की बिजली थी.
इतना नही नहीं अभी तक भारत गार्मेट इंडस्ट्री में बांग्लादेश को अपना प्रतिस्पर्धी नहीं मानता था. अब भारतीय गार्मेंट इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए और भी आक्रामक रणनीतियां बनाकर बांग्लादेश के माल को डंप करवा सकता है.