गॉड के अस्तित्व पर हुई एक ताजा बहस बेहद वायरल है. Lallantop.com के मंच पर मशहूर शायर-गीतकार और घोषित नास्तिक जावेद अख्तर थे और उनके सामने थे कोलकाता की वाहयान फाउंडेशन के मुफ्ती शमाइल नदवी. कांस्टीट्यूशन क्लब में हुई बहस पर दोनों ओर से ताकतवर तर्क दिए गए, लेकिन असली बहस छिड़ी हुई है सोशल मीडिया पर. दिलचस्प ये है कि नदवी और उनकी फाउंडेशन ने इसी साल कोलकाता उर्दू अकादमी द्वारा जावेद अख्तर को बुलाए जाने का विरोध किया था. तब नदवी ने जावेद अख्तर को गॉड के अस्तित्व पर बहस करने का चैलेंज दिया था.
'लल्लनटॉप' के एडिटर सौरभ द्विवेदी ने बहस को मॉडरेट किया. तय ढांचे में मुफ्ती नदवी और जावेद अख्तर को बारी बारी से बोलने का मौका दिया गया. दोनों एक दूसरे की बात को काटा और सवाल भी किए. कार्यक्रम में मौजूद लोगों ने दोनों वक्ताओं से सवाल किए. मुफ्ती शमाइल नदवी ने ईश्वर के अस्तित्व के समर्थन में अपनी पूरी बात को एक साफ और तय ढांचे में रखा. उनकी प्रमुख बातें कुछ इस प्रकार थीं-
1. विज्ञान के तराजू पर ईश्वर को नहीं तौल सकते
मुफ्ती नदवी ने शुरुआत इसी बिंदु से की कि ईश्वर के सवाल को विज्ञान के तराजू पर नहीं तौला जा सकता. उनके मुताबिक विज्ञान का दायरा केवल उस दुनिया तक है जिसे हम देख सकते हैं, नाप सकते हैं और प्रयोगों से साबित कर सकते हैं, जबकि ईश्वर एक नॉन-फिजिकल और सुपरनेचुरल रियलिटी है. इसलिए ईश्वर को साबित करने या नकारने के लिए साइंस को स्टैंडर्ड बनाना ही गलत है. उन्होंने यह भी कहा कि यह बात वह नहीं, बल्कि खुद विज्ञान के बड़े संस्थान मानते हैं.
इसके बाद उन्होंने साफ किया कि वे इस बहस में किसी धार्मिक किताब या वह़ी का सहारा नहीं लेंगे. वजह यह थी कि सामने वाला पक्ष revelation को ज्ञान का स्रोत नहीं मानता. ऐसे में धार्मिक ग्रंथों से दलील देना बहस को एकतरफा बना देता. इसलिए उन्होंने खुद को सिर्फ उस ज़मीन तक सीमित रखा जिसे दोनों पक्ष स्वीकार कर सकें.
2. नॉन-फिजिकल सत्ता को फिजिकल टूल्स से नहीं ढूंढ सकते
मुफ्ती शमाइल नदवी ने 'भगवान को दिखाओ' या 'एम्पिरिकल एविडेंस दो' जैसी मांगों को भी गलत ठहराया. उनके अनुसार किसी नॉन-फिजिकल सत्ता को फिजिकल टूल्स से ढूंढना वैसा ही है जैसे मेटल डिटेक्टर से प्लास्टिक खोजने की जिद करना. अगर प्लास्टिक नहीं मिल रहा तो इसका मतलब यह नहीं कि प्लास्टिक मौजूद ही नहीं है, बल्कि इसका मतलब यह है कि इस्तेमाल किया गया टूल गलत है.
3. कोई दलील है ही नहीं, जिससे ईश्वर का अस्तित्व नकारा जा सके
उन्होंने कहा कि जब विज्ञान, revelation और observation को स्टैंडर्ड नहीं बनाया जा सकता, तो एक ही रास्ता बचता है और वह है अक्ल और लॉजिक. लेकिन लॉजिक भी ऐसा होना चाहिए जो बिल्कुल साफ और निर्णायक हो, जिसे दो और दो चार की तरह नकारा न जा सके. अगर ईश्वर के न होने पर कोई ऐसी निर्णायक दलील दी जाए तो वे उसे स्वीकार करने को तैयार हैं, लेकिन उनके अनुसार ऐसी दलील दी ही नहीं जा सकती.
4. ये मानना पड़ेगा कि कोई है जिसने ये यूनिवर्स बनाया
इसी क्रम में उन्होंने गुलाबी रंग की बॉल की मिसाल दी. एक ऐसे द्वीप पर, जहां पहले कोई नहीं गया, अगर अचानक एक गुलाबी बॉल पड़ी मिले तो सबसे पहला सवाल यही होगा कि यह यहां कैसे आई, किसने बनाई, इसी रंग और इसी आकार की क्यों है. इसका कारण यह है कि उस बॉल का होना जरूरी नहीं था. फिर उन्होंने कहा कि अगर उसी बॉल को धीरे-धीरे फैलाकर यूनिवर्स के आकार का कर दिया जाए, तो क्या सवाल बदल जाएगा? नहीं, सवाल वही रहेगा कि यह यूनिवर्स कहां से आया और किसने बनाया.
5. यूनिवर्स के क्रिएशन पर एथिस्ट सोच विरोधाभासी है
उन्होंने एथिस्टिक सोच पर यह आरोप लगाया कि वह यूनिवर्स के मामले में 'खुद-ब-खुद बन गया' जैसी बात स्वीकार कर लेती है, जबकि छोटी चीज़ों के मामले में ऐसा नहीं करती. उनके मुताबिक यह या तो अज्ञान से निकला हुआ तर्क है या फिर एक तरह का डॉग्मा है, जिसमें सवाल पूछना ही बंद कर दिया जाता है.
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6. विज्ञान से ईश्वर का अस्तित्व मजबूत होता है
मुफ्ती शमाइल नदवी ने 'गॉड ऑफ गैप्स' वाले तर्क का भी जवाब दिया. उन्होंने कहा कि नेचुरल प्रोसेस समझ में आ जाने से ईश्वर का अस्तित्व खत्म नहीं हो जाता. विज्ञान जिन खाली जगहों को भरता है, वह भी फिजिकल और कंटिंजेंट चीजों से ही भरता है. इससे बस हमारी समझ बढ़ती है, लेकिन अंतिम सवाल फिर भी बना रहता है कि पूरी व्यवस्था की जड़ में क्या है? इससे यह साबित होता है कि गॉड का कान्सेप्ट और कॉम्प्लेक्स है.
7. ईश्वर के दायरे से बाहर नहीं है बुराई
बुराई और दुख के सवाल पर उन्होंने कहा कि ईविल का अस्तित्व ईश्वर के खिलाफ नहीं, बल्कि उसके पक्ष में जाता है. अगर इंसान जवाबदेह है, तो अच्छे और बुरे का होना जरूरी है. अगर ईश्वर नहीं है, तो फिर न्याय, अन्याय और पीड़ा पर हमारा नैतिक आक्रोश किस आधार पर टिका है, यह सवाल अनुत्तरित रह जाता है.
8. यदि किसी के साथ बुरा हो रहा है तो वो एक टेस्ट भी है
गाजा में मारे जा रहे बच्चों के सवाल पर मुफ्ती नदवी ने कहा कि बेशक यह बुरा है, लेकिन गॉड सब जानते हैं. कई बार बुराई हमें अच्छाई की महत्ता समझाने आती है. तो कहीं यह हमारा टेस्ट भी होता है जिसमें हमें यह साबित करना होता है कि हम ईश्वर के बताए रास्ते पर चल रहे हैं. और इस सबका आखिर में हिसाब होता है.
9. सबसे अंत में सबसे ऊपर कोई तो है
उन्होंने कारणों की अंतहीन श्रृंखला, यानी इनफिनिट रिग्रेस, को भी लॉजिकल फैलेसी बताया. उनके अनुसार व्यवहारिक दुनिया में यह संभव नहीं है कि हर चीज़ का कारण किसी और कारण पर टिका हो और यह सिलसिला कभी रुके ही नहीं. कहीं न कहीं एक ऐसी सत्ता होनी ही चाहिए जिस पर यह श्रृंखला खत्म हो.
10. समय और स्थान से परे है ईश्वर
अंत में उन्होंने उस सत्ता को 'नेसेसरी बीइंग' कहा. उनके मुताबिक वही ईश्वर है जो किसी पर निर्भर नहीं, जो समय और स्थान से परे है, जो शाश्वत है, शक्तिशाली है और बुद्धिमान है, क्योंकि इतना सटीक और नियमबद्ध यूनिवर्स किसी चेतन और सक्षम कारण के बिना संभव नहीं हो सकता. उनकी पूरी बहस का निष्कर्ष यही था कि ईश्वर कोई कल्पना नहीं, बल्कि लॉजिक की मजबूरी है.
लल्लनटॉप के यूट्यूब चैनल पर बहस का पूरा वीडियो देखा जा सकता है, जिसे इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक करीब 5 लाख बार देखा जा चुका है. और करीब 60 हजार से अधिक लोगों ने कमेंट किया है. इस वीडियो का लिंक ये है-