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बिहार के पहले चरण में बंपर वोटिंग... बदलाव का वोट या नारी शक्ति का सरकार को समर्थन?

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में बंपर वोटिंग हुई. पहले चरण के तहत 121 सीटों पर वोटिंग हुई थी और ऐतिहासिक रूप से 64.7 फीसदी लोगों ने वोट डाला.

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बिहार में पहले चरण की बंपर वोटिंग के मायने क्या हैं (Photo: ITG)
बिहार में पहले चरण की बंपर वोटिंग के मायने क्या हैं (Photo: ITG)

बिहार चुनाव में पहले चरण में हुए मतदान का आंकड़ा 65 फीसदी को पार कर गया. बिहार में हुआ यह मतदान राज्य के इतिहास का सबसे बंपर मतदान बन गया तो अब इस बंपर मतदान के मायने निकाले जा रहे हैं. क्या महिलाएं सरकार के लिए ढाल बनकर खड़ी हो गई या फिर युवाओं ने बदलाव के लिए वोट किया!

सी- वोटर के आंकड़ों के मुताबिक, पहले चरण में 121 सीटों पर हुए मतदान में 61 फीसदी पुरुषों ने मतदान किया तो लगभग 69 फीसदी मतदान महिलाओं का रहा. क्या आठ फीसदी से अधिक मतदान सरकार के प्रो-इन्कमबेंसी का वोट है! क्या यह गेम चेंजर है या फिर बदलाव का संकेत!

फिलहाल ये यक्ष प्रश्न है लेकिन जितनी मुंह उतनी समीक्षा। अगर आप बिहार के युवाओं और प्रवासी मजदूरों से बात करें तो वह इस बंपर वोटिंग को बदलाव का वोट मानते हैं लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ और जानकार इसमें बदलाव की बजाय सरकार के समर्थन में महिलाओं के कवच के तौर पर देखते हैं.

बिहार में घूमते हुए चौक चौराहों पर ज्यादातर पुरुष और युवा बदलाव की बात करते सुनाई दे रहे थे, जिसे अंग्रेजी में vocal voter कहते हैं, वो कैमरा खुलते ही बदलाव और रोजगार की बात बोल रहे थे. वोटिंग के दिन वैशाली के कई विधानसभा क्षेत्रों में घूमते हुए लोगों से बात करने पर यही निकला की बोलता हुआ वोटर बदलने के मूड में है लेकिन बदलाव का मतलब सिर्फ सरकार बदलने की बात नहीं है. बदलाव का मतलब स्थानीय स्तर पर विधायकों से नाराजगी भी है यानी कहीं पुराने विधायकों से नाराजगी तो कहीं सरकार बदलने की बात लेकिन बदलाव की बात जोर जोर से चौराहों पर सुनाई देगी.

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महिलाओं की लंबी-लंबी कतारें लोकतंत्र की सबसे सुखद तस्वीर पेश करती है. जिन महिलाओं के दूसरे चरण के वोट ने 2020 में एनडीए की सरकार को बचाया था. चर्चा यही है कि इस बार भी महिलाओं का ही वोट सरकार को बचाएगा भी और बनाएगा भी. लेकिन चुनावी एक्सपर्ट से नेता बने प्रशांत किशोर की भी सुन लीजिए. प्रशांत किशोर जो कि जन सुराज पार्टी के मुखिया हैं और बिहार में सभी सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. उनका मानना है कि बिहार में इतनी बड़ी तादाद में वोटिंग बदलाव के लिए वोट है और बाहर से आने वाले प्रवासी लोग सरकार बदलने के लिए रुके हैं और अपना वोट डालकर जा रहे हैं. बिहार से बाहर काम कर रहे प्रवासी वोटों की वजह से भी माना जा रहा है कि वोट प्रतिशत में अच्छा खासा इजाफा हुआ है.

वैशाली से लेकर पटना तक के कई बूथ पर जब मैंने महिला वोटरों से बात की तो समीकरण से जुड़े वोटर की महिलाएं परिवार के मुताबिक ही वोट करती दिखी. यानी यादव महिलाएं तेजस्वी की तरफ मुस्लिम महिलाएं तेजस्वी की तरफ या फिर कैंडिडेट की जाति की ज्यादातर महिलाएं अपने-अपने समीकरण से वोट कर रही थी. यही बात सवर्ण महिलाओं पर भी लागू था, जिनका बीजेपी या जेडीयू की तरफ रुझान साफ था लेकिन गरीब पिछड़े अति पिछड़े बिरादरी से आने वाली ज्यादातर महिलाएं चुप थी और चुपचाप वोट कर बिना कुछ कहे घर का रुख करती रही. लेकिन कुरेदने पर नीतीश का समर्थन बिल्कुल साफ दिख रहा था. महिलाओं में उत्साह दिख रहा था सरकार के अलग-अलग योजनाओं के मिल रहे लाभ का असर भी महिला वटरों पर. दिखाई दे रहा था लेकिन 10000 रुपये मिलने की चर्चा इनके बीच खूब सुनाई दी.

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इंडियन एक्सप्रेस के ब्यूरो चीफ संतोष सिंह कहते हैं की बढ़ा हुआ वोट प्रतिशत SIR से घटे हुए वोट का नतीजा है. चूंकि 65 लाख वोट कम हुए तो यह वोट प्रतिशत बढ़ा है लकिन उनका यह साफ मानना है कि महिलाओं के बड़े वोट नीतीश को अभूतपूर्व समर्थन की ओर इशारा कर रहा है.

पहले चरण के मतदान के बाद दोनों तरफ से संकेत की सियासत हो रही है तेजस्वी यादव ने वोटरों का धन्यवाद किया है कि उन्होंने बदलाव के लिए वोट किया तो अमित शाह 160 प्लस के दावे पर बने हुए हैं जबकि गिरिराज सिंह ने आज तक को अपना आकलन बताते हुए कहा कि इस बार NDA 200 पार होगा.

बहरहाल निष्कर्ष के तौर पर अगर देखा जाए तो महिला वोटर सचमुच नीतीश कुमार के लिए गेम चेंजर साबित होने वाली है. बड़ा फायदा जेडीयू को नीतीश कुमार के नाम पर मिल रहा है जबकि बीजेपी को मोदी के नाम का फायदा तो है ही. लेकिन नीतीश कुमार के महिला कवच का भी फायदा मिल रहा है.

बिहार को कवर करते एक चीज बड़ी साफ दिखाई दे रही है. अगर महिलाएं और लड़कियां स्वतः स्फूर्त किसी को सुनने आ रही है तो वह है नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी, बाकि नेताओं की सभाओं में महिलाएं ना के बराबर हैं.

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माना जा रहा है कि दूसरे चरण का चुनाव एनडीए के लिए ज्यादा चुनौती भरा होने वाला है क्योंकि 2020 में इन इलाकों में एनडीए को बढ़त मिली थी और इस बार वहां एनडीए के कई विधायकों के खिलाफ जबरदस्त एंटी इनकमबंसी भी बनी हुई है.

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