INDIA ब्लॉक आज की तारीख में सबसे ज्यादा एकजुट नजर आ रहा है. एकजुट होने से मतलब, मजबूत होना भी समझ सकते हैं. मजबूत इसलिए, क्योंकि संसद से लेकर सड़क तक ये मजबूती दिखाई देने लगी है. संसद से चुनाव आयोग के दफ्तर तक विपक्षी सांसदों का विरोध मार्च और प्रदर्शन. प्रदर्शन के दौरान अखिलेश यादव का पुलिस बैरिकेडिंग कूद कर पार करना, और अब बिहार में शुरू होने जा रही वोटर अधिकार यात्रा. वोटर अधिकार यात्रा में भी पूरे इंडिया ब्लॉक के एक साथ नजर आने का दावा किया जा रहा है.
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी के डिनर में 25 दलों के 50 नेताओं का जुटना, ये बताने के लिए काफी था कि SIR का मुद्दा विपक्षी एकजुटता के लिए सही है, और ऐसा मुद्दे सामने आते हैं तो इंडिया ब्लॉक में नेतृत्व का विवाद भी कम से कम 2029 तक तो थम ही सकता है.
विरोध मार्च और मल्लिकार्जुन खड़गे के फाइव स्टार होटल वाले डिनर में संजय सिंह सहित आम आदमी पार्टी के तीन सांसदों की मौजूदगी हैरान करने वाली थी. ये कांग्रेस के लिए विपक्षी सपोर्ट की सबसे बड़ी उपलब्धि थी. और, बिहार की वोटर अधिकार यात्रा भी उसी का जमीनी विस्तार समझा जाना चाहिए.
ताज्जुब तो इंडिया ब्लॉक को लेकर अरविंद केजरीवाल के स्टैंड पर होना चाहिए. अरविंद केजरीवाल के तीन-तीन सांसदों का विपक्षी गठबंधन की मीटिंग में शामिल होना, और ऐन उसी वक्त ये दावा भी जारी रखना कि आम आदमी पार्टी इंडिया ब्लॉक का हिस्सा नहीं है, वस्तुस्थिति को समझने के लिए काफी है - और ये बिल्कुल वैसा ही जैसा इंडिया ब्लॉक के प्रति ममता बनर्जी की रुख रहा है.
सवाल तो ये है कि अगर अरविंद केजरीवाल इंडिया ब्लॉक से बाहर हैं, तो ममता बनर्जी कहां अंदर हैं - ये अंदर और बाहर होने की शर्तें क्या हैं?
क्या ऐसा नहीं लगता कि अरविंद केजरीवाल आज की तारीख में इंडिया ब्लॉक के साथ वैसा ही व्यवहार करने लगे हैं, जैसा अब तक सिर्फ ममता बनर्जी करती रही हैं. आखिर इंडिया ब्लॉक में ये कौन सा लुकाछिपी का खेल चल रहा है?
मुद्दों पर साथ, तकनीकी तौर पर अलग!
अरविंद केजरीवाल इंडिया ब्लॉक में सशर्त शामिल हुए थे, और अपनी शर्तों पर ही छोड़ भी दिया. अरविंद केजरीवाल इंडिया ब्लॉक में तब शामिल हुए थे, जब लोकसभा चुनाव 2024 से पहले संसद में दिल्ली सेवा बिल लाया गया था. तब शर्त ये थी कि कांग्रेस भी आम आदमी पार्टी का सपोर्ट करे, तभी आम आदमी पार्टी इंडिया ब्लॉक का हिस्सा होगी.
लोकसभा चुनाव के दौरान भी अरविंद केजरीवाल इंडिया ब्लॉक के साथ सेलेक्टिव तरीके से जुड़े थे. दिल्ली, गुजरात और चंडीगढ़ में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच चुनावी गठबंधन था, लेकिन पंजाब में नहीं. लखनऊ जाकर अखिलेश यादव के साथ तो अरविंद केजरीवाल प्रेस कांफ्रेंस किये थे, लेकिन किसी कांग्रेस नेता के साथ नहीं. जैसे अखिलेश यादव और राहुल गांधी को देखा गया. दिल्ली में भी अरविंद केजरीवाल और किसी कांग्रेस नेता ने मंच शेयर नहीं किया.
आम आदमी पार्टी ने तो लोकसभा चुनाव के बाद ही कांग्रेस के साथ चुनावी गठबंधन करने से मना कर दिया था, लेकिन हरियाणा विधानसभा चुनाव में गठबंधन की कोशिशें हुईं. हां, बात नहीं बनी - और दिल्ली चुनाव तक तो AAP और कांग्रेस आमने सामने ही आ गए थे.
हाल ही में AAP के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा था, हमने कई बार साफ किया है कि आम आदमी पार्टी इंडिया ब्लॉक में शामिल नहीं है, और हमारी स्थिति अब भी वही है... हमने केवल SIR के मुद्दे पर विपक्ष का समर्थन किया है, क्योंकि ये भारत में लोकतंत्र को खत्म करने की कोशिश है.
इंडियन एक्सप्रेस के साथ इंटरव्यू में भी विपक्ष के साथ खड़े होने के सवाल पर संजय सिंह का कहना था, वक्त आने पर ही पता चलेगा... अगर भविष्य में भी राष्ट्रीय महत्व के ऐसे ही मुद्दे सामने आते हैं, तो हम उस वक्त स्थिति को देखते हुए विपक्ष को समर्थन देने पर फैसला करेंगे.
मतलब, इसे ऐसे समझा जाए कि मुद्दों पर तो आम आदमी पार्टी विपक्षी गठबंधन के साथ खड़ी है, लेकिन तकनीकी तौर पर इंडिया ब्लॉक से बिल्कुल अलग है - ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की भी तो इंडिया ब्लॉक में बिल्कुल ऐसी ही स्थिति है.
INDIA ब्लॉक में ममता बनर्जी का होना!
बेशक पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इंडिया ब्लॉक से शुरू से ही जुड़ी हैं. जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पहल की तो ममता बनर्जी का सपोर्ट देखने को मिला था. तब ममता बनर्जी का कहना था कि वो नीतीश कुमार और हेमंत सोरेन के साथ मिलकर बीजेपी को हराएंगी. तब कांग्रेस नेतृत्व लालू यादव की पैरवी के बावजूद नीतीश कुमार को भाव नहीं दे रहा था, और संगठन चुनाव के नाम पर मामले को टाल रखा था.
ममता बनर्जी ये भी चाहती थीं कि इंडिया ब्लॉक में सीट शेयरिंग का मामला वक्त रहते सुलझा लिया जाये, लेकिन वो काम नहीं हो सका. ममता बनर्जी ने अपना स्टैंड तभी फाइनल कर लिया था, लेकिन बताया नीतीश कुमार के एनडीए में जाने के ठीक पहले. ममता बनर्जी ने राहुल गांधी की न्याय यात्रा के पश्चिम बंगाल में दाखिल होने से पहले ही लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा कर दी. दोनों के मामलों में फर्क बस ये था कि नीतीश कुमार पाला बदल कर बीजेपी के साथ चले गये, और ममता बनर्जी बगल में खामोश होकर बैठी रहीं.
वोटिंग के आखिरी दौर तक ममता बनर्जी के तेवर नरम नहीं पड़े, लेकिन कांग्रेस के सारे सीनियर नेता सावधानी बरतते हुए सम्मान देते थे. अधीर रंजन चौधरी को छोड़कर, उनका तो मामला भी अलग रहा है. चुनाव खत्म होते होते, ममता बनर्जी के तेवर बदलने लगे थे. एक दिन ममता बनर्जी ने कहा कि पश्चिम बंगाल में टीएमसी का कांग्रेस और सीपीएम के साथ कोई गठबंधन नहीं है. ममता बनर्जी ने इंडिया ब्लॉक की सरकार बनने की सूरत में बाहर से समर्थन देने की भी बात कीं, लेकिन अगले ही दिन सफाई भी दे डालीं.
अगले ही दिन ममता बनर्जी का बयान आया, राष्ट्रीय स्तर पर, मेरी बात गलत तरीके से समझ ली गई, मैं इंडिया ब्लॉक में ही हूं. इंडिया ब्लॉक मेरा ही ब्रेनचाइल्ड है. नेशनल लेवल पर हम साथ है, और आगे भी बने रहेंगे. देखा जाए तो जिस तरह ममता बनर्जी लोकसभा चुनाव में इंडिया ब्लॉक में थीं, आने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में भी वैसे ही रहने वाली हैं.
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद ममता बनर्जी ने एक इंटरव्यू में कहा था, मैंने इंडिया ब्लॉक बनाया था... अभी नेतृत्व करने वाले इसे ठीक से नहीं चला सकते, तो मुझे मौका दें... मैं बंगाल से ही गठबंधन का नेतृत्व करने के लिए तैयार हूं.
ये बात अलग है कि SIR के मुद्दे आने वाले विधानसभा चुनावों ने नेतृत्व का मुद्दा फिलहाल हाशिये की तरफ कर दिया है, और ममता बनर्जी के भाषा आंदोलन को भी कांग्रेस का समर्थन हासिल हो गया है - लेकिन, लब्बोलुआब यही है कि ममता बनर्जी और अब अरविंद केजरीवाल इंडिया ब्लॉक में एक ही मोड़ पर खड़े हो गए हैं.