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जमानत मिले या ना मिले... केजरीवाल के सामने संकट कई हैं

अरविंद केजरीवाल को जेल से बाहर आना था, लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने ब्रेक लगा दिया. बड़ी मुश्किल ये नहीं है कि वो जेल में हैं, उससे भी बड़ी मुश्किलें बाहर बेसब्री से इंतजार कर रही हैं - और लोकसभा चुनाव के नतीजे तो यही इशारा कर रहे हैं कि केजरीवाल को मुश्किलों से जल्दी निजात नहीं मिलने वाली है.

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अरविंद केजरीवाल के लिए जेल से ज्यादा मुश्किलें तो बाहर इंतजार कर रही हैं.
अरविंद केजरीवाल के लिए जेल से ज्यादा मुश्किलें तो बाहर इंतजार कर रही हैं.

अरविंद केजरीवाल को दिल्ली आबकारी नीति केस में राउज एवेन्यू कोर्ट से जमानत मिल गई थी, लेकिन 24 घंटे के भीतर ही हाई कोर्ट ने रोक लगा दी. सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है, और जब तक हाई कोर्ट फैसला नहीं आता, अरविंद केजरीवाल को जेल में ही रहना पड़ेगा.

निचली अदालत में प्रवर्तन निदेशालय जमानत का फैसला 48 घंटे के लिए होल्ड करने की मांग कर रहा था, लेकिन अपील नामंजूर हो गई. ऐसी ही कुछ दलीलों के साथ ईडी ने हाई कोर्ट में जमानत के फैसले के खिलाफ अपील की, और सुनवाई होने तक उस पर रोक लगा दी गई. 

दिल्ली हाई कोर्ट में ईडी के वकील का कहना था कि निचली अदालत में बहस का पर्याप्त समय नहीं दिया गया. ASG एसवी राजू ने हाई कोर्ट को बताया कि ट्रायल कोर्ट ने ईडी की तरफ से पेश दलीलों पर ध्यान नहीं दिया.

लोकसभा चुनाव 2024 में चुनाव कैंपेन के लिए सुप्रीम कोर्ट से अरविंद केजरीवाल को 21 दिन के लिए अंतरिम जमानत मिली थी. आखिरी दौर की वोटिंग खत्म होने के अगले ही दिन 2 जून को अरविंद केजरीवाल ने सरेंडर कर दिया. उससे पहले अरविंद केजरीवाल ने मेडिकल ग्राउंड पर जमानत एक हफ्ता बढ़ाने की गुजारिश की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी. 

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लोकसभा चुनाव से अरविंद केजरीवाल को काफी उम्मीदें थीं, लेकिन नतीजों ने नाउम्मीद कर डाला. दिल्ली में तो आम आदमी पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली, पंजाब में भी भगवंत मान सरकार होने के बावजूद लोगों का अपेक्षित समर्थन नहीं मिला.

अब तो ऐसा लगता है जैसे अरविंद केजरीवाल की चुनौतियां खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं - और ये स्थिति उनके जेल में रहने के दौरान ही नहीं, जमानत पर बाहर आने के बाद भी बनी रहने वाली है.

1. रिमोट से चल रही दिल्‍ली सरकार के सामने चुनौतियों की कमी नहीं

दिल्ली में तो शुरू से ही सरकार रिमोट कंट्रोल से चलती रही है. अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते जरूर हैं, लेकिन अपने पास कोई भी मंत्रालय नहीं रखते. जब डिप्टी सीएम के रूप में मनीष सिसोदिया काम कर रहे थे, सब वही संभालते थे. और मनीष सिसोदिया के जेल चले जाने के बाद वैसे ज्यादातर विभाग आतिशी और सौरभ भारद्वाज के बीच बांट दिये गये हैं. 

देखा जाये तो अरविंद केजरीवाल के जेल चले जाने के बाद कामकाज पर बस इतना ही फर्क पड़ा है कि जरूरी फाइलों पर दस्तखत करने के लिए वो उपलब्ध नहीं होते - वरना, जेल से तो वो सरकार वैसे भी चला ही रहे हैं. और इस बात पर किसी को आपत्ति भी नहीं है. अरविंद केजरीवाल को ऐसा करने से रोकने के लिए कई याचिकाएं दायर की गईं, और खारिज भी हो गईं. 

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हालत तो ये हो गई है कि दिल्ली में पानी संकट का हाल भी कोविड के प्रकोप जैसा हो गया है. जैसे कोरोनाकाल में केजरीवाल सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी नजर आ रही थी, पानी संकट को लेकर भी हालत मिलती जुलती ही है. कोविड के वक्त तो केंद्र सरकार को दिल्ली में उतरना पड़ा था, और केंद्रीय मंत्री अमित शाह खुद मोर्चा संभाल लिये थे. 

प्रदूषण से लेकर ऐसे तमाम समस्याएं हैं जो दिल्ली सरकार के लिए मुश्किलों का सबब बनी हुई है - और बात बात पर दिल्ली के उपराज्यपाल और केजरीवाल सरकार में टकराव तो जैसे पूरे साल का खेल बना हुआ है. 

2. स्‍वाति मालीवाल वाला मामला नहीं सुलझने तक गले की हड्डी बना रहेगा

स्वाति मालीवाल केस तो अरविंद केजरीवाल के जमानत पर छूटे होने के दौरान का ही मामला है. अगर अरविंद केजरीवाल जमानत पर नहीं छूटे होते, और स्वाति मालीवाल मिलने के लिए जेल गई होतीं तो मारपीट के आरोप जैसा वायका भी नहीं हुआ होता. 

इस केस में अब तक तो यही सामने आया है कि स्वाति मालीवाल, अरविंद केजरीवाल से मिलने के लिए मुख्यमंत्री आवास गई हुई थीं, और तभी, उनका आरोप है, मुख्यमंत्री के पीएस बिभव कुमार ने उनके साथ मारपीट की. स्वाति मालीवाल ने वहीं से दिल्ली पुलिस को कॉल किया, और बाद में शिकायत भी दर्ज करा दी. एफआईआर दर्ज होने के बाद बिभव कुमार को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. फिलहाल बिभव कुमार जेल में हैं, और उनकी जमानत याचिका खारिज हो चुकी है. 

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मालीवाल केस इतना नहीं उलझता अगर अरविंद केजरीवाल ने इसे भी ईडी केस की तरह राजनीतिक मुद्दा नहीं बना लिया होता. जैसे संजय सिंह ने सबसे पहले बिभव कुमार के खिलाफ अरविंद केजरीवाल के एक्शन लेने की बात कही थी, शायद वहीं खत्म हो जाता. अरविंद केजरीवाल, बिभव कुमार को न सिर्फ अपने साथ घुमाते रहे, बल्कि स्वाति मालीवाल का साथ न देकर अपनी लिए नई मुसीबत मोल ली. 

पुलिस तक को मामले को स्वाति मालीवाल ने पहुंचा ही दिया था, लेकिन अरविंद केजरीवाल चाहते तो कोर्ट जाने से रुक भी सकता था. स्वाति मालीवाल का कहना है कि वो पहले इंतजार कर रही थीं, और उसके बाद ही एफआईआर दर्ज कराया था.

अब तो मामला कोर्ट में है, लेकिन इसमें राजनीति भी घुस चुकी है - और जब तक ये मामला सुलझता नहीं, ये अरविंद केजरीवाल के गले की हड्डी बना रहेगा.  

3. लोकसभा चुनाव में दिल्‍ली की सभी सीटें हारने वाली AAP का नया रोल तय नहीं

INDIA गठबंधन में राहुल गांधी, शरद पवार, अखिलेश यादव और ममता बनर्जी के मुकाबले अरविंद केजरीवाल का प्रदर्शन सिफर ही रहा है - जाहिर है गठबंधन में अरविंद केजरीवाल की हैसियत पर भी इसका असर पड़ेगा ही. 

पहले तो अरविंद केजरीवाल 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे बड़े चैलेंजर होने का दावा किया करते थे, लेकिन चुनाव नतीजे आने के बाद इंडिया गठबंधन में उनकी क्या भूमिका होगी तय होना बाकी है - और उनका रोल भी कोई और ही तय करेगा, दिल्ली की चार सीटें हार जाने के बाद अपना रोल वो खुद तो तय नहीं ही कर पाएंगे. 

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अरविंद केजरीवाल के जेल जाने के बाद स्वाति मालीवाल ने उनके लिए नई मुसीबत खड़ी कर दी है. अब वो भी अपनी तरफ से इस मामले में राजनीतिक लड़ाई शुरू कर चुकी हैं - अरविंद केजरीवाल के जमानत पर जेल से बाहर आने से पहले ही नई मुसीबत उनका इंतजार कर रही है. 

4. बाकी विपक्षी नेताओं के मुकाबले केजरीवाल का वजूद नीचा कैसा हो गया

असल में, स्वाति मालीवाल ने INDIA ब्लॉक के बड़े नेताओं को पत्र लिख कर मिलने का वक्त मांगा है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी और एनसीपी नेता शरद पवार को लिखा पत्र भी सोशल साइट X पर शेयर किया है - इंडिया गठबंधन के नेताओं से मिलकर वो घटना के बारे में विस्तार से बताना चाहती हैं. 

अपने पत्र में स्वाति मालीवाल ने अब तक कि अपनी उपलब्धियां गिनाई है, जिनमें ज्यादातर महिलाओं के लिए लड़ी गई लड़ाई है. और कहा है कि उनके मामले में उनकी ही आम आदमी पार्टी यानी अरविंद केजरीवाल के लोग ही उनके चरित्रहनन पर उतर आये हैं - और उनको रेप और जान से मारने की धमकियां दी जा रही हैं. 

देखा जाये तो इस मामले में अब तक सिर्फ कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने ही खुल कर स्वाति मालीवाल का साथ देने की बात कही है. अखिलेश यादव ने तो इस घटना को मामूली बताते हुए बिलकुल भी तवज्जो नहीं दी. 

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स्वाति मालीवाल की ये राजनीतिक लड़ाई अरविंद केजरीवाल पर भारी पड़ सकती है. अगर राहुल गांधी, शरद पवार और ममता बनर्जी जैसे विपक्ष के नेताओं ने इस मुद्दे पर अरविंद केजरीवाल का साथ नहीं दिया, तो माना जाएगा कि वे स्वाति मालीवाल के पक्ष में खड़े हैं - और ये चीज गठबंधन में अरविंद केजरीवाल का पक्ष हल्का कर देगा. 

5. केजरीवाल को कब तक सत्‍ता में रखेगा मुफ्त बिजली-पानी?

अपने संदेशों में अरविंद केजरीवाल कहते रहे हैं कि जेल से छूटने के बाद वो महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपये देने के वादे को पूरा करेंगे. महिलाओं को दिल्ली की बसों में मुफ्त यात्रा की तरह वो शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सुविधाएं भी वो फ्री में देने की लोकसभा चुनाव में भी बात कर रहे थे, लेकिन चुनाव नतीजे तो यही बता रहे हैं कि लोगों की उनकी बातों में दिलचस्पी नहीं रही. 
जरूरी नहीं कि लोकसभा चुनाव की तरह ही अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के लोग विधानसभा चुनाव में भी लें. क्योंकि लगातार तीन लोकसभा चुनावों में दिल्ली की सभी सात सीटें बीजेपी की झोली में डाल देने के बावजूद लोग विधानसभा चुनावों के बाद अरविंद केजरीवाल की ही सरकार बनवाते हैं - और अब तो एमसीडी भी अरविंद केजरीवाल के हवाले ही कर दी है. 

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दिल्ली में 2025 की फरवरी में ही विधानसभा के चुनाव होने हैं. लोकसभा चुनाव में तो कांग्रेस अरविंद केजरीवाल के साथ थी, लेकिन आम आदमी पार्टी के नेताओं का कहना है कि विधानसभा चुनाव में ये गठबंधन नहीं चलेगा - और बीजेपी ने तो लोकसभा चुनाव में ही जाल बिछाना शुरू कर दिया था.

मनोज तिवारी को छोड़ कर दिल्ली में सभी नये सांसद आये हैं, जिन्हें बीजेपी ने काफी सोच समझ कर दिल्ली में खड़ा किया है. क्योंकि उनमें से ही कोई अगले विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल को चैलेंज करने वाला है - मनोज तिवारी की ही तरह बांसुरी स्वराज को भी अरविंद केजरीवाल पर हमला बोलते देखा जा रहा है.  

अव्वल तो अरविंद केजरीवाल तीसरी बार मुख्यमंत्री बने हैं, लेकिन मुफ्त की चीजें देकर कर वो लगातार दो विधानसभा चुनाव जीत चुके हैं - क्या आगे भी ये चल पाएगा? तब क्या होगा जब कोई और पार्टी अरविंद केजरीवाल की ही लाइन अपना ले.

ये ठीक है कि अरविंद केजरीवाल के चुनाव जीतने का ये फंडा अब तक कामयाब रहा है, लेकिन आगे भी ऐसा ही रहेगा इस बात की क्या गारंटी है? 

तब क्या होगा अगर कोई और भी पार्टी कांग्रेस या बीजेपी भी ऐसे ही चुनाव जीतने के लिए मुफ्त की चीजें देने का वादा कर बैठें. वैसे अभी तक बीजेपी की तरफ से ऐसा कोई मुफ्त की बिजली पानी जैसी चीजें लोगों को देने का संकेत नहीं मिला है - और प्रधानमंत्री मोदी तो इसे रेवड़ी ही बताते रहे हैं. 

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