UCC यानी समान नागरिक संहिता लागू करने की बात केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में भी दोहराई है. हालांकि, अमित शाह ने ये बात बीजेपी शासित राज्यों के लिए ही कही है. और, उदाहरण दिया है उत्तराखंड का, जहां बीजेपी की सरकार ने इसे प्रायोगिक तौर पर लागू किया है.
अमित शाह ने ये ऐलान ऐसे वक्त किया है जब दिल्ली में जल्दी ही विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं. निश्चित रूप से इसका मकसद चुनाव के दौरान हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाना है. ऐसा इसलिए भी क्योंकि महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव में बीजेपी को हिंदुत्व का मुद्दा उछालने का फायदा भी मिला है.
लेकिन, झारखंड में बीजेपी को हिंदुत्व की राजनीतिक लाइन का बिल्कुल भी फायदा नहीं मिला, जबकि झारखंड विधानसभा चुनाव में बीजेपी के संकल्प पत्र में भी यूसीसी को शामिल किया गया था - और, लगे हाथ ये भी साफ किया गया था कि यूसीसी लागू किये जाने से आदिवासी समुदाय अप्रभावित रहेगा.
और, अमित शाह ही नहीं, स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी समान नागरिक संहिता का खासतौर पर जिक्र किया था.
अब दिल्ली विधानसभा चुनाव के ऐन पहले अमित शाह का संसद में यूसीसी लागू किये जाने का ऐलान करना बीजेपी की चुनावी रणनीति का हिस्सा लग रहा है - लेकिन दिल्ली में क्या बीजेपी को इसका फायदा मिलेगा, फिलहाल ये बड़ा सवाल है.
बीजेपी का दिल्लीवालों से वादा, सरकार बनी तो लागू होगा UCC
समान नागरिक संहिता पर अमित शाह के ताजा बयान के बाद साफ हो गया है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव भी बीजेपी हिंदुत्व के एजेंडे के साथ ही लड़ने जा रही है.
संसद में संविधान पर बहस के जवाब में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, संविधान में एक एंट्री है, जो समान नागरिक संहिता की बात करती है... हर जाति और हर धर्म के लिए समान कानून होना चाहिये, इसके बावजूद यूसीसी क्यों नहीं आया?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि बीजेपी की सरकार देश के हर राज्य में UCC यानी समान नागरिक संहिता लागू करेगी. अमित शाह ने कहा संविधान सभा समाप्त होने के बाद नेहरू (पूर्व प्रधानिमंत्री जवाहरलाल नेहरू) मुस्लिम पर्सनल लॉ लेकर आये, इसलिए इसे लागू नहीं किया गया.
बीजेपी का विजन पेश करते हुए अमित शाह कहते हैं, हिन्दू न्याय शास्त्र के आधार पर देश का कानून बने हम नहीं चाहते हैं, लेकिन कांग्रेस द्वारा लाये गए हिन्दू कोड बिल में पुरानी न्याय व्यवस्था का कोई जिक्र नहीं है... चूंकि, मुस्लिमों के लिए पर्सनल लॉ लाये इसलिए हिन्दुओं के लिए ये ले आये.
पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली उत्तराखंड का जिक्र करते हुए अमित शाह ने कहा, हमने उत्तराखंड में यूसीसी लागू किया है... उत्तराखंड सरकार ने मॉडल कानून के रूप में इसे पारित किया है... इस पर धर्म के विद्वान चर्चा करेंगे... बाद में भाजपा की सरकार हर राज्य में कॉमन सिविल कोड लेकर आएगी.
मतलब साफ है. दिल्ली में भी बीजेपी की सरकार बनी तो यूसीसी को लागू किया जाएगा. जाहिर है, पूर्ण राज्य का दर्जा न होने से तकनीकी दिक्कत आई तो केंद्र की सत्ता में होने के कारण बीजेपी समाधान निकाल ही लेगी. डबल इंजन सरकार का फायदा तो मिल ही सकता है, बशर्ते दिल्ली के लोग भी ऐसा ही चाहते हों.
बीजेपी का UCC दांव केजरीवाल के खिलाफ है, या कांग्रेस के?
करीब ढाई दशक से दिल्ली की सत्ता से बाहर बीजेपी हर हाल में सत्ता पर काबिज होना चाहती है. मुश्किल ये है कि 2013 के बाद से बीते चुनाव तक बीजेपी दिल्ली में दहाई का आंकड़ा भी नहीं पार कर पा रही है.
चूंकि अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर भी हावी है, इसलिए बीजेपी के लिए स्वाभाविक रूप से स्कोप है. बड़ी संख्या में मौजूदा विधायकों के टिकट काटकर अरविंद केजरीवाल ने भी अपने खिलाफ सत्ता विरोधी लहर की बात मान ली है.
हरियाणा और महाराष्ट्र की जीत से बीजेपी के कार्यकर्ताओं और समर्थकों में बढ़े जोश को बनाये रखने के लिए ही बीजेपी नेता अमित शाह ने यूसीसी का मुद्दा आगे बढ़ाया है.
अव्वल तो बीजेपी के निशाने पर कांग्रेस ही नजर आती है, लेकिन अरविंद केजरीवाल पर भी असर तो होगा ही. भले ही आम आदमी पार्टी के नेता जय श्रीराम के नारे क्यों न लगाते फिरते हों.
निश्चित तौर पर बीजेपी को ये शक तो होगा ही कि कहीं दिल्ली के लोग आम आदमी पार्टी से खफा होकर कांग्रेस का रुख न कर लें. जैसे पंजाब में लोगों ने कांग्रेस से ऊब कर 2022 में आम आदमी पार्टी का रुख कर लिया था. 2023 में भी बीजेपी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ तो जीत लिया, लेकिन बीआरएस की सरकार से ऊबे हुए तेलंगाना के लोगों ने कांग्रेस को वोट दे दिया.