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10 साल पुरानी कारों को कोर्ट रोक सकता है, खतरनाक पुराने विमानों को क्यों नहीं?

हमारे देश में 10 साल पुरानी कारों को लोगों को लिए खतरा मान लिया जाता है पर खतरनाक विमानों के लिए कोई आयु सीमा नहीं निर्धारित नहीं की गई है. अगर पलूशन जांच के बाद भी कारें सड़कों पर नहीं चल सकतीं तो जांच के सहारे पुराने से पुराना विमान भी आकाश में क्यों उड़ रहा है?

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अहमदाबाद हादसे में 265 लोगों की जान लेने वाले विमान की उम्र 12 साल के करीब थी.
अहमदाबाद हादसे में 265 लोगों की जान लेने वाले विमान की उम्र 12 साल के करीब थी.

देश के करीब सभी बढ़े शहरों में सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए 10 साल से पुरानी डीजल कारें और 15 साल से पुरानी पेट्रोल कारें नहीं चल सकती हैं. चाहे वो कारें जीरों परसेंट पलूशन फैलाती हों उन्हें स्क्रैप करना ही होगा. जब से अहमदाबाद में एयर इंडिया के 12 साल पुराने विमान का क्रैश हुआ है लोग सवाल उठा रहे हैं आखिर इन पुराने और खामियों वाले विमानों को बंद करने के लिए हमारे देश की न्यायपालिका का विवेक क्यों नहीं जागता है? सोशल मीडिया पर ऐसे सवाल हजारों लोग पूछ रहे हैं. जाहिर है कि उनकी बातों में दम तो है.

दिल्ली-एनसीआर सहित देश के करीब बड़ी शहरों में सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने 2015-2018 के फैसलों के तहत प्रदूषण नियंत्रण के लिए 10 साल पुरानी डीजल कारों और 15 साल पुरानी पेट्रोल कारों पर प्रतिबंध लगाया है. यह नीति राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) और BS-6 उत्सर्जन मानकों के अनुरूप है. दिल्ली में 10 साल पुरानी डीजल कारों को स्क्रैप करना अनिवार्य है, और उनका पंजीकरण रद्द हो जाता है. 

भारत में विमानों की उम्र सीमा नहीं

नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) और अंतरराष्ट्रीय नागर विमानन संगठन (ICAO) के नियमों के तहत, भारत में विमानों के लिए कोई निश्चित उम्र सीमा नहीं है. इसके बजाय, विमानों की उड़ान योग्यता (airworthiness) उनकी तकनीकी स्थिति, रखरखाव, और नियमित निरीक्षणों पर निर्भर करती है. बोइंग 787-8, जो अहमदाबाद में दुर्घटनाग्रस्त हुआ, 11.5 साल पुराना था और अपनी डिज़ाइन जीवन अवधि (44,000 उड़ान चक्र या 30-50 वर्ष) के भीतर था. एयर इंडिया और स्पाइसजेट जैसे वाहक 10-20 साल पुराने विमानों का उपयोग करते हैं.

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कहने को विमानन उद्योग में उम्र के बजाय रखरखाव और सुरक्षा मानकों पर जोर दिया जाता है. DGCA और FAA (फेडरल एविएशन एडमिनिस्ट्रेशन) नियमित ऑडिट, जैसे C-चेक (हर 18-24 महीने) और D-चेक (हर 6-10 साल), अनिवार्य करते हैं. सवाल उठता है कि इस तरह की व्यवस्था कारों के सिलसिले में क्यों नहीं की जा सकती है? दरअसल सवाल में ही जवाब छुपा हुआ है. कारों पर रोक लगाने में कार कंपनियों को फायदा है. इसके ठीक विपरीत विमानों की आयु निर्धारण से विमान कंपनियों को बहुत घाटा है. मतलब आदमी के जान की कीमत दोनों ही पक्षों में गौण हो जाती है. फायदा दोनों ही पक्षों में महत्वपूर्ण हो जाता है.

कारें कम जानलेवा फिर भी उनके लिए कठोर कानून

औसत कार का जीवनकाल 20 से 25 साल ही होता है. पर करीब 75 प्रतिशत कारें ऐसे लोग चलाते हैं जो दस साल में भी एक लाख से 2 लाख किलोमीटर नहीं चल पाती हैं. बहुत से लोग ऐसे होते हैं जो रिटायरमेंट के बाद कभी कभी ही कारों का इस्तेमाल करते हैं. इसके साथ ही उनके पास दूसरी कार खरीदने के लिए न पैसे होते हैं और न ही वो बैंकों से लोन के लिए वो इलिजबिल होते हैं.

 कल्पना करिए कि एक ऐसा शख्स जिसके पास केवल 50000 किलोमीटर चली गाड़ी हो और उसके पास नई कार खरीदने की हैसियत नहीं है तो उसे अब अपने बुढ़ापे में जब उसे कार की सबसे अधिक जरूरत होगी वो उससे मरहूम होगा. जबकि एयर इंडिया जैसी कंपनियों को अपने पुराने विमान सरेंडर करके नए विमान लाने में कोई आर्थिक कठिनाई सामने नहीं आने वाली है.

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दूसरी बात यह भी है कि तमाम रिसर्च में यह बात  साबित हो सकी है कि दिल्ली में प्रदूषण फैलाने वाले कारणों में डीजल और पेट्रोल वाली कारों का कोई खास रोल नहीं है. ये सही है कि प्रदूषण फैलाने के मामले में विमान कंपनियों को योगदान कारों के मुकाबले बेहद कम है.पर प्रदूषण का संबंध भी आदमी के जान की कीमत से ही है. एयर कंपनियां पुराने विमानों से प्रदूषण तो नहीं फैलाती हैं पर आदमी की जान के लिए तो खतरा बनती ही हैं.

बार-बार के हादसे जनता के विश्वास को कम करते हैं. यदि पुराने विमान खामियों से ग्रस्त हैं, तो प्रतिबंध औप सुरक्षा को बढ़ाना ही चाहिए. ये कोई जरूरी नहीं है कि उनकी उम्र सीमा कारों के बराबर हो. सरकार और कोर्ट को आगे बढ़कर बूढ़े विमानों की उम्र सीमा तय करनी होगी. पुराने विदेशी विमानों पर निर्भरता कम करके, भारत स्वदेशी विमानन (HAL) या नए मॉडल्स (एयरबस A320neo) पर निवेश करना चाहिए.
ये तर्क दिया जा सकता है कि उम्र-आधारित प्रतिबंध अवैज्ञानिक हो सकता है, क्योंकि अच्छे रखरखाव वाला पुराना विमान सुरक्षित हो सकता है. ICAO और DGCA इस दृष्टिकोण का समर्थन करते हैं. ठीक उसी तरह कारों की उम्र भी तय नहीं की जा सकती. जिस तरह एयरबस या स्वदेशी विमान तुरंत पुराने बेड़े को बदल नहीं सकते. बोइंग और एयरबस की डिलीवरी में 5-10 साल लगते हैं. उसी तरह देश के करोड़ों लोग तुरंत पुरानी कार को बदलकर नई नहीं खरीद सकते .  

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हैरान करने वाली है विमानों की उम्र

एयर इंडिया के कुछ बोइंग 777-200LR और 777-300ER 2007 से संचालित हैं, जो 18 साल पुराने हैं. चार बोइंग 747 (25+ साल पुराने) बेड़े में हैं, लेकिन ये सक्रिय रूप से उड़ान नहीं भर रहे हैं. बोइंग 787 ड्रीमलाइनर, जैसे अहमदाबाद हादसे वाला (11.5 साल पुराना), 2012 से संचालित था.

आंकड़े बताते हैं कि एयर इंडिया के लगभग 40-50% विमान (लगभग 80-100) 10 साल से अधिक पुराने हैं, विशेष रूप से बोइंग 777 और कुछ 787. एयर इंडिया ने 2024 में $400 मिलियन के नवीनीकरण कार्यक्रम की घोषणा की, जिसमें 67 पुराने विमानों (787 और 777) को अपग्रेड किया जाएगा.

इंडिगो के विमान अपेक्षाकृत नए हैं.जिसका औसत उम्र 7.3 साल है  जो वैश्विक औसत 14.8 साल की तुलना में ये बेहतर है. हालांकि, कुछ A320-200, जैसे VT-IKC (18.88 साल) और VT-IHV (17.76 साल), 10 साल से अधिक पुराने हैं.

अनुमान: इंडिगो के 10-15% विमान (लगभग 35-50) 10 साल से अधिक पुराने हो सकते हैं. स्पाइसजेट के  20-30% विमान 10 साल से अधिक पुराने हैं.
 

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