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मेघालय की यात्रा, राजा रघुवंशी का मर्डर और 8 साल की उस मासूम बच्ची का चेहरा...

2 जून को राजा रघुवंशी की लाश चेरापूंजी की एक घाटी में मिलने की खबर आई. इसके बाद से ही मेघालय और वहां के लोग निशाने पर आ गए. मेघालय और पूरे पूर्वोत्तर में जनजातियों के खिलाफ सोशल मीडिया पर नस्लीय टिप्पणियां की गईं. मेघालय की यात्रा को असुरक्षित बताया जाने लगा.

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एक मर्डर की वजह से निशाने पर क्यों मेघालय
एक मर्डर की वजह से निशाने पर क्यों मेघालय

अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए पहचाना जाने वाला खूबसूरत पहाड़ी राज्य मेघालय इन दिनों एक जघन्य हत्याकांड की वजह से सुर्खियों में है. कुछ दिन पहले जब मीडिया में खबरें चल रही थीं कि हनीमून के लिए मेघालय आया इंदौर का एक नवविवाहित जोड़ा कई दिनों से लापता है, मैं परिवार के साथ छुट्टियां मनाने मेघालय में ही थी. इस खबर ने हमें भी सतर्क कर दिया, बल्कि कुछ-कुछ खौफ में भी भर दिया. परिवार के लोग यही चर्चा कर रहे थे कि यहां सतर्कता से घूमना होगा, क्योंकि एक कपल रहस्यमयी तरीके से गायब हो गया है.

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2 जून को मिली राजा रघुवंशी की लाश

2 जून को राजा रघुवंशी की लाश चेरापूंजी की एक घाटी में मिलने की खबर आई. इसके बाद से ही मेघालय और वहां के लोग निशाने पर आ गए. मेघालय और पूरे पूर्वोत्तर में जनजातियों के खिलाफ सोशल मीडिया पर नस्लीय टिप्पणियां की गईं. मेघालय की यात्रा को असुरक्षित बताया जाने लगा. इतेफाक से हम भी 2 जून को शिलॉग से चेरापूंजी के रास्ते पर थे. करीब 2 घंटे का रास्ता बारिश और कोहरे के बीच तय हुआ.

चेरापूंजी पहुंचे तो वहां भी चारों तरफ घना कोहरा था. कुछ दूर की चीजें भी नजर नहीं आ रही थीं. अनजान रास्ता, सुनसान सड़कें और उसपर राजा रघुवंशी की खबर ने हमको भी दहशत में ला दिया. हमने वहां से वापस लौटने का फैसला किया, लेकिन घने कोहरे की वजह से ड्राइवर रास्ता भटक गया और हम लोग घंटों तक एक अनजान रास्ते पर चलते रहे. मोबाइल में नेटवर्क नहीं था, इसलिए गूगल मैप भी काम नहीं कर रहा था. सड़क पर दूर-दूर तक कोई इंसान नहीं नजर आ रहा था, जिससे रास्ता पूछा जा सके. करीब 3 घंटे की ड्राइव के बाद कोहरे के बीच एक बोर्ड नजर आया. बोर्ड पर किसी गांव MAW-AH का नाम लिखा था, जो उस रास्ते में आगे था.

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जंगल में बसा वो गांवजंगल में बसा वो खूबसूरत गांव

बोर्ड देखकर थोड़ी राहत मिली कि किसी गांव पहुंच जाएंगे तो वहां लोग मिलेंगे उनसे मदद मिल जाएगी. हमारी गाड़ी उस गांव के रास्ते पर निकल पड़ी. कुछ ही देर में हम उस गांव में थे, जहां मुश्किल से 10 घर रहे होंगे. सड़क पर 3-4 छोटे बच्चे फुटबॉल खेल रहे हैं. हमें देखकर उनके चेहरे पर अजनबियों को देखकर होने वाली हैरानी नहीं बल्कि मुस्कान थी. उन्होंने हमारी तरफ फुटबॉल फेंकी. बच्चे 5 या 6 साल के रहें होंगे, लेकिन फुटबॉल में उनका टैलेंट दंग करने वाला था. उनको हमारी भाषा समझ नहीं आ रही थी इसलिए इशारों-इशारों में ही बातें हो रही थीं. शाम होने वाली थी. सुबह से चले हम लोगों को खाने के लिए कुछ नहीं मिला था. उस गांव में उन बच्चों के अलावा सड़क पर कोई दिख भी नहीं रहा था. हमने उनसे हिंदी और इंग्लिश दोनों में पूछने की कोशिश की कि यहां कुछ खाने के लिए मिलेगा, लेकिन वो समझ नहीं पाए.  

 

सामने एक घर दिखा, जिसमें बाहर प्लास्टिक की चार कुर्सियां रखी थीं. हम वहां गए तो सामने एक महिला खड़ी थी. हमने पूछा यहां कुछ खाने को मिलेगा? लेकिन वो भी कुछ समझ नहीं पाई. तभी उस महिला के पीछे से 8 साल की एक बच्ची आई और उसने टूटी फूटी इंग्लिश में हमें घर के अंदर आने को कहा. अंदर एक छोटा सा हॉल था, जिसमें प्लास्टिक की कुर्सियां रखी थीं. बच्ची दौड़ते हुए अंदर गई और पानी लेकर आई और उसने पूछा- Food?  मैंने अंदर जाकर उसका किचन देखा तो वहां एक छोटा सा बरामदा था, जिसमें एक तरफ जमीन पर गद्दे बिछे थे और घर का सारा सामान भरा था, दूसरी तरफ सीमेंट के एक छोटे से स्लैब पर खाने के बर्तन रखे थे.  किचन की हालत देखकर जैसे मेरी भूख मर गई, लेकिन मेरे परिवार के और लोगों ने खाने का ऑर्डर दे दिया.

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छोटे से किचन में बन रहा था खाना

किचन के अंदर वो महिला खाना निकालकर दे रही थी और वो छोटी बच्ची सबको सर्व कर रही थी. खाने के नाम पर चावल, चने और कोई स्थानीय सब्जी थी. मेरी फैमिली ने खाना शुरू किया तो चटखारे लेने लगे. मैंने भी हिम्मत करके खाना टेस्ट किया और हैरान रह गई. मुझे उम्मीद नहीं थी कि उस जंगल में इतना टेस्टी खाना मिल सकता है. उस लड़की ने अपनी टूटी फूटी इंग्लिश में बताया, कि वो करीब 5 किलोमीटर जंगल का रास्ता तय कर रोज स्कूल जाती है, उसे पढ़ना पसंद है. स्कूल के बाद वो मां की मदद करती है. 

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खाना खाने के बाद जब हमने बिल मांगा तो वो महिला अपनी उंगलियों से कुछ गिनने की कोशिश कर रही थी, लेकिन शायद हिसाब नहीं लगा पा रही थी कि कितना पैसा हुआ, क्योंकि उस जंगल में वहां ज्यादा कोई आता जाता नहीं था. जब मां हिसाब नहीं बता पाई तो उस बच्ची ने तपाक से कहा- 200 रुपये. हम हैरान थे कि 6 प्लेट खाने का सिर्फ 200 रुपये?. मैंने वहां से निकलते हुए बच्ची से उसके पिता के बारे में पूछा तो बोली- Papa Dead. पता चला कि कुछ महीने पहले उसके पिता का निधन हो गया था. उसके 5 भाई- बहन है और उसकी मां जैसे-तैसे घर चलाती है. 

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वो 8 साल की बच्ची

हमने घर की महिला को बिल के अलावा 500 रुपये और दिए, लेकिन उसने साफ इनकार कर दिया. वो पैसे लेने को बिल्कुल तैयार नहीं हो रही थी. जब उससे इशारों में कहा गया कि ये बच्चों के लिए गिफ्ट है, तब बड़ी मुश्किल से उस महिला ने पैसे लिए और वो रोने लगी. उसने इशारों में पूछा कहां से आई हैं मैंने कहा -दिल्ली से, उसने दोबारा आने का इशारा किया. उसके बाद वो परिवार घर से बाहर आया और हमें रास्ता दिखाने लगा. थोड़ी देर पहले हम जिस शहर में खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे थे, अब वहां किसी तरह का डर नहीं था.  

मेघालय के लोगों को बिना वजह बनाया गया निशाना

मेघालय पुलिस द्वारा राजा की हत्या की जांच और उनकी लापता पत्नी की तलाश के दौरान, कुछ लोगों ने जल्दबाजी में निष्कर्ष निकालते हुए पूर्वोत्तर के निवासियों को ही निशाना बनाना शुरू कर दिया. बिना किसी आधार के पूर्वोत्तर और वहां के लोगों के खिलाफ अपमानजनक और असभ्य भाषा का इस्तेमाल किया गया. हालांकि अब ये खुलासा हो चुका है कि हत्या की साजिश और उसे अंजाम देने वालों, दोनों से ही पूर्वोत्तर वासियों का कोई लेना-देना नहीं था. ये खुलासा मेरे लिए इस मामले में राहत भरा है कि जब भी अपनी मेघालय ट्रिप को याद करूंगी तो मुझे राजा रघुवंशी या उसकी कातिल पत्नी सोनम नहीं बल्कि वो मासूम बच्ची और उसकी मेहनतकश मां का चेहरा याद आएगा.

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