
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गई थीं. रानी लक्ष्मीबाई की देह को अंग्रेज हासिल करना चाहते थे. लेकिन मृत देह की रक्षा उन 745 साधुओं ने की जिन्होंने अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते अपने प्राण न्योछावर कर दिए. लेकिन झांसी की रानी का पार्थिव शरीर अंग्रेजों के हाथ नहीं लगने दिया. इस वाकए को सुनकर आपके रोंगटे खड़े हो गए होंगे.
उस समय की भीषण युद्ध की दास्तां को आप महसूस कर सकते हैं. लेकिन इसके लिए आपको मध्य प्रदेश के ग्वलियर स्थित गंगादास की बड़ी शाला में जाना होगा. जहां आज भी उन साधु संतों की तलवार और तोप सुरक्षित रखे हुए हैं. जिन्होंने अंग्रेजों से लोहा लेते हुए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया. इस भीषण युद्ध में साधु-संतों द्वारा इस्तेमाल किए गए तलवारों समेत अंग्रेजों पर गरजने वाली तोप का पूजन विजयदशमी के मौके पर किया गया.
बात 1857 की है. जब झांसी की रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से युद्ध करते हुए ग्वालियर आ पहुंची थीं और यहां जब अंग्रेजों से संघर्ष हुआ तो लक्ष्मीबाई बुरी तरह घायल हो गईं और वह ग्वालियर किले के पास मौजूद गंगा दास की कुटिया में पहुंच गईं. गंगा दास के आश्रम में उस समय बड़ी संख्या में साधु संत भी रहा करते थे. रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हो गईं लेकिन उन्होंने मरने से पहले संत गंगा दास से यह वचन लिया था कि उनकी देह को अंग्रेजों के हाथ नहीं लगने दिया जाएगा.

अंग्रेजों ने लक्ष्मीबाई की देह को हासिल करने के लिए संत गंगा दास के आश्रम पर आक्रमण कर दिया. लक्ष्मीबाई की देह को अंग्रेजों से बचाने के लिए गंगा दास महाराज ने अपने आश्रम में मौजूद साधुओं को अंग्रेजों का सामना करने का आदेश दिया.
तलवार और भाले लेकर गंगा दास के आश्रम के साधु अंग्रेजों का सामना करने के लिए खड़े हो गए. एक खिड़की को तोड़कर अंग्रेजों ने आश्रम के अंदर घुसने की कोशिश की, जहां साधु संतों ने तोप लगाकर अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए और इतने में गंगा दास जी ने रानी लक्ष्मीबाई की देह का अंतिम संस्कार कर दिया.

इस तरह साधु संतों की वीरता की वजह से अंग्रेज रानी लक्ष्मीबाई की देह को छू तक नहीं सके लेकिन इस संघर्ष में 745 साधुओं का बलिदान हो गया. इन्हीं साधुओं के अस्त्र शस्त्र आज तक गंगा दास की बड़ी शाला में सुरक्षित हैं.

ग्वालियर शहर में लक्ष्मीबाई कॉलोनी में स्थित गंगा दास की बड़ी शाला में हर साल इन अस्त्र शस्त्रों का विधि विधान के साथ पूजन किया जाता है. गंगा दास की बड़ी शाला के महंत रामसेवक दास महाराज बताते हैं कि उस समय साधु संतों द्वारा किए गए बलिदान की जानकारी आज की युवा पीढ़ी को भी होना चाहिए जिससे वह इससे प्रेरणा ले सकें.

उन्होंने बताया कि शहीद हुए साधुओं के अस्त्र-शस्त्रों का विधि विधान से पूजन किया गया और अंग्रेजों से लोहा लेते वक्त इस्तेमाल की गई तोप का भी पूजन किया गया. इसके साथ ही हनुमान जी की भी पूजा की गई और विजयदशमी का पर्व मनाते हुए संघर्ष में शहीद हुए साधुओं को याद किया गया.