कहानी - मुझे मरे हुए लोग दिखते हैं
राइटर - जमशेद क़मर सिद्दीक़ी
"जी बैठिये , पानी लेंगे आप लोग?" स्कूल की प्रिसिंपल साहिबा ने सिंह साहब और उनकी पत्नी को बैठने के लिए कहा और पानी का ग्लास बढ़ाया। सिंह साहब ने कहा, "क्या बात हो गयी प्रिसिंपल मैम, अचानक ऐसे बुला लिया आपने? सब ठीक तो है"
- जी, यही पता करने की कोशिश कर रहे हैं कि सब ठीक है या नहीं... क्योंकि पिछले कुछ दिनों से विश्वास का अंकुर का बर्ताव अजीब हो गया है... वो अजीब बातें करता है और जो ....
- अजीब का क्या मतलब है आपका... सिंह साहब की पत्नी ने बात काटते हुए कहा "क्या कहना चाहती हैं आप... वो बच्चा है, बच्चों में इमैजिनेशन होती है... औऱ उसकी बात को बच्चों की तरह लेना चाहिए....
- मैम हमने कोशिश की... प्रिसिंपल साहिबा के बगल में ख़ड़ी अकुर की क्लास टीचर ने बीच में बात काटते हुए कहा, हमने कोशिश की... लेकिन जो बातें वो कहता है वो... वो डरावनी हैं। क्लास के बच्चे घबराने लगे हैं।
प्रिसिंपल साहिब ने कहा, "देखिए हमें आप गलत मत समझिए। अंकुर हमारा भी बच्चा है। लेकिन बाकी स्टूडेंट्स की सेफ्टी के लिए हम बाकी पेरेंट्स को आंसरेबल हैं। अंकुर पिछले कुछ दिनों से बहुत अजीब तरह से बिहेव कर रहा है... हमें तो लगता है कि ....
- आप उसे बुला सकते हैं क्या ... सिंह साहब की आवाज़ केबिन में गूंज गयी... प्रिंसिपल साहिबा ने साथ खड़ी टीचर को इशारा किया और वो क्लास से चली गयीं। थोड़ी देर के बाद कमरे में एक सात साल का बच्चा अंकुर कमरे में दाखिल हुआ। सर झुकाए हुए वो आया और आकर प्रिसिंपल मैम की टेबल के किनारे खड़ा हो गया।
बेटा... मेरी तरफ देखो प्रिंसिपल मैम ने अंकुर से कहा, तो वो उधर देखने लगा। कौन है वो जिसके बारे में तुम कहते हो कि वो... सिर्फ तुम्हें दिखता है? क्या वो इस वक्त भी तुम्हारे साथ है? (बाकी कहानी नीचे लिखी है। नीचे स्क्रॉल करें। या अगर इसी कहानी को ऑडियो में सुनना चाहते हैं तो ठीक नीचे दिए SPOTIFY या APPLE PODCAST पर क्लिक करें)
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बाकी की कहानी यहां से पढ़ें - अंकुर ने एक बार अपने पीछे पलट कर देखा, जैसे वहां कोई खड़ा हो। जबकि वहां पर कुछ भी नहीं था। अंकुर उस खाली जगह की तरफ देखकर मुस्कुराया, फिर वापस अपने मम्मी-पापा की तरफ देखा और हां में इशारा किया.... अंकुर की मां ने पल्लू से मुंह दबा लिया।
प्रिसिंपल साहिबा ने कहा... लेकिन हमें तो कोई नहीं दिख रहा। अंकुर ने फिर पीछे देखा ... और कहा, ये तो रही... मेरी दोस्त... पर्दे के पास देखिए....
सब ने डरते हुए पर्दे की तरफ देखा और फिर प्रिसिंपल साहिबा ने कहा, देखा आपने... अब बताइये भला ऐसे में बाकी बच्चें डरेंगे या नहीं। हम ये रिस्क नहीं ले सकते... आप अंकुर को ले जाइये... जब ये ठीक हो जाएगा तब आप इसे वापस ले आइयेगा... वी विल डिसाइड देन। अंकुर हमेशा से ऐसा नहीं था.... कुछ साल पहले उसे ये अजीब सी आदत लग गयी थी कि वो किसी ऐसी अदृश्य शख्स से बात करता था और कहता था कि वो उसका दोस्त है... शुऱु शुरु में किसी ने ध्यान नहीं दिया... पर अब ये परेशानी इस हाल तक आ गयी थी। बहरहाल अंकुर के मां-पापा उसे शहर के एक चाइल्ड साइकोलोजिस्ट डॉ ज़हीर के पास ले गए, जो कि उनके पुराने दोस्त भी थे।
डॉक्टर ज़हीर ने अंकुर को अपने पास बैठाया उसकी आंखों की जांच की. कुछ बातचीत की और फिर कहा... ये बिल्कुल नॉर्मल है... साइकॉलोजी में इसके लिए एक टर्म है... इसे कहते हैं Theatre of mind syndrome कहते हैं। होता क्या है कि जब एक शख्स आपके सामने किसी अदृश्य शख्स से लगातार बात करे... तो धीरे-धीरे आपको भी लगने लगता है कि वहां पर कोई है। और आप उसकी एक्ज़ेटेंस को मान लेते हैं। जैसे जब आप थिएटर जाते हैं...तो स्टेज पर एक्टिंग कर रहे लोगों को देखते हैं... आप को पता होता है कि वो सब एक्टिंग कर रहे हैं लेकिन फिर भी आप उन किरदारों को देखकर कभी कभी रो देते हैं, या हंसते हैं... क्योंकि आपके दिमाग का एक हिस्सा उसे सच मानने लगता है। बाकी... आपको घबराने की ज़रूरत नही है। पेन दीजिए अपना....
अचानक ऐसा कहने पर सिंह साहब हड़ब़ड़ा गए... फिर आहिस्ता से पेन निकाल कर सामने रख दिया। डॉक्टर साहब ने पेन टेबल पर वापस रखा और अंकुर से कहा, “अंकुर अपने दोस्त को बोलो कि वो इस पेन को खिसका कर दिखाए” कमरे में गहरी खामोशी थी। अंकुर ने इस बार ऐसे गर्दन घुमाई जैसे वो किसी को चलता हुआ देख रहा हो... सब लोगों की नज़रें उस पेन पर थीं। उसने कहा, मूव इट...
मां-पापा और डॉक्टर गौर से पेन को देख रहे थे.... लेकिन पेन अपनी जगह से नहीं हिला। डॉ साहब मुस्कुराए... देखा.... कुछ नहीं हुआ... औऱ इसलिए क्योंकि कोई है ही नहीं, ये अंकुर के दिमाग का फितूर है। जाओ बेटा अंकुर, रिलैक्स... उन्होंने कहते हुए अंकुर के कंधे पर हाथ रखा... तो वो उठतर मम्मी-पापा के पास चला गया। डॉ ज़हीर बोले, स्कूल वालों से बात मैं कर लूंगा... अब फिक्र मक करो... रिलैक्स... और बताओ... और तुम लोग पार्टी-वार्टी नहीं कर रहे, बुशरा भी कह रही थी कि बहुत वक्त हो गया मिले हुए। अगले महीने तो बुशरा का बर्थ डे है लगता है.. उसमें तो आओगे ना तुम लोग....
डॉ ज़हीर और उनकी पत्नी डॉ बुशरा जो एक गायनाकॉलोजिस्ट थी, वो अंकुर की मम्मी यानि किरन की दोस्त थीं... की डिलीवरी के वक्त डॉ बुशरा ही ने ऑपरेट किया था। ख़ैर, डॉ ज़हीर का फोन बजा और वो कॉल पर बिज़ी हो गए। अंकुर अपनी मम्मी के पास था...जो उसका सर सहलाते हुए उससे बात कर रही थीं। सिंह साहब मेज़ पर रखा वो पेन उठाने के लिए आगे झुका... लेकिन जैसे ही उसने पेन की तरफ हाथ बढ़ाया ... पेन लुढ़क कर दूर हो गया। जैसे किसी ने पेन को खिसका दिया हो।
सिंह साहब का दिल बैठना लगा... केबिन में किसी ने ये नहीं देखा था। सिर्फ सिंह साहब ने देखा था... उसके माथे पर पसीने की बूंद उभर आई।
क्या हुआ किरन ने पूछा तो वो बोला... आ नहीं... कुछ नहीं। काश वाकई कुछ नहीं होता। लेकिन ख़ौफ तो यही था... कि कोई था।
सिंह साहब ने ये पेन वाली बात किसी से नहीं कही, पर वो समझ गए थे कि ये सब यूं ही नहीं है... एक रोज़ जब वो ऑफिस से लौटा तो बैग रखने के बाद हमेशा की तरह अंकुर के रंग बिरंगी दीवारों वाले कमरे की तरफ गए... उन्हें कुछ आवाज़ं सुनाई दीं। दरवाज़े से कान लगाया तो अंदर से अंकुर के हंसने की आवाज़ आ रही थी। अचानक से सिंह साहब ने दरवाज़ा खोला तो जो देखा वो देख कर कांप गए।
अंकुर हवा में था... ऐसे जैसे कोई उसे गोद में लेकर गोल गोल घुमा रहा हो....
अंकुर सिंह साहब चीखे... तो वो जो कोई भी था उसने आहिस्ता से अंकुर को बेड पर लिटा दिया.... और फिर अंकुर पापा कहकर उसकी तरफ आ गया.... अंकुर अभी भी खुश था... सिंह साहब को अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हुआ। ये कैसे हो सकता था। जो हुआ वो सच था या उसका फितूर... वो सोच ही रहा था कि अचानक उसने देखा कि ज़मीन पर बिखरे खिलौनों में से एक खिलाना अचानक दूर छिटक गया... जैसे किसी की जाते हुए गलती सी ठोकर लग गई हो।
इस घटना के बाद... सिंह साहब को उस घर में किसी के होने का आभास होने लगा था। वो डरने लगे थे।
अंकुर चलो नाश्ता करो... स्कूल बस आने वाली होगी... एक सुबह किरन ने अंकुर को बुलाया। टेबल पर सिंह साहब पहले से ही गुमसुम बैठा था। उसके मन में तो वही सब पसोपेश चल रही थी। अंकुर आया और एक चेयर खींच कर बैठ गया।
ये लो, खाओ...छोड़ना नहीं है पूरा फिनिश करना – किरन ने कहते हुए प्लेट उसकी तरफ खिसकाई। अंकुर खाना खाने लगा। तभी किरन कुछ लेने के लिए किचन की तरफ चली गयी। अब उस लंबी सी टेबल पर आमने-सामने अंकुर और सिंह साहब अकेले थे। कमरे में सिर्फ छुरी-कांटो की आवाज़ आ रही थी। कुछ देर के बाद अचानक से अंकुर ने सर उठाया और पापा की तरफ देखना शुरु कर दिया। चाय का कप घुमाते हुए सिंह साहब कुछ असहज होने लगा... क्या हुआ उसने पूछा तो अंकुर बोला, पापा, आपने उसको क्यों मारा?
अचानक से सिंह साहब को ऐसा लगा जैसे किसी ने उस पर पर ठंडा पानी डाल दिया हो।
किसको... किसने मारा... क्या बकवास कर रहे हो...
- वही जिसे पैदा ही नहीं होने दिया आपने....
नाश्ता करो चुपचाप सिंह साहब ने अपने डर को गुस्से में ढालकर कहा। नाश्ता फिनिश करो आओ जाओ... बोलकर कर वो खुद सर झुकाकर चाय पीने लगा।, हालांकि उसके कान गर्म हो गए थे। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। तभी उसने देखा कि अंकुर का स्कूल बैग जो बगल वाली चेयर पर रखा था। उसका ज़िप जो आधा खुला हुआ था...वो अपने आप बंद होने लगा। खर्र् की आवाज़ हुई तो अंकुर ने देखा और वापस खाना खाने लगा। उसके लिए ये बिल्कुल सामान्य बात थी। लेकिन सिंह साहब का गला सूखने लगा।
कुछ देर बाद जब अंकुर की स्कूल बस आ गयी और वो चला गया। सिंह साहब गहरी पसोपेश में थे... नाश्ता करते हुए उसने किरन से कहा, “किरन मुझे लगता है कि अंकुर के साथ कोई प्रॉब्लम नहीं है... ”
मतलब? उसने ब्रेड पर बटर लगाते हुए कहा -
मतलब कोई वाकई है, जो अंकुर के साथ रहता है... कोई है ज़रूर
किरन के चेहरे पर घबराहट उतर आई। मैंने ग़ौर किया... कुछ बातें है जो मैंने तुमको नहीं बताईं लेकिन मैंने देखा है कि अकेले कमरे में कोई उसके साथ खेलता है... कोई उसे हवा में उठाता है, उसके स्कूल बैग की ज़िप बंद करता है....
किरन के चेहरे पर खौफ की लकीरें उमड़ आईं... क्या बात कर रहे हो...
हां... और आज उसने पता है क्या पूछा...
क्या
कि आप ने उसे क्यों मारा....
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