Sahitya Aajtak 2025: साहित्य का महोत्सव 'साहित्य आजतक' का आज दूसरा दिन है. यह कार्यक्रम दिल्ली के मेजर ध्यानचंद स्टेडियम में जारी है जहां कला और साहित्य जगत के दिग्गजों का जुटान देखने को मिल रहा है. आजतक के सत्र 'भारतीयता के नायक-खलनायक' में जाने-माने इतिहासकार विक्रम संपत और हिंदोल सेनगुप्ता पहुंचे जहां उन्होंने भारतीय इतिहास के कई अनछुए पहलुओं पर बात की.
दोनों ही इतिहासकार इस बात पर सहमत दिखे कि भारतीयों ने इतिहास कभी किसी भारतीय के नजर से नहीं बल्कि अंग्रेजों की नजर से देखा. उन्होंने कहा कि इतिहास के औपनिवेशिक फ्रेमवर्क को बदलने की जरूरत है.
इतिहासकार विक्रम संपत ने कहा, 'आजादी के बाद इतिहास लेखन पर विचारधारा...मार्क्सवादी विचारधारा का दबदबा हो गया. नेहरूवादी और मार्क्सवादी विचारधारा ने इतिहास लेखन के किसी और विचारधारा को पनपने ही नहीं दिया. हमारे इतिहास में बहुत सी अनकही बातें हैं जिनपर गौर नहीं किया गया. हमें बताया गया कि हम हारा हुआ राष्ट्र हैं...किताबों में पानीपत की लड़ाई हो, तराइन का युद्ध हो, एंग्लो-मैसूर, एंग्लो-सिख...सबमें हमें हारा हुआ बताया गया.'
विक्रम संपत ने कहा कि हम पूर्व ताम्र काल की एकलौती ऐसी सभ्यता हैं जो बचे हुए हैं तो कुछ युद्ध तो ऐसे होंगे जिन्हें हमारे पूर्वजों ने जीता होगा.
उन्होंने कहा, 'वो कौन से वीर थे, कौन सी वीरांगनाएं थीं जिनके बारे में आजादी के बाद के इतिहास में चुप्पी साध ली गई है? आजादी की लड़ाई को भी ऐसे दिखाया जाता है कि हमने अहिंसा से अंग्रेजों से लड़ाई जीत ली. हमें बताया जाता है कि हमने अहिंसा से लड़ाई जीत ली जबकि अंग्रेजों से उस समय लगातार सशस्त्र क्रांति हुई... उसमें सावरकर थे, पटेल थे...इनका वर्णन हमारी किताबों में एकाध लाइन का रह गया है बस. ऐसी अनकही कहानियों को सुनाने के लिए हमें गाली भी मिलती है.'
इतिहासकार हिंदोल सेनगुप्ता ने विक्रम संपत की बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, 'हम भारत के बारे में ज्यादातर इतिहास जो पढ़ते हैं, वो विदेशियों की नजर से लिखा गया है. भारत के बारे में हमेशा कहा गया कि भारत विविधताओं का देश है... अमेरिका, इंग्लैंड भी तो विविधताओं से भरे हुए हैं. हम कभी दुनिया को ये समझा ही नहीं पाए कि भारत को जोड़ता क्या है क्योंकि हमने कभी अपना इतिहास लिखा ही नहीं. विभिन्नता में एकता की कभी बात ही नहीं हुई. आजादी के बाद के भारतीय इतिहासकारों ने औपनिवेशिक फ्रेमवर्क का इस्तेमाल किया.'
सेशन की मॉडरेटर अंजना ओम कश्यप ने सवाल पूछा कि क्या विक्रम संपत और हिंदोल सेनगुप्ता जैसे इतिहासकार अपनी विचारधारा के लिए इतिहास को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं?
जवाब में विक्रम संपत ने कहा, 'हमें पढ़ाया गया कि अंग्रेजों के आने से पहले हम एक राष्ट्र थे ही नहीं. अंग्रेजों के आने के बाद हम सब मिलकर राष्ट्र बने, रेलवे आई. लेकिन ऐसा नहीं है. काशी विश्वनाथ मंदिर को बार-बार तोड़ा गया, बनाया गया. लेकिन बार-बार तोड़ने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि उत्तर प्रदेश के मंदिर को भारत के अलग-अलग हिस्सों के लोगों ने आकर बनाया. इसे बनाने वालों ने बस यही सोचा कि काशी विश्वनाथ उत्तर भारत का एक प्रतिबिंब है जिसे संरक्षित करना है.'
विक्रम संपत ने आगे कहा, 'भारतीयों के इस गुण की भी चर्चा होनी चाहिए. इतिहास का केवल महिमामंडन ही नहीं करना चाहिए, हमारी कई कुरीतियां भी थी जिस कारण हम विदेशियों के दबदबे में रहे. लेकिन बहुत सी ऐसी चीजें भी थीं जिनपर हम गर्व कर सकते हैं, अपने पूर्वजों के साहस, पराक्रम पर गर्व कर सकते हैं. भारतीयों ने हजारों साल पहले साहित्य, चिकित्सा, आयुर्वेद, योग, रसायनशास्त्र, गणितशास्त्र में कई उपलब्धियां हासिल की. उसे उजागर करना इतिहास का हथियारीकरण करना नहीं है.'
हिंदोल सेन ने सत्र के दौरान कहा कि भारतीय नजरिए से हमारा इतिहास अभी तक नहीं लिखा गया है. भारत के लोगों को अपने नजरिए से भारत देखना होगा, अपनी सभ्यता को अगर पश्चिमी नजर से देखेंगे तो आपको खामियां नजर आएंगी.
उन्होंने स्वामी विवेकानंद के कथन को कोट करते हुए कहा कि अगर आप जानना चाहते हैं कि आप आगे क्या बनेंगे तो आपको अपना इतिहास देखना होगा. हमें भी अपने इतिहास के बारे में जानना होगा ताकि अपना भविष्य बना सकें.
इतिहासकार विक्रम संपत ने कहा कि भारत में इतिहास के कुछ किरदार ऐसे हैं जिन्हें हर तबके को अपना खलनायक मानना चाहिए. उन्होंने कहा, 'हमारे देश के हर समुदाय को जानना चाहिए कि हमारे देश के कुछ नायक और खलनायक कॉमन होने चाहिए. ऐसा नहीं हो सकता कि समाज का एक तबका ऐसे लोगों को अपना हीरो माने जो बिल्कुल खलनायक थे. उनका हम महिमामंडन नहीं कर सकते.'
इस टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए हिंदोल सेनगुप्ता ने कहा, 'अगर आप भारतीय हैं तो औरंगजेब आपका हीरो नहीं हो सकता.'