‘साहित्य आज तक’ के ‘कलम आजाद है तेरी’ सत्र में चर्चित लेखिकाओं और उपन्यासकारों ने हिस्सा लिया. इस दौरान उन्होंने कलम की आजादी पर खुलकर अपनी राय रखी. हिंदी युवा लेखिका और अपने पहले ही उपन्यास 'रपटीले राजपथ' से साहित्य जगत में छा जाने वाली इंदिरा दाँगी ने भी इस सत्र में अपनी मौजूदगी दर्ज कराई. इस दौरान उन्होंने कई सवालों के जवाब दिए और लेखन पर अपनी स्वतंत्र राय रखी.
जब इंदिरा दाँगी से सवाल किया गया कि कलम की आजादी का मतलब कहीं बोल्ड और बेलगाम लेखन तो नहीं, तो इस पर उन्होंने कहा, 'सहानुभूति और स्वानभूति में जो फर्क होता है, वही यहां पर भी है. पहले के लेखन और आज के लेखन का ढंग अलग है. आज हमारे हाथ में कलम हैं और हम जो महसूस करते हैं, वो लिखते हैं और इसको कोई रोक नहीं सकता है.'
उन्होंने कहा कि प्रेमचंद्र की कहानी में पीड़ित महिलाओं की व्यथा लिखी गई है और आज भी महिलाओं की पीड़ा को ही लिखा जाता है. एक अन्य सवाल पर दाँगी ने कहा, 'हम सिर्फ स्त्री विमर्श नहीं लिखते हैं. हम मानवीयता की बात लिखते हैं. उन महिलाओं का दर्द लिखते हैं, जिनको जलाया जाता है, काटा जाता है, मारा जाता है, भेड़-बकरी की तरह किसी के भी साथ भेज दिया जाता है, रेप किया जाता है और प्रताड़ित किया जाता है.'
जब उनसे पूछा गया कि क्या लेखन से समाज में बदलाव आया है, तो उन्होंने कहा कि आज कोई जौहर को न्यायसंगत नहीं कह सकता है, लेकिन एक समय इसका जमकर महिमामंडप हुआ था. लेखन की वजह से एक समय जौहर को सही बताया जाता था, लेकिन आज जो बदलाव दिख रहा है, यह लेखन का ही करिश्मा है.
उन्होंने कहा कि पहले कोई महिलाओं की बात नहीं सुनता था, लेकिन आज समाज बदल गया है. अब महिलाओं के खिलाफ अपराध करने से लोगों को डर भी लगने लगा है. आज महिलाओं की बातें सामने आ रही हैं और मीडिया खबरें छाप रही है. महिलाएं अपनी बात को सार्वजनिक मंच पर आ रही हैं. यह कलम की ही देन है.
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एक श्रोता के सवाल पर दाँगी ने कहा कि लेखन सिर्फ बुद्धिजीवियों तक सीमित नहीं है और समाज में बदलाव हो रहा है. ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियों और महिलाओं के जीवन में भी बदलाव आ रहा है. दाँगी ऐसी लेखिका हैं, जिन्होंने अपनी रचनाओं में औरत के मनमिजाज को ऐसे उभारा कि वह शरीर से जुड़ी बहस से ऊपर उठकर खुद में ऐसा सवाल बन गई, जिनके जवाब अब भी तलाशे जा रहे हैं.
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