उत्तरकाशी के धराली गांव में आज यानी 5 अगस्त को बादल फटने से भयंकर तबाही मच गई. इस प्राकृतिक आपदा में 4 लोगों की मौत हो गई, जबकि 50 लोग लापता बताए जा रहे हैं. इस घटना ने 47 साल पुरानी तबाही की यादें ताजा कर दीं. आज से ठीक 47 साल पहले यानी 6 अगस्त 1978 की रात उत्तराखंड की भागीरथी घाटी में एक बड़ा भूस्खलन हुआ था. ये हादसा एक बहुत ही संवेदनशील और भूगर्भीय रूप से कमजोर इलाके में हुआ, जिसे मुख्य केंद्रीय थ्रस्ट (Main Central Thrust- MCT) कहा जाता है. ये इलाका अक्सर भूकंप और टेक्टोनिक हलचलों से प्रभावित रहता है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भूस्खलन की शुरुआत गैरारिधार नाम की एक ऊंची पहाड़ी से हुई, जहां बर्फ पिघलने के कारण ज़मीन पहले से ही कमजोर थी. वहां से भारी मात्रा में मिट्टी और पत्थर खिसककर करीब 4 किलोमीटर दूर कनोडिया गाड़ नदी के जरिए भागीरथी नदी तक पहुंच गए. इतना मलबा जमा हो गया कि उसने भागीरथी नदी का रास्ता ही रोक दिया, जिससे वहां एक अस्थायी झील बन गई.
इस झील को रोकने वाले मलबे का यह प्राकृतिक बांध ज्यादा देर नहीं टिक पाया और कुछ ही समय बाद टूट गया. इसके टूटते ही झील का सारा पानी एक साथ नीचे की ओर बहा, जिससे तेज बाढ़ आ गई. इस बाढ़ ने नीचे के इलाकों में भारी नुकसान किया. लिहाजा खेत, घर और सड़क सब तबाह हो गए थे.
एक्सपर्ट्स का कहना है कि भूस्खलन की वजह इलाके की कमजोर चट्टानें, लगातार हो रही भूगर्भीय हलचल और बर्फ के पिघलने से ज़मीन की स्थिरता कमजोर होना था. ये इलाका पहले से ही भूस्खलन के खतरे में था. इस घटना का असर बाढ़ तक नहीं रहा. इसके कारण नदी का रास्ता बदला, जमीन पर मलबा जमा हो गया और भविष्य में भी ऐसे भूस्खलनों का खतरा बढ़ गया.
1978 का ये हादसा बताता है कि भागीरथी घाटी जैसे पहाड़ी इलाके, खासकर जहां भारी बारिश होती है और बर्फ तेजी से पिघल रही है, वहां प्राकृतिक आपदाओं का खतरा हमेशा बना रहता है. ये घटना आज भी हमें आपदा से पहले चेतावनी देने वाली व्यवस्था और सुरक्षित विकास की जरूरत की याद दिलाती है.