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चुनावों का ऐलान, क्या फिर बिछेगी शिया वक्फ बोर्ड में वसीम की वापसी की बिसात?

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद बुधवार देर रात को प्रदेश सरकार ने शिया वक्फ बोर्ड के प्रशासक पद से प्रमुख सचिव अल्पसंख्यक कल्याण बीएल मीणा को हटा दिया और अब 20 अप्रैल को चुनाव कराने का फैसला किया है. सूबे में 8000 से ज्यादा शिया वक्फ संपत्तियों और उनकी अनुमानित कीमत 75 लाख करोड़ से अधिक की बैठती है. यही वजह है कि शिया वक्फ बोर्ड का चुनाव काफी अहम माना जा रहा है. 

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वसीम रिजवी
वसीम रिजवी
स्टोरी हाइलाइट्स
  • शिया वक्फ बोर्ड का 20 अप्रैल को चुनाव
  • रिजवी का वक्फ बोर्ड पर डेढ़ दशक से कब्जा
  • वसीम रिजवी की राह में क्या-क्या दिक्कतें हैं

इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड के चुनाव कराने की अधिसूचना जारी कर दी है. हाईकोर्ट के फैसले के बाद बुधवार देर रात को प्रदेश सरकार ने शिया वक्फ बोर्ड के प्रशासक पद से प्रमुख सचिव अल्पसंख्यक कल्याण बीएल मीणा को हटा दिया और अब 20 अप्रैल को चुनाव कराने का फैसला किया है. सूबे में 8000 से ज्यादा शिया वक्फ संपत्तियों और उनकी अनुमानित कीमत 75 लाख करोड़ से अधिक की बैठती है. यही वजह है कि शिया वक्फ बोर्ड का चुनाव काफी अहम माना जा रहा है. 

शिया वक्फ बोर्ड पर पिछले डेढ़ दशक से वसीम रिजवी का वर्चस्व कायम है. यूपी में सपा से लेकर बसपा तक की सरकार आईं और चली गई, लेकिन वसीम रिजवी का कब्जा बना रहा. शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन के तौर पर वसीम रिजवी का कार्यकाल पिछले साल पूरा हो गया था, लेकिन योगी सरकार ने अभी तक चुनाव नहीं कराया था. ऐसे में अब हाईकोर्ट के फैसले के बाद चुनाव होने जा रहे हैं. 

वसीम रिजवी शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड पर पहले की तरह अपना कब्जा जमा पाएंगे यह अहम सवाल है, क्योंकि शिया और सुन्नी दोनों ही समुदाय के उलेमा उनके द्वारा कुरान की आयतों को हटाने की याचिका को लेकर काफी नाराज है. इतना ही नहीं वसीम रिजवी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई जांच भी चल रही है. यही वजह है कि वसीम रिजवी की वक्फ में वापसी मुश्किल दिख रही है, लेकिन मौजूदा वोटर लिस्ट पर अगर चुनाव हुए तो उन्हें मात देना आसान नहीं होगा. 

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8 हजार संपत्तियां 75 लाख करोड़ की आमदनी

दरअसल, उत्तर प्रदेश में शिया वक्फ बोर्ड की 8 हजार से ज्यादा संपत्तियां हैं, जिसक देखरेख मुतवल्ली (ट्रस्टी) के माध्यम से की जाती है. इतना ही नहीं इन वक्फ संपत्तियों की कीमत तकरीबन 75 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक बैठती है. यही वजह है कि शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन के पद को लेकर हमेशा से जबरदस्त मुकाबला होता रहा है. 2014 के चुनाव में मौलाना कल्बे जव्वाब ने वसीम रिजवी के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था, लेकिन आजम खान के चलते उन्हें शिकस्त नहीं दे सके. इस बार देखना होगा कि किस तरह की चुनौतियां का सामना वसीम रिजवी का करना पड़ता है. 

कैसे होता है शिया वक्फ बोर्ड में चुनाव

शिया वक्फ बोर्ड का चुनाव दो चरणों में होता है. वक्फ बोर्ड में अध्यक्ष सहित कुल 11 सदस्य होते हैं. पहले चरण में बोर्ड में बतौर सदस्य के तौर पर चुनाव होता है. इसमें वक्फ संपत्ति की देखरेख करने वाले मुतवल्ली कोटे से दो सदस्य चुने जाते हैं. इसके चुनाव में वही मुतवल्ली वोट दे सकते हैं, जिनके वक्फ की सालाना कमाई एक लाख रुपये से अधिक हो. इसके अलावा दो सदस्य वकील कोटे से आते हैं, जिनमें अवध बार एसोसिएशन से चुनकर जाते हैं. 

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शिया वक्फ बोर्ड के लिए तीन सदस्यों को प्रदेश सरकार मनोनीत करती है, जिसमें एक पूर्व पीसीएस अधिकारी, एक इस्लामिक स्कॉलर और एक सामाजिक कार्यकर्ता. इसके अलावा दो संसदीय कोटे से मौजूदा सांसद या पूर्व सांसद सदस्य चुनकर आते हैं. ऐसे ही दो सदस्य यूपी की विधानमंडल कोटे से चुनकर आते हैं, जिनमें मौजूदा विधायक/एमलसी या पूर्व सदस्य हो,. हालांकि, सारे सदस्यों का शिया होना जरूरी है. ऐसे में अगर संसद या विधायक मौजूदा समय में शिया समुदाय से नहीं है तो उनकी जगह दूसरे सदस्यों को सरकार मनोनीत कर सकती है. इसके बाद इन्हीं 11 सदस्यों के द्वारा शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन का चुनाव होता है.  

शिया वक्फ बोर्ड के वोटर लिस्ट विवादों में रही

शिया वक्फ बोर्ड में मुतवल्ली के वोटर लिस्ट को लेकर हमेशा से विवाद रहा है, जिनके द्वारा सदस्य चुने जाते हैं. मौजूदा समय में यूपी में शिया वक्फ की सालाना कमाई एक लाख रुपये से अधिक वाले मुतव्वलियों की संख्या 37 है. सरकार के पास फिलहाल यही वोटर लिस्ट है जबकि 2014 को वोटर लिस्ट में 25 सदस्य थे और उससे पहले करीब 50 सदस्य शामिल थे. 

शिया समुदाय से आने वाले अल्लामा जमीर नकवी कहते हैं कि वक्फ बोर्ड का चुनाव अभी तक तो सत्ताधारी दल के मर्जी से ही चुना जाता रहा है. शिया और सुन्नी समुदाय की आवाम और उलेमा दोनों ही वसीम रिजवी को वक्फ बोर्ड में नहीं देखना चाहते हैं, लेकिन सरकार ने तय कर लिया है तो कई बात ही नहीं. सुन्नी वक्फ बोर्ड के चुनाव में भी यही दिखा है. वह कहते हैं कि शिया वक्फ बोर्ड में वसीम रिजवी ने जिस मनमानी तरीके से अपने पंसदीदा लोगों को वोटर बनाए है, उसे लेकर कई आपत्ति दर्ज कराई जा चुकी है. ऐसे में सरकार निष्पक्ष चुनाव कराना चाहती है तो पहले मुतवल्लियों की वोटर लिस्ट को सही करना होगा.

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नकवी कहते हैं कि शिया वक्फ एक्ट में साफ है कि वक्फ बोर्ड अपने ऑडिटर से उन्हीं संपत्तियों की आमदनी का ऑडिट करा सकता है, जिसकी सालाना कमाई 50 हजार तक हो. इससे ज्यादा की कमाई वाली संपत्तियों की जांच शासन के ऑडिटर के द्वारा कराई जाती है. इस प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है. ऐसी ही तमाम खामियां है, जिन्हें वक्फ चुनाव से पहले सुधार किया जाना चाहिए. सरकार को वक्फ संपत्तियों की सालाना आमदनी के लिए ऑडिट कराए और फिर आमदनी के आधार पर मुतव्वली तय करे. 

वक्फ बोर्ड का चुनाव निष्पक्ष होगा-मोहसिन रजा

वहीं, योगी सरकार में अल्पसंख्यक राज्य मंत्री मोहसिन रजा ने आजतक के बातचीत करते हुए कहा कि यूपी सरकार शिया वक्फ बोर्ड को चुनाव कराने के लिए पूरी तैयार है. शिया वक्फ बोर्ड का जो भी सदस्य चुनाकर आएगा वो चुनाव में किस्मत आजमा सकता है. हां एक बात जरूर है कि सरकार वक्फ के चुनाव को पूरी निष्पक्ष तरीके से कराने की तैयारी कर रही है और जिन लोगों की जो भी आपत्तियां है, उन्हें सरकार संजीदगी के साथ उस पर विचार करेगी. ऐसे में अगर किसी की आपत्ति सही पाई जाती हैं तो उसे सरकार दूर करेगी. 

वक्फ बोर्ड में वसीम रिजवी को हराना आसान नहीं

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शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व सदस्य इमरान रिजवी कहना है कि वसीम रिजवी का भले ही शिया और सुन्नी दोनों ही समुदाय विरोध कर रहे हैं, लेकिन वसीम रिजवी को चुनाव हराना काफी मुश्किल है. इसके पीछे वजह यह है कि शिया वक्फ बोर्ड में ज्यादातर मुतव्वली उनके मर्जी के बनाए हुए हैं और ये सभी सदस्य अभी भी उन्हीं के कहने पर चलते हैं. मौजूदा वोटर लिस्ट के लिहाज से मुतव्वली कोटे से वसीम रिजवी खुद के साथ अपने किसी एक अन्य करीबी को भी सदस्य के तौर पर जिताने की स्थिति में हैं. 

वह कहते हैं कि वसीम रिजवी सिर्फ एक ही स्थिति में शिया वक्फ बोर्ड में चुनकर नहीं आ सकते हैं, जब शिया वक्फ बोर्ड के वोटर लिस्ट को पूरी तरह से नए तरीके से बनाया जाए और वसीम रिजवी के करीबियों को जगह न मिल सके. साथ ही योगी सरकार ने भी अगर तय कर लिया है कि उन्हें अब मौका नहीं देंगे तभी वसीम रिजवी को मात दी सकती है. इसके अलावा फिलहाल जिस तरह से डेढ़ दशक में वसीम रिजवी ने जिस तरह से अपना वर्चस्व कायम किया है, उसे तोड़ना मुश्किल है.

मौलाना कल्बे जव्वाद का इस बार रहेगा दखल

वहीं, शिया समुदाय की सियासत पर नजर रखने वाले लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद कासिम कहते हैं कि इस बार के वक्फ बोर्ड के चुनाव में काफी अहम भूमिका मौलाना कल्बे जव्वाद की होने जा रही है. कल्बे जव्वाद के भी बीजेपी नेताओं के साथ बेहतर संबंध हैं और वसीम रिजवी को लेकर वो कड़ा रुख अपनाए हुए हैं. ऐसे में वसीम रिजवी जिस तरह से कुरान की आयत को हटाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट गए हैं, उसे पूरे मुस्लिम समुदाय को भी गहरा धक्का लगा है. इसीलिए बीजेपी ने भी उनसे किनारा कर लिया है. शाहनवाज हुसैन को कहना पड़ा कि उनकी पार्टी किसी भी धार्मिक किताब से कुछ भी हटाने के पक्ष में नहीं है और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने भी वसीम रिजवी को नोटिस भेजकर तलब किया. यह इस बात का संकेत है कि वसीम रिजवी की राह इस बार आसान नहीं है.

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