कांग्रेस से अलग होकर पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने सियासत में नई राह चुन ली है. सपा के सहयोग से कपिल सिब्बल निर्दलीय तौर पर राज्यसभा पहुंचने के लिए मैदान में हैं. उन्होंने अपना नामांकन भी कर दिया है. सिब्बल भले ही सपा की साइकिल पर सवार न हुए हों, लेकिन अखिलेश यादव से उनकी नजदीकियां बढ़ गई हैं. माना जा रहा है कि अखिलेश को सिब्बल के रूप में दिल्ली की सियासत में वो कद्दावर चेहरा मिल गया है जिसकी अमर सिंह के जाने के बाद से उन्हें तलाश थी.
कपिल सिब्बल को राज्यसभा के लिए सपा के समर्थन के पीछे आजम खान की भूमिका बताई जा रही है. आजम खान को जेल से बेल पर बाहर निकालने में कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसी के बाद कपिल सिब्बल के सपा की तरफ से राज्यसभा भेजे जाने की चर्चा शुरू हो गई थी. आजम ने कहा था कि यदि सिब्बल को राज्यसभा भेजा जाता है तो उन्हें सबसे अधिक खुशी होगी.
सिब्बल की राज्यसभा सीट के लिए सपा का समर्थन पुराने और नए एहसान चुकाने की तरह है. इस बात को इस तरह से भी समझ सकते हैं कि आजम खान को कपिल सिब्बल की जरूरत है तो अखिलेश यादव को भी मौजूदा हालात के चलते आजम की जरूरत है.
अखिलेश यादव को कपिल सिब्बल के रूप में ऐसा चेहरा भी मिल गया है, जो भले ही निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर राज्यसभा जा रहा हो, लेकिन दिल्ली की सियासत पर उसकी पकड़ जगजाहिर है. सिब्बल एक ऐसा चेहरा हैं, जिसके तमाम गैर-बीजेपी दलों और उनके क्षत्रपों के साथ बेहतर संबंध हैं. इतना ही नहीं सिब्बल अपने कानूनी कौशल से भी सपा के लिए उपयोगी साथी की भूमिका अदा कर सकेंगे.
कपिल सिब्बल न केवल देश के सबसे महंगे कानूनी सलाहकारों में से एक हैं बल्कि वे राजनीतिक कौशल के भी माहिर माने जाते हैं. एक जमाने में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के बेहद भरोसेमंद रहने वाले कपिल सिब्बल तमाम कानूनी विवादों में गांधी परिवार और पार्टी दोनों के लिए संकटमोचक रहे हैं. इसी तरह सिब्बल लगभग सभी गैर बीजेपी दलों के क्षत्रपों के कानूनी मामले भी देखते रहे हैं. वह ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी से लेकर लालू यादव, उद्धव ठाकरे और हेमंत सोरेन के वकील रहे हैं.
सिब्बल जैसी शख्सियत सपा और अखिलेश यादव की एक नई शुरुआत का संकेत हैं. देश में कांग्रेस के लगातार खिसकते सियासी आधार में क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय स्तर पर अपने विस्तार का मौका देख रहे हैं. दिल्ली की सीमा से निकलकर आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय आधार पर खुद को खड़ा करने में जुटी है तो ममता बनर्जी भी टीएमसी को विस्तार देने की कवायद कर रही हैं.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के पास डेरेक ओ ब्रायन और महुआ मोइत्रा जैसे स्टार नेता हैं, जिनकी पहचान अब राष्ट्रीय स्तर पर हो गई है. टीएमसी के ये दोनों ही नेता संसद और संसद के बाहर पार्टी के लिए बैटिंग करते नजर आते हैं. एनसीपी के प्रमुख शरद पवार के लिए प्रफुल्ल पटेल और सुप्रिया सुले ये भूमिका अदा करते हैं. ओडिशा सीएम नवीन पटनायक के लिए दिल्ली में बीजेडी के भर्तृहरि महताब और पिनाकी मिश्रा जैसे चेहरे हैं. सपा के पास कोई ऐसा नेता नहीं है, जो इस तरह की भूमिका में दिखता हो.
सपा राज के दौरान कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर खराब ट्रैक रिकॉर्ड ने 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव को चोट पहुंचाई. यह एक ऐसा टैग है, जिसे पार्टी हरहाल में धोना चाहती है. ऐसे में दिल्ली के सियासी गलियारे, मीडिया और सोशल मीडिया में सपा में पक्ष में सकारात्मक माहौल बनाने के लिए एक छवि निर्माता की जरूरत है, जिसके लिए ऐसा नेता चाहिए जिसका अपना सियासी कद हो.
सपा में एक समय अमर सिंह दिल्ली की सियासत में अहम किरदार अदा करते थे. उन्होंने उद्योगपतियों से लेकर राजनेताओं और फिल्म जगत के लोगों को सपा के नजदीक लाकर खड़ा किया था. उन्होंने सपा के लिए दिल्ली की सियासत में अपार प्रतिष्ठा हासिल की. मुलायम सिंह की सपा में अमर सिंह की तूती बोलती थी. उन्हें सपा ने 1996 में राज्यसभा भेजा था.
अमर सिंह सपा के नजदीक कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम वीर बहादुर सिंह के चलते आए थे, लेकिन अपने राजनीतिक कौशल से बहुत जल्द ही उन्होंने मुलायम सिंह का दिल जीत लिया था. अमर सिंह की खासियत सत्ता, पावर और ग्लैमर थी. अमिताभ बच्चन से लेकर अनिल अंबानी और सहारा कंपनी के मालिक सुब्रत राय तक अमर सिंह के दोस्त थे. बिल क्लिंटन के साथ अपनी तस्वीर को अमर सिंह अक्सर लोगों को दिखाया करते थे.
2004 में यूपी में मुलायम सिंह के अगुवाई में सपा की सरकार बनवाने और 2008 में परमाणु करार के दौरान मनमोहन सिंह की सरकार को बचाने में अमर सिंह ने अहम भूमिका अदा की थी. अमर सिंह मुलायम की दिग्गजों से मीटिंग कराने में अहम भूमिका अदा करते थे. फिर चाहे वो दिल्ली जामा मस्जिद के शाही इमाम बुखारी हों, मिसाइल मैन पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम हों या मीडिया अथवा बॉलीवुड के दिग्गज. अमर के चलते सपा दिल्ली की सियासत में अचानक ऐसी ताकत बन गई थी, जो पहले कभी नहीं थी.
अमर सिंह के बाद सपा को कोई दूसरा ऐसा नेता नहीं मिला. कपिल सिब्बल अमर सिंह नहीं हैं. अमर सिंह के दिनों की तुलना में सपा भी आज कमजोर है, लेकिन सिब्बल की एक विश्वदृष्टि, राष्ट्रीय दृष्टिकोण है. देश के उद्योगपतियों से लेकर राजनेताओं तक से कपिल सिब्बल के अपने संबंध हैं, जो किसी भी तरह से अमर सिंह से कम नहीं हैं. ऐसे में सिब्बल अब सपा के लिए दिल्ली की सियासत में ऐसी जमीन तैयार कर सकते हैं, जिससे पार्टी की छवि बेहतर बन सकती है और अखिलेश के क्षत्रपों के साथ बेहतर रिश्ते भी बन सकते हैं.