मटका किंग सुरेश भगत की हत्या के मामले में मुंबई की सेशन कोर्ट ने उसकी पत्नी और बेटे सहित छह लोगों को उम्र कैद की सजा सुनाई है. साथ ही सभी आरोपियों पर 40 हजार का जुर्माना भी लगाया गया है.
अभियोजन के मुताबिक भगत की पत्नी जया और बेटे हितेश ने उसकी संपत्ति और करोड़ों के जुए के व्यवसाय पर कब्जा जमाना के लिए उसे मौत के घाट उतार दिया.
भगत एवं पांच अन्य की अलीबाग-पेन मार्ग पर 13 जून 2008 को एक साजिश के तहत हत्या की गई थी. वारदात को अंजाम देने के लिए भगत की स्कॉर्पियो गाड़ी एक ट्रक से टकरा दी गई. जांच में पुलिस को पता चला कि उसकी पत्नी एवं अन्य लोगों ने जानबूझकर एक्सीडेंट करवाया. इस काम के लिए उन्होंने सुहास रोगे का सहयोग लिया था.
मुंबई अपराध शाखा ने मामले के सिलसिले में आठ लोगों सुहास रोगे, हरीश मांडवेकर, किरण आमले, शेख अजीमुद्दीन, प्रवीण शेट्टी, जया भगत, हितेश भगत और किरण पुजारी को गिरफ्तार किया था और उन पर महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून (मकोका) के तहत मामला दर्ज किया था.
बहरहाल, अप्रैल 2009 में विशेष मकोका अदालत ने बचाव पक्ष की इस दलील के बाद इस कड़े कानून को हटा दिया कि उनके मुवक्किलों के खिलाफ पहले कोई मामले दर्ज नहीं हैं, जो मामले में मकोका लगाने के लिए महत्वपूर्ण कारक है.
बाद में किरण पुरी और शेख अजीमुद्दीन ने मामले में गवाह बनने की इच्छा जताई और अदालत ने मजिस्ट्रेट को उनके बयान दर्ज करने के निर्देश दिए. पुजारी ने अपनी स्वीकारोक्ति में कहा कि उसने जया से उनके आवास पर मुलाकात की थी और रोगे ने भगत के खात्मे का सुझाव दिया था.
पुजारी ने बताया कि जया ने उसे कथित रूप से कहा था कि भगत मटका व्यवसाय को खत्म करने जा रहा है जिस पर रोगे ने सुझाव दिया कि एक ज्यादा ‘स्थायी’ प्रबंध किया जाना चाहिए. मुख्य लोक अभियोजक कल्पना चव्हाण ने अदालत से कहा कि यह साजिश रचकर की गई हत्या थी और मामले को साबित करने के लिए 80 गवाहों से जिरह हुई. अभियोजन के मामले को पुजारी और शेख के बयानों से मजबूती मिली.
सत्र न्यायाधीश एस. जी. शेटे ने हत्या और आपराधिक षड्यंत्र के लिए छह लोगों को दोषी ठहराया. सरकारी गवाह बनने वाले दोनों लोगों को माफी दे दी गई.