'अरे जरा लक्ष्मी दीदी से मिलना है.' इस सवाल पर उज्जैन सिंहस्थ में किन्नर अखाड़े के गेट पर पुलिसनुमा एक प्रहरी ऊपर से नीचे तक देखने के बाद लगभग हिकारत के भाव से कहता है, ‘अभी नहीं मिलेंगी, ग्यारह बजे के बाद आना.’ उन्होंने टाइम दिया है, यह कहने पर वह थोड़ी देर सोचने के बाद पीछे वाले गेट पर ट्राई करने को बोलता है.
चारों ओर लोग का भारी जमावड़ा है. पूरे सिंहस्थ में कहीं भी किसी भी कोने पर पूछिए, ‘ये किन्नर अखाड़ा कहां पड़ेगा?’ ‘अच्छा वहां जाना है! वो दूसरे चौराहे से बाएं और उस लाइन में आखिरी टेंट.’ या इसी तरह का कोई और जवाब. यहां पहुंचने के लिए आपको भटकना नहीं पड़ेगा. यहां सैकड़ों लोग किन्नर अखाड़े की मुखिया और अब महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी (37) से उनकी किसी प्रमुख चेलन से मिलने को उतावले हैं. हिजड़ों से आशीर्वाद लेने से काम बन जाते हैं, ऐसी इन लोगों की धारणा है.
खैर, पिछले गेट से अंदर जाने पर वहां अखाड़े की गुजरात की पीठाधीश्वर पायल गुरु मिलती हैं. छरहरी सुडौल देह, हाथ और कटि भाग वगैरह पर बड़े-बड़े गोदने. दो दांत सोने के. ‘दीदी तो अभी सो रही हैं.’ तो आप ही से बात कर लेते हैं बैठकर. इस पर वे इजाजत लेने जाती हैं और फिर बुलावा आता है. एक घिरे मैदानी इलाके से थोड़ा चलकर जाने पर हम एक लंबे-से कक्ष में घुसते हैं. अरे, ये तो लक्ष्मी हैं. ‘सॉरी आएम नॉट रेडी राइट नाउ, आएम सो टायर्ड यू नो.’ एक ऊंचे गद्दे पर पेट के बल अधलेटी और मोबाइल पर लगी लक्ष्मी अपनी सफाई देती हैं. हम एक कोने में पायल और मुंबई से ही आई लक्ष्मी की चेलन पवित्रा से संवाद शुरू करते हैं. उस अलग तरह के परिवेश में थोड़ा सहज होने और औपचारिक परिचय लेने-पाने के बाद हम किन्नर अखाड़े के बारे में बात शुरू ही करते हैं कि अचानक लक्ष्मी हमें अपनी ओर बुला लेती हैं बातचीत के लिए. इसके साथ ही पायल और पवित्रा को वहां से चले जाने का आदेश होता है.
क्या बताऊं, रात भर सो नहीं पाई हूं. ग्यारह बजने को हैं. अभी नहाई भी नहीं हूं. खैर पूछिए क्या पूछना है? यह कहने पर कि कुछ अखाड़ों के लोग सिंहस्थ में पहली बार किन्नरों का अखाड़ा लगने पर काफी गुस्से में हैं. लक्ष्मी मुखर होकर ललकारती हैं: ‘वे कौन होते हैं हमें अधिकार देने-लेने वाले? अरे तुम मेरा क्या चीरहरण करोगे? मैं तो लुटी-लुटाई दुल्हन हूं. हम संत नहीं, देवी-देवता नहीं. लोग कहते हैं, माई सिर्फ एक रुपया हाथ पे रख दो. हम तो लिंगात्मक सृष्टि से भी पहले के हैं.’

लक्ष्मी बार-बार यह बात दोहराती हैं कि ‘नॉलेज इज आलवेज पावरफुल (ज्ञान हमेशा ही बहुत ताकतवर होता है).’ और इसे वे साबित भी करती चलती हैं. केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत और मंत्रालय के नौकरशाहों से अपनी बातचीत का हवाला देते हुए वे उम्मीद करती हैं कि ट्रांसजेंडर्स बिल संसद में जल्दी ही पारित हो जाएगा. उसके बाद किन्नरों की दुनिया और तेजी से बदलेगी. वे महाभारत का जिक्र लाती हैं: ‘बताइए जरा, शिखंडी अगर न आए होते बीच में, तो भीष्म पितामह सरशय्या पर कैसे पहुंचते? तब सनातन धर्म का इतिहास कुछ और ही होता.’ वे 17 मई तक सिंहस्थ में रहने के बाद 18 को मुंबई पहुंचकर तुरंत लंदन रवाना हो जाएंगी, जहां उन्हें साउथ बैंक लिटरेचर फेस्टिवल में हिस्सा लेना है. वहां वे अपनी आत्मकथा के संदर्भ में बोलेंगी. इतना ही नहीं, वहां वे यह मुद्दा भी उठाने वाली हैं कि उनके गुरुओं की जो जायदाद अंग्रेजों ने हड़प ली, उसे वापस करवाया जाए. हमारी किताबें वगैरह लौटाएं.
आज का कोई भी मौजूं विषय वे छोड़ती नहीं. ‘सनातन धर्म तो धर्म से ज्यादा एक जीवनशैली है. अ वे ऑफ लाइफ. और हमसे बड़ा कोई सेकुलर, हमसे ज्यादा टॉलरेंट (सहनशील) कोई समाज नहीं. हमसे सीखे इंडिया कि एक दूसरे के साथ मिलकर कैसे रहें.’ किन्नर अखाड़े ने मध्य प्रदेश सरकार से महीने भर के अनुमानित खर्च के तौर पर 50 लाख रु. मांगे थे. मंजूरी 25 लाख रु. की ही मिली और उसमें से अभी 13 लाख रु. दिए गए हैं. इस तरह की खबरों पर कि कुछ बड़े अखाड़ों को 2.5 करोड़ रु. मिले हैं, वे कहती हैं कि उन्हें सब पता है और उनके साथ न्याय न हुआ तो वे सब भंडाफोड़ कर देंगी.
इस बीच सामने वाले इलाके में किसी के वेस्टर्न ड्रेस में दिख जाने पर हैरत जताते हुए वे तुरंत एक किन्नर को दौड़ाती हैं कि उसे बुलाकर लाओ. थोड़ी देर बात खबर आती है कि उसके कपड़े बदलवा दिए गए हैं. राजस्थान से एक किन्नर के आकर पैर छूने पर वे पूछती हैं कि कोई दिक्कत तो नहीं. जाते-जाते उसे रोककर कहती हैं: ‘बेटी धरम की बात है. लुगड़ी की लाज अपने हाथ में है.’ अब उनका ध्यान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उज्जैन यात्रा पर है, जो 15 मई को वैचारिक कुंभ में यहां आने वाले हैं. उनकी इच्छा है कि प्रधानमंत्री 5 मिनट के लिए ही सही, किन्नर अखाड़े में भी आएं. वर्ना? ‘वर्ना मैं उनका रास्ता तो नहीं रोकूंगी लेकिन स्वागत करने वहीं पहुंच जाऊंगी. मैं ठहरी फकीरन. क्या खोना और क्या पाना!’ उनकी आंखों को देखकर लगता है कि उनके इरादे गहरे हैं.