ज्योति बसु ने लंदन से वकालत त्यागकर वामपंथ की राजनीति को अपनाया और उसी के होकर रह गए. कुशल राजनीतिज्ञ, योग्य प्रशासक, सुधारवादी और अनेक मामलों में नजीर पेश करने वाले वामपंथी नेता ज्योति बसु की आज 107वीं जयंती है. 23 साल तक पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री रहने के साथ-साथ ज्योति बसु लगभग पांच दशक तक देश के राजनीतिक परिदृश्य पर छाये रहने वाले ज्योति बसु के व्यक्तित्व का ही करिश्मा था कि वैचारिक भिन्नता के बावजूद विपक्ष के सभी नेता उनका लोहा मानते थे.
1977 में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में वाममोर्चा सरकार के अगुवा के रूप में राज्य की सत्ता संभालने वाले बसु पश्चिम बंगाल में सबसे अधिक समय तक इस पद पर रहने वाले मुख्यमंत्री थे. गठबंधन की राजनीति के तहत जब उन्हें 1996 में संयुक्त मोर्चा सरकार का प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया गया तो उनकी पार्टी ने इस पर सहमति नहीं दी और पार्टी ने सत्ता में भागीदारी करने से ही इंकार कर दिया. इस तरह से ज्योति बसु के प्रधानमंत्री बनने का सपना पूरा नहीं हो सका था.
ज्योति बसु का जन्म
बता दें कि ज्योति बसु का जन्म पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश में) के एक समृद्ध मध्यवर्गीय परिवार में 8 जुलाई 1914 को हुआ था. उन्होंने कलकत्ता के सेंट जेवियर्स स्कूल से इंटर पास करने के बाद 1932 में प्रेसीडेन्सी कॉलेज से अंग्रेजी में ऑनर्स किया. साल1935 में वह कानून की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड गए. पांच साल बाद वह भारत लौटकर राजनीति की राह चुनी. हालांकि, रजनी पाम दत्त जैसे कम्युनिस्ट नेताओं से संबंधों के चलते उन्होंने 1930 में ही कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया की सदस्यता ले ली थी.
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ज्योति बसु रेल कर्मचारियों के आंदोलन में शामिल होने के बाद पहली बार में चर्चा में आए. 1957 में पश्चिम बंगाल विधानसभा में वे विपक्ष के नेता चुने गए.1967 में बनी वाम मोर्चे के प्रभुत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार में ज्योति बसु को गृहमंत्री बनाया गया, लेकिन नक्सलवादी आंदोलन के चलते बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और वह सरकार गिर गई.
बसु 1977 में बने बंगाल के सीएम
ज्योति बसु का राजनीति का सफर बढ़ता गया और इस माकपा नेता ने एक के बाद एक कई उपलब्धियां हासिल कीं. इस दौरान उन्होंने राज्य में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और वाममोर्चा दोनों को भी लगातार मजबूत किया. 1977 के चुनाव में जब वाम मोर्चा को विधानसभा में पूर्ण बहुमत मिला तो ज्योति बसु बंगाल में मुख्यमंत्री पद के सर्वमान्य उम्मीदवार के तौर पर उभरे और चुने गए. इसके बाद उन्होंने लगातार 23 साल तक सत्ता की कमान अपने हाथों में रखी.
ज्योति बसु और राजीव गांधी
बसु सरकार के दौरान कई उल्लेखनीय काम हुए हैं. इनमें भूमि सुधार का काम प्रमुख रहा है, जिसके तहत जमींदारों और सरकारी कब्जे वाली जमीनों का मालिकाना हक भूमिहीन किसानों को दिया गया. पंचायती राज और भूमि सुधार को प्रभावी ढंग से लागू कर निचले स्तर तक सत्ता का विकेन्द्रीकरण किया. ज्योति बसु के कामों का लोहा उनके विपक्षी भी मानते थे.
विपक्ष भी बसु का मुरीद था
ज्योति बसु और उनसे पहले बंगाल के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस नेता सिद्धार्थ शंकर राय के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंदिता थी, लेकिन व्यक्तिगत स्तर पर दोनों के बीच रिश्ते बेहतर रहे हैं. बांग्लादेश बनने से कुछ पहले सिद्धार्थ ने ज्योति बसु की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से उनके निवास स्थान पर एक गुप्त मुलाकात कराई थी. यही नहीं बंगाल के कांग्रेसी नेता गनी खान चौधरी और बसु के काफी अच्छे संबंध रहे थे.
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पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी बसु के कामकाज की सराहना की थी और साल 1989 में पंचायती राज पर राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया था. इस कार्यक्रम में राजीव गांधी ने ज्योति बसु के काम की काफी तारीफ की थी. इतना ही नहीं समाजवादी नेताओं से लेकर दक्षिण पंथी नेता अटल बिहारी वाजपेयी और एलके आडवाणी के वैचारिक मतभेद भले ही रहे हों, लेकिन ज्योति बसु से रिश्ते बेहतर रहे हैं. विधानचंद्र राय भी बसु की भूमिका की तारीफ किया करते थे.