सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दी है कि दहेज हत्या के मामले में किसी व्यक्ति पर मुकदमा चलाने के लिए उसे उस समय तक रिश्तेदार नहीं माना जा सकता जब तक पति से उसका खून, विवाह या गोद लिए जाने का रिश्ता न हो.
शीर्ष अदालत ने साथ ही साफ किया कि उसका मतलब यह नहीं है कि ऐसे व्यक्ति पर आत्महत्या के लिए उकसाने जैसे आरोप में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता. न्यायमूर्ति चंद्रमौलि कुमार प्रसाद और न्यायमूर्ति पी सी घोष की खंडपीठ ने कहा कि उन्हें इसमें कोई शक नहीं है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 304 (बी) (दहेज हत्या) में 'पति के रिश्तेदार' शब्द का आशय उन व्यक्तियों से है जिनका खून, विवाह या गोद लिए जाने के रिश्ते से संबंधित है.
न्यायालय ने दहेज हत्या के मामले में पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ पंजाब सरकार की अपील पर यह व्यवस्था दी. राज्य सरकार ने इस मामले में एक व्यक्ति को आरोपी के रूप में सम्मन जारी करने का फैसला निरस्त करने के हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी. निचली अदालत ने इस मामले में एक व्यक्ति को आरोपी के रूप में तलब किया था. अदालत का कहना था कि वह मृतक महिला के पति का रिश्तेदार है और इस अपराध में शामिल है.