'उठेगा अनल-हक का नारा, जो मैं भी हूं और तुम भी हो'...पाकिस्तानी शायर फैज़ अहमद फैज़ की इस नज्म का नागरिकता संशोधन एक्ट के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन में इस्तेमाल हुई तो उस पर विवाद खड़ा हो गया. कानपुर आईआईटी में भी सीएए के खिलाफ हुए प्रदर्शन में इसी नज्म का इस्तेमाल किया गया, जिस पर एंटी हिंदू होने को लेकर जांच बैठा दी है. इस नज्म में मशहूर सूफी मंसूर अल हल्लाज के 'अनल-हक' नारे का भी इस्तेमाल है. यही नारा देने की वजह से मंसूर अल हल्लाज को बगदाद में सूली पर चढ़ा दिया गया था.
क्या है अनलहक का मायने
ईरान में जन्मे मंसूर अल हल्लाज 900 ई. के मशहूर सूफी थे, जिन्होंने 'अनल-हक' का नारा दिया था. गीतकार जावेद अख्तर कहते हैं कि अनलहक का अर्थ है अहं ब्रह्मास्मि. यह भारत के अद्वैत सिद्धांत और वैदिक विचारधारा की तरह है, जिसमें क्रिएटर और क्रिएशन को अलग नहीं माना गया है बल्कि वो एक है. वो भगवान का ही एक रूप है, वो अलग नहीं है. ये इस्लामिक विचार ही नहीं है. अनल-हक सूफी विचार से आया है. इस्लाम और ईसाईयत में भगवान मालिक है और इंसान रियाया (जनता) है. इंसान उसके दरबार में है और खुदा उसको देख रहा है और उस पर फैसला करेगा.
अनलहक की इस्लामिक व्याख्या
जामिया के इस्लामिक स्टडीज के प्रोफेसर जुनैद हारिस कहते हैं कि मंसूर अल हल्लाज ने खुद के लिए अनल-हक का प्रयोग किया जबकि यह शब्द खुदा के लिए इस्तेमाल किया जाता है. अनलहक के साफ मायने हैं कि 'मैं ही खुदा हूं' या फिर मेरे अंदर खुदा बसा हुआ है जबकि इस्लाम में पैगंबर मोहम्मद साहब या फिर किसी नबी को खुदा का दर्जा नहीं दिया गया है. ऐसे में कोई अपने आपको कैसे खुदा कह सकता है. इसी वजह से मंसूर अल हल्लाज को फंसी पर लटकाया गया.
जुनैद कहते हैं कि दुनिया में कई धर्म हैं जो यह बात मानते हैं कि मनुष्य ईश्वर का ही अंश है. इसी लिहाज से उस धर्म में अनल-हक का इस्तेमाल किया जाना सही है, लेकिन इस्लाम में यह पूरी तरह से अलग बात है. इस्लाम में यह बात साफ कही गई है कि खुदा और मनुष्य अलग-अलग हैं. मनुष्य खुदा का अंश नहीं है. ऐसे में अगर कोई अपने आपको खुदा कहता है तो वह इस्लाम के खिलाफ है.
अनलहक की सूफी में मायने
सूफिज्म को समझने वाले हमदर्द विश्वविद्यालय के प्रोफेसर तारिक अशफाक कहते हैं सूफिज्म और उलेमा में एक टकराव रहा है. मंसूर अल हल्लाज सूफी थे, जिन्होंने अनल-हक का नारा दिया. अनल-हक सूफिज्म में की एक इत्तला (सूचना) है जिसके द्वारा वे आत्मा को परमात्मा की स्थिति में लय कर देते है. इसके जरिए वो अपने आपको खुदा नहीं कह रहे हैं बल्कि यह कहना चाहते हैं कि जीव आत्मा ही परमात्मा है यानी मेरी आत्मा का परमात्मा से एक रहस्यमय संबंध है, इसे ततत्वम असि (वह तुम्ही हो) के जरिए भी समझा जा सकता है.
तारिक अशफाक कहते हैं कि सूफिज्म रुहानी इबादत की बात पर जोर देता है तो उलेमा इस्लाम की जाहिरी इबादत को महत्व देते हैं. जाहिरी और बाहरी इबादत में पाखंड के होने की संभावना होती है, लेकिन रुहानी में ऐसा नहीं होता है.
अनलहक कहकर फांसी चढ़े मंसूर
तारिक अशफाक ने बताया कि इमाम अबू अब्दुल्लाह अहमद बिन मोहम्मद बिन हम्बल का अनुसरण करने वालों को हम्बली कहा जाता है. इनमें इब्ने तैमिया और अब्दुल वहाब जैसे कट्टरपंथी हुए हैं. बगदाद में 908 ईस्वी में हम्बली फिरके के लोग राजनीतिक रिफॉर्म लाने की कोशिश कर रहे थे और इब्बुनल मोताश को खलीफा नियुक्त करना चाहते थे. इसमें उन्हें कामयाबी भी मिली लेकिन वो एक साल से कम ही शासन चला सके.
जव्वाद मुजादीदी ने मंसूर अल हल्लाज के बारे में लिखा है कि 909 ईस्वी में हम्बली लोगों ने राजनीतिक रिफॉर्म फिर शुरू किया. इस दौरान मंसूर अल हल्लाज हम्बली के खिलाफ थे और वो खुलेतौर पर अपनी बात रखते थे. मंसूर अल हल्लाज की बातें हम्बली विचाराधारा के लोगों को पसंद नहीं थीं. इस्लामी उलेमा को चुनौती देने की खातिर इनको इस्लाम का विरोधी मान लिया गया.
इसकी वजह से मंसूर अल हल्लाज बगदाद छोड़कर अहवाज चले गए. उन्हें तीन साल के बाद गिरफ्तार कर बगदाद लाया गया और जेल में डाल दिया गया. मंसूर अल हल्लाज पर दो चार्ज लगाए गए, इनमें एक था 'अनल-हक' जिसके जरिए अपने आपको वो खुद कह रहे थे और दूसरा चार्ज हुलूल का यानी मेरे अंदर खुदा होने का दावा करना. इसके बाद उन्हें 9 साल तक जेल में रखा गया. इसके बाद 922 ईस्वी में उन्हें मौत की सजा दे दी गई. मंसूर अल हल्लाज पर एक हजार कोड़े लगाए गए और उनके हाथ-पैर काट दिए गए. इसके बाद उन्हें फांसी दी गई और उनकी लाश को जलाकर राख को फरात नदी में बहा दिया गया. फना ही इंसान का मकसद और सूफीज्म का भी.
अनलहक कहने पर सरमद का सिर कलम
जावेद अख्तर कहते हैं कि सरमद दिल्ली में ही अनल-हक का नारा लगाता था जिसकी औरंगजेब ने गर्दन कटवा दी थी क्योंकि वो अनलहक नारे के खिलाफ था. औरंगजेब का कहना था कि यह इस्लाम के खिलाफ नारा है. इसमें तुम कह रहे कि तुम और खुदा अलग नहीं हो. आज जो लोग अनल-हक के खिलाफ बोल रहे हैं वो औरंगजेब की तरह बोल रहे हैं. लोग कहते हैं कि यह हिंदू के खिलाफ है, जबकि इस पर तो यह आरोप रहा है कि यह तो हिदू विचारधारा है और इस्लाम के खिलाफ है.