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देश का पहला कुश्ती स्टेडियम केडी जाधव को समर्पित

केन्द्रीय खेल मंत्री एमएस गिल ने राष्ट्रमंडल खेलों के लिये इंदिरा गांधी खेल परिसर में विशेष रूप से तैयार किये गये देश के पहले वातानुकूलित कुश्ती स्टेडियम को भारत के पहले (व्यक्तिगत) ओलम्पिक पदक विजेता स्वर्गीय कसाबा दादासाहेब (केडी) जाधव का नाम देकर उनकी इस उपलब्धि को आज यहां सम्मान दिया.

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केन्द्रीय खेल मंत्री एमएस गिल ने राष्ट्रमंडल खेलों के लिये इंदिरा गांधी खेल परिसर में विशेष रूप से तैयार किये गये देश के पहले वातानुकूलित कुश्ती स्टेडियम को भारत के पहले (व्यक्तिगत) ओलम्पिक पदक विजेता स्वर्गीय कसाबा दादासाहेब (केडी) जाधव का नाम देकर उनकी इस उपलब्धि को आज यहां सम्मान दिया.

गिल ने इस स्टेडियम में जाधव के पुत्र रणजीत जाधव और उनकी पत्नी को शाल देकर सम्मानित किया और जाधव के 1952 के हेलसिंकी ओलम्पिक की कुश्ती प्रतियोगिता में भारी परेशानियों के बावजूद भाग लेने और कांस्य पदक जीतने का जिक्र किया.

खेल मंत्री ने कहा मैंने बहुत से खेल खेले हैं लेकिन कभी कुश्ती पर हाथ नहीं आजमाया हालांकि लोग मुझसे कुश्ती करने के इच्छुक हैं. जाधव को उनकी उपलब्धि पर जितना सम्मान मिलना चाहिये था उतना नहीं मिला लेकिन देर से ही सही सरकार ने अब इस स्टेडियम का नाम उनके नाम रख कर उस कमी को पूरा कर दिया.

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राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों में जुटे खिलाड़ियों की तरफ संकेत करते हुए गिल ने कहा कि यादव हो या मिल्खा सिंह खेल स्पर्धाओं में सफलता तो तपस्या से ही मिलती. सरकार चाहें कितना भी पैसा खर्च कर ले अगर खिलाड़ी मेहनत नहीं करेगा तो सफलता हासिल नहीं हो सकती. उन्होंने कहा कि यह पहला मौका है जब देश में केवल खिलाड़ियों की ट्रेनिंग :राष्ट्रमंडल खेल: के लिये सरकार 800 करोड़ रुपये खर्च कर रही है.

राष्ट्रमंडल खेलों की कुश्ती स्पर्धा इसी जाधव कुश्ती स्टेडियम पर आयोजित होनी है. इस अवसर पर खेल राज्यमंत्री प्रतीक बाबू पाटिल और खेल सचिव सिंधुश्री खुल्लर भी उपस्थित थे. इस अवसर पर जाधव के पुत्र रणजीत ने खेल मंत्री और सरकार को धन्यवाद देते हुए कहा कि मेरे पिता के नाम पर इस स्टेडियम का नामकरण किया जाना इस बात का गवाह है कि उन्होंने जो कुछ हासिल किया उसका सम्मान उन्‍हें मिल गया.

पंद्रह जनवरी 1926 को महाराष्ट्र के सतना जिले में जन्में जाधव ने 1952 में हेलसिंकी ओलंपिक में कुश्ती के 52 किग्रा भार वर्ग में कांस्य पदक जीता. वह भारत की स्वतंत्रता के बाद ओलंपिक में व्यक्तिगत पदक जीतने वाले पहले भारतीय थे. अपनी फुर्ती और कुशलता के कारण उन्हें ‘ पाकेट डायनमो ’ भी कहा जाता था. सन 1984 में एक सड़क दुर्घटना में उनका निधन हो गया था.

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जाधव ने 1948 में लंदन ओलंपिक में भी भाग लिया था लेकिन तब वह छठे नंबर पर रहे थे. उन्हें हेलसिंकी ओलंपिक के लिये टीम में नहीं चुना गया था लेकिन पटियाला के महाराज के प्रयासों से टीम में उनका नाम शामिल हो गया था. उन्होंने अपनी यात्रा के लिये खुद ही पैसे का बंदोबस्त किया.

भारतीय को इसके बाद अगले व्यक्तिगत ओलंपिक पदक के लिये लंबा इंतजार करना पड़ा जबकि कुश्ती में तो 56 साल बाद 2008 में सुशील कुमार ने कांस्य पदक जीतकर जाधव की बराबरी की. जाधव के बाद भारत को 1996 में लिएंडर पेस ने टेनिस में कांस्य पदक दिलाया था. इसके चार साल बाद कर्णम मल्लेश्वरी ने भारोत्तोलन में कांस्य जबकि 2004 में राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने निशानेबाजी में रजत पदक जीता था.

बीजिंग ओलंपिक में निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने पहला व्यक्तिगत स्वर्ण पदक हासिल किया जबकि सुशील के अलावा मुक्केबाज विजेंदर सिंह भी कांस्य पदक जीतने में सफल रहे.

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