
राजस्थान के आमेर में आकाशीय बिजली गिरने से 12 लोगों की मौत हो गई, वहीं 10 से ज्यादा लोग गंभीर रूप से घायल हैं. आकाशीय बिजली गिरने के मामले में राजस्थान का देश में 10वां नंबर है, वहीं राजस्थान के आमेर में सबसे ज्यादा आकाशीय बिजली गिरती है.
बीते 8 वर्षों में 500 मीटर के अंतराल पर तीसरी बार बिजली गिरी है. बीते 8 वर्षों से लगातार आमेर में लाइटनिंग एक्सेप्टर(लाइटनिंग कंडक्टर) यानी तड़ित यंत्र लगाने की मांग उठती रही है लेकिन सरकार ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया.
अगर सरकार ने अपने ही विभाग और एक एक्सपर्ट की बात मान लेती तो शायद कई लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती थी. जयपुर के आमेर में रविवार की शाम तबाही लेकर आई थी. जब आमेर के वॉच टावर पर आकाशीय बिजली गिरी तो 20 से 30 साल के बीच के 11 नौजवानों ने दम तोड़ दिया. हादसे में 10 से ज्यादा लोग अस्पताल में घायल पड़े हैं.
हैरान कर देने वाली बात है कि सही समय पर लाइटनिंग एक्सेप्टर लगाने की जगह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ट्वीट कर अपनी सरकार की पीठ थपथपा रहे हैं कि कितनी बहादुरी से प्रभावित लोगों का रेस्क्यू ऑपरेशन किया गया है. रेस्क्यू ऑपरेशन में काम करने वाले कर्मचारियों की बहादुरी के साथ-साथ चर्चा सरकार में बैठे लोगों की लापरवाही की भी होनी चाहिए, जिनकी वजह से इन नौजवानों की जानें गई है.
आमेर किले पर 40 मिनट में कई बार गिरी आकाशीय बिजली, जो जहां खड़ा था, वहीं गिर पड़ा...
पहाड़ी क्षेत्र होने की वजह से बिजली गिरने की आशंका ज्यादा
पहाड़ी इलाका होने की वजह से यहां पर बिजली गिरने की आशंका बहुत ज्यादा होती है. 2013 में यहां बिजली गिरने 2 पर्यटकों समेत तीन लोगों की जान गई थी. 2019 में आमेर किले के अंदर गिरी बिजली से करोड़ों का नुकसान हुआ था. 2013 से लेकर अब तक आर्कियोलॉजिकल विभाग ने यहां लाईटनिंग एक्सेप्टर लगाने के लिए राजस्थान सरकार को कई पत्र लिखा है.
लापरवाह है सरकारी सिस्टम!
आमेर किले के अधीक्षक पंकज का कहना है कि हम तो पत्र ही लिख सकते हैं. यह हम लिखते रहे हैं. आमेर और नाहरगढ़ के पहाड़ियों पर 7 से 8 तड़ित यंत्र लगाए जाने हैं, मगर सरकार ने कभी ध्यान नहीं दिया. उन्होंने कहा कि आकाशीय बिजली को निस्तेज करने के लिए तड़ित यंत्र भवन की उंचाई से 6 मीटर ऊपर लगने जरूरी हैं. मगर सरकारी सिस्टम कितना निस्तेज हो चुका है कि आमेर महल के नीचे सड़क पर एक छोटा सा संयंत्र लगा रखा है, जो काम नहीं आ सकता है.
सरकार ने नहीं दिए पत्रों के जवाब!
पूरे आमेर किले की देख-रेख आमेर विकास प्राधिकरण करता है, जिसके अध्यक्ष खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत हैं. लेकिन पुरातत्व विभाग की ओर से भेजी गई चिट्ठियों का सरकार ने कभी कोई जवाब नहीं दिया. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पास ही आपदा प्रबंधन मंत्री की भी जिम्मेदारी है. मगर टूरिस्ट प्लेस होने और मौसम खराब होने की चेतावनी नहीं दी गई.

आजतक के पास पुरातत्व विभाग का वह पत्र है, जिसमें लिखा है कि इतने बड़े किले के लिए एक मात्र सुरक्षाकर्मी है, लिहाजा मैन पॉवर बढ़ाई जाए. मगर सरकार है कि अपनी गलती मानती ही नहीं है.
...तो बच जाती 12 लोगों की जान!
मतलब साफ है कि अगर सरकार पुरातत्व विभाग की बातें मान लेती और आकाशीय बिजली गिरने के संभावित इलाके में तड़ित यंत्र यानी लाइटनिंग एक्सेप्टर लगा दी होती, या फिर कोई सुरक्षाकर्मी तैनात होता, जो खराब मौसम में इतनी ऊंचाई पर जाने से लोगों को रोकता तो शायद लोगों को बचाया जा सकता था.