पूर्वोत्तर के तीन राज्य त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में किसकी सरकार बनने जा रही है, इसका फैसला होने वाला है. जनता का जनादेश ईवीएम में कैद है और वहीं ईवीएम अब खुलने जा रही हैं. ये सिर्फ तीन राज्यों का चुनाव भर नहीं है, बल्कि 2024 की बड़ी लड़ाई से पहले एक अहम पड़ाव है जो सभी पार्टियों के लिए बड़ा रियलिटी चेक साबित होने वाला है. बीजेपी को सत्ता वापसी की चुनौती है तो कांग्रेस को अपने वजूद की लड़ाई लड़नी है. टीएमसी पूर्वोत्तर में अपनी सेंधमारी करना चाहती है तो कई क्षेत्रीय दल बड़ी महत्वकांक्षा के साथ बड़े सपने संजो रहे हैं. किसका होगा राजतिलक, ये तो कुछ घंटों में साफ हो जाएगा, लेकिन सभी पार्टियों के लिए काफी कुछ दांव पर लगा है.
त्रिपुरा चुनाव
सबसे दिलचस्प मुकाबला त्रिपुरा में देखने को मिल रहा है क्योंकि ये वो राज्य है जहां पर लेफ्ट का भी 25 साल का शासन रहा है तो वहीं बीजेपी ने भी प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई है. एक समय कांग्रेस भी सक्रिय भूमिका निभाती थी, लेकिन पिछले चुनाव में शून्य सीट का आंकड़ा छूकर उसने काफी कुछ गंवाया है. अब इस बार त्रिपुरा चुनाव में कई समीकरण बदल चुके हैं. सबसे बड़ा समीकरण तो ये बदला है कि लेफ्ट और कांग्रेस साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं. केरल में एक दूसरे के खिलाफ हैं, लेकिन यहां पर बीजेपी को हराने के लिए सियासी गठबंधन किया गया है. वाम मोर्चा तो 43 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रही है तो वहीं कांग्रेस को भी 13 सीटें दी गई हैं. दूसरी तरफ बीजेपी ने आईपीएफटी के साथ गठबंधन कर रखा है. 55 पर बीजेपी खुद चुनाव लड़ रही है तो पांच सीटें आईपीएफटी के लिए छोड़ी गई हैं.
इस त्रिपुरा चुनाव में टिपरा मोथा प्रमुख प्रद्योत देबबर्मा भी कई समीकरण बदल सकते हैं. आदिवासी सीटों पर इनकी पकड़ मजबूत है, इस वर्ग की राजनीति में यहां खूब चलती है. ऐसे में बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में प्रद्योत देबबर्मा खड़े हैं. उनकी पार्टी पहली बार चुनाव लड़ रही है और 20 आदिवासी बहुल सीटों पर बीजेपी का गेम खराब कर सकती है. कुल 42 सीटों पर उम्मीदवार उतारे गए हैं जहां पर 22 गैर आदिवासी सीटों पर भी किस्मत आजमाई जा रही है. यानी कि हर तरफ से बीजेपी को नुकसान पहुंचाने की तैयारी है. इसके अलावा टीएमपी ने जिस तरह से चुनावी मौसम में जनजातीय आबादी के लिए एक अलग राज्य 'ग्रेटर त्रिपरा लैंड' की मांग उठाई है, एक वर्ग इस वजह से भी पार्टी की तरफ आकर्षित होता दिख रहा है.
अब बात कांग्रेस और लेफ्ट की जो पहली बार त्रिपुरा में साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं. 25 साल तक जब वाम मोर्चा त्रिपुरा में अपनी सरकार चला रहा था, तब प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस रहा करती थी. उस लंबे कार्यकाल में कई हिंसक घटनाएं हुई थीं, राजनीतिक लड़ाई में कई कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने भी अपनी जान गंवाई थी. यानी कि ये दोनों ही पार्टियां एक दूसरे के पूरी तरह खिलाफ थीं. लेकिन अब 2023 के विधानसभा चुनाव में स्थिति बदल चुकी है. एक तरफ बीजेपी सत्ता में है, वहीं राज्य में जमीन पर उसने अपनी उपस्थिति और ज्यादा मजबूत की है. ऐसे में बीजेपी को हराने के लिए लेफ्ट-कांग्रेस साथ आए हैं. बीजेपी की बात करें तो उसके लिए तो सबकुछ ही दांव पर लगा हुआ है. पहली बार उसने त्रिपुरा में अपनी सरकार बनाई है, मुख्यमंत्री भी बदला जा चुका है, यानी कि कई मोर्चों पर पार्टी को खुद को साबित करना है.
पिछले चुनाव में बीजेपी की जीत में आदिवासी वोटर ने बड़ी भूमिका निभाई थी. पश्चिमी त्रिपुरा जहां से 14 सीटें आती हैं, वहां तो कमल ने क्लीन स्वीप करते हुए 12 सीट जीत ली थीं. लेकिन इस बार टीएमपी के मैदान में आ जाने से आदिवासी वोटर का बीजेपी की तरफ एकमुश्त होना मुश्किल लग रहा है. वैसे मैदान में ममता बनर्जी की टीएमसी भी खड़ी है. वो भी त्रिपुरा में सरकार बनाने के दावे ठोक रही है. बंगाल के बाद त्रिपुरा में खेला होबे का नारा दिया जा रहा है. अभिषेक बनर्जी ने तो जमीन पर उतर काफी प्रचार किया है. लेकिन अब नतीजे ही बताएंगे कि कौन सी पार्टी त्रिपुरा में कितना कमाल कर पाती है.
त्रिपुरा के जो एग्जिट पोल सामने आए हैं, वो तो बता रहे हैं कि बीजेपी एक बार फिर पूर्वोत्तर के इस राज्य में वापसी कर सकती है. एग्जिट पोल के मुताबिक बीजेपी के खाते में 36 से 45 सीटें जा सकती हैं. लेफ्ट-कांग्रेस का गठबंधन सरकार बनाने से चूक रहा है. उसके खाते में 9 से 11 सीटें आ सकती हैं. वो सरकार बनाने से काफी दूर दिखाई दे रहा है. त्रिपुरा चुनाव में टीएमपी लेफ्ट से भी बेहतर प्रदर्शन करती दिख रही है. एग्जिट पोल के मुताबिक इस चुनाव में टीएमपी को 9 से 16 सीटें मिल सकती हैं. चुनाव में बीजेपी को 45 प्रतिशत वोट मिल सकते हैं, वहीं लेफ्ट-कांग्रेस के गठबंधन का 32 प्रतिशत वोट शेयर रह सकता है. टीएमपी की बात करें तो उसका वोट शेयर 20 फीसदी रह सकता है.
बीजेपी को हर जाति में भी अच्छा खासा वोट मिलता दिख रहा है. अगर एग्जिट पोल के नतीजे ही सटीक साबित होते हैं तो ये मानना पड़ेगा कि त्रिपुरा में बीजेपी ने समाज के हर वर्ग में अपनी सेंधमारी की है. पार्टी को एसटी का 30 प्रतिशत, एससी का 57 प्रतिशत, ओबीसी का 60 फीसदी और सामान्य का 61 फीसदी वोट मिल रहा है. लेफ्ट-कांग्रेस की बात करें तो उसे एसटी का 18 फीसदी, एससी का 36 फीसदी, ओबीसी का 35 प्रतिशत और सामान्य वर्ग का 34 फीसदी वोट मिल सकता है. टीएमपी को एसटी का 51 फीसदी, एससी का 3 फीसदी, ओबीसी का 2 प्रतिशत और सामान्य का 2 प्रतिशट वोट मिल सकता है.
मेघालय चुनाव
मेघालय चुनाव में भी इस बार स्थिति दिलचस्प बनती दिख रही है. बीजेपी चुनाव में अकेले उतरी है, सभी सीटों पर उसने उम्मीदवार उतार दिए हैं. एनपीपी भी अकेले ही चुनावी मैदान में खड़ी है. कांग्रेस भी एकला चलो वाली नीति के तहत अकेले ही लड़ रही है. यानी कि यहां त्रिपुरा की तरह बड़े स्तर पर गठबंधन वाला खेल नहीं चल रहा है. बीजेपी को भरोसा है कि वो पूर्ण बहुमत के साथ यहां पर सरकार बनाएगी, वहीं क्षेत्रीय दल एनपीपी भी सरकार बनाने के दावे कर रही है. मेघालय में काफी कमजोर हो चुकी कांग्रेस भी दावे बड़े कर रही है. मेघालय एक ऐसा राज्य है जहां पर महिलाओं का वोट निर्णायक भूमिका निभाता है. यहां 60 में से 36 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां पर महिला, पुरुषों से भी ज्यादा संख्या में है. लेकिन फिर भी मेघालय की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी ना के बराबर चल रही है.
बड़ी बात ये रही कि पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. उसके खाते में 21 सीटें गई थी. बहुमत से तो पार्टी दूर रह गई, लेकिन सीटों के मामले में बीजेपी से कोसो आगे रही. उस चुनाव में बीजेपी ने 47 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन जीती सिर्फ दो सीट थी. वहीं दूसरी तरफ एनपीपी ने 20 सीटों पर जीत दर्ज की थी. बताया जाता है कि तब हिमंत बिस्वा सरमा ने एक बड़ा खेल करते हुए चुनाव के बाद एनपीपी से संपर्क साधा और बीजेपी के साथ सरकार बनाने का ऑफर दिया. उसके बाद से राज्य के सीएम कोनराड संगमा बने और बीजेपी को दो सीटों के बावजूद सरकार में आने का मौका मिल गया.
अब इस बार मेघालय में पूर्ण बहुमत की सरकार बनेगी, ऐसा मुश्किल लगता है, एग्जिट पोल तो इसी ओर इशारा कर रहा है. आजतक के एग्जिट पोल ने त्रिशंकु विधानसभा की संभावना जता दी है. त्रिपुरा और नगालैंड में तो स्थिति स्पष्ट दिखाई पड़ रही है, लेकिन मेघालय में त्रिशंकु विधानसभा हो सकती है. ये इकलौता ऐसा राज्य है जहां पर किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिल रहा है. मेघालय में एनपीपी के खाते में 18 से 24, बीजेपी की 4 से 8, कांग्रेस 6 से 12 सीटें रह सकती हैं. यानी कि किसी को भी बहुमत नहीं मिल रहा है. ऐसी खबर है कि मुख्यमंत्री कोनराड संगमा से हिमंत बिस्वा सरमा की एक मुलाकात हुई है. क्या चर्चा हुई, स्पष्ट नहीं, लेकिन माना जा रहा है कि अगर त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनी तो एक बार फिर एनपीपी और बीजेपी साथ आ सकते हैं.
नगालैंड चुनाव
पूर्वोत्तर के इस राज्य में भी नतीजे काफी कुछ तय करने वाले हैं. इस राज्य की स्थिति तो वैसे भी दिलचस्प है, यहां पर काफी समय तक तो कोई विपक्ष ही नहीं रहा था. सभी पार्टियों ने साथ मिलकर सरकार बना ली थी. लेकिन अब फिर चुनावी मौसम में पार्टियां अपने-अपने दावे कर रही हैं. एनडीपीपी और बीजेपी का गठबंधन है तो दूसरी तरफ कांग्रेस भी वजूद की लड़ाई लड़ रही है. पिछले चुनाव में एनडीपीपी और बीजेपी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था. एनडीपीपी ने 17 सीटें जीती थीं तो बीजेपी के खाते में 12 सीटें गई थीं. लेकिन इस राज्य की एक पार्टी एनपीएफ भी रही जिसने राज्य में 27 सीटों पर जीत दर्ज की, यानी कि सबसे ज्यादा. चुनावी नतीजों के बाद सरकार जरूर बीजेपी और एनडीपीपी ने मिलकर बनाई, लेकिन कुछ समय बाद ही एनपीएफ के ज्यादातर विधायकों ने NDPP का दामन थाम लिया. वहीं बाद में NPF के जो चार विधायक बचे थे, उन्होंने भी सरकार का ही समर्थन कर दिया. ऐसे में राज्य में सभी 60 विधायक सत्तापक्ष के हो गए.
अब नगालैंड के एग्जिट पोल बताते हैं कि यहां पर एनडीपीपी और बीजेपी को मजबूत लीड है. यहां एक बार फिर इनकी सरकार बन सकती है. नगालैंड चुनाव के एग्जिट पोल के नतीजे बता रहे हैं एक बार फिर एनडीपीपी और बीजेपी गठबंधन की सरकार बनने जा रही है. प्रचंड बहुमत के साथ वापसी के संकेत हैं. गठबंधन को 38 से 48 सीटें मिल सकती हैं, कांग्रेस को 1 से 2, एनपीएफ को 3 से 8. नगालैंड में मुख्यमंत्री नेफ्यू रिओ की लोकप्रियता भी बरकरार है. एग्जिट पोल के नतीजे बताते हैं कि 25 फीसदी लोगों की पहली पसंद वर्तमान सीएम नेफ्यू रिओ हैं. दूसरे दल के किसी सीएम चेहरे को 10 फीसदी वोट भी मिलते नहीं दिख रहे हैं.