
मध्य प्रदेश की सियासत में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का पर्याय थे शिवराज सिंह चौहान. यहां 'थे' इसलिए कहा जा रहा है कि क्योंकि अब नहीं रहे. मध्य प्रदेश के चुनाव में प्रचंड जीत के साथ बीजेपी ने सत्ता में वापसी तो कर ली लेकिन सूबे की सत्ता के शीर्ष से शिवराज की विदाई हो गई. सीएम पोस्ट पर मोहन यादव की ताजपोशी को करीब एक महीने होने को आए हैं लेकिन शिवराज हैं कि अपने अंदाज, अपने बयान से सूबे की सियासत का फोकस पॉइंट बने हुए हैं. अब शिवराज का एक बयान आया है जिसमें कुर्सी जाने के बाद बदली परिस्थितियों का दर्द है.
पूर्व सीएम शिवराज ने एक कार्यक्रम में 'हैं' और 'थे' के बीच का अंतर बताया और साथ ही पीएम मोदी की तारीफ कर बयान को बैलेंस करने की कोशिश भी की. शिवराज ने कहा कि राजनीति में बहुत अच्छे कार्यकर्ता और मोदीजी जैसे नेता हैं जो देश के लिए जीते हैं लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो रंग देखते हैं. मुख्यमंत्री हो तो चरण कमल के समान हैं और नहीं हो तो होर्डिंग से फोटो भी ऐसे गायब हो जाती है जैसे गधे के सिर से सींग. उन्होंने यह भी कहा कि लगातार काम में लगा हूं और मुझे एक मिनट की भी फुरसत नहीं है. अच्छा है कि कि राजनीति से हटकर काम करने का मौका मिल रहा है.
शिवराज सिंह चौहान जब से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी से उतरे हैं, उनका अलग ही अंदाज नजर आ रहा है. शिवराज मध्य प्रदेश के अलग-अलग इलाकों के ताबड़तोड़ दौरे कर रहे हैं. शिवराज कभी लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी को 29 सीटों की माला पहनाने की बात करते हैं तो कभी अपनी ही सरकार के फैसलों के खिलाफ लाइन लेते भी नजर आ रहे हैं. कभी शिवराज का जोश हाई नजर आता है तो कभी निराशा भी छलकती है. कभी वह अपने बयानों से बीजेपी के समर्पित सिपाही नजर आते हैं तो कभी दूरी भी झलकती है. ऐसे में सवाल यह भी उठ रहे हैं कि सीएम की कुर्सी से उतरने के बाद मामा ने कौन सी राह पकड़ ली है?

सुपर सीएम की इमेज चाहते हैं शिवराज?
शिवराज साल 2005 से ही मध्य प्रदेश में बीजेपी का पर्याय रहे हैं. अब वह सीएम की कुर्सी पर भले ही नहीं रहे लेकिन उनके एक्शन से यह सवाल भी उठने लगे हैं कि क्या वह सुपर सीएम वाली इमेज चाहते हैं? ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि लाडली बहना योजना के भविष्य को लेकर सस्पेंस हो या लाउडस्पीकर की तेज आवाज पर रोक लगाने का मोहन यादव सरकार का फैसला, शिवराज के बयान ही कुछ ऐसे रहे हैं.

दो दिन पहले सीहोर जिले के भेरुंदा पहुंचे शिवराज ने लाडली बहनों को संबोधित करते हुए कहा कि चिंता मत करना, 10 तारीख को खाते में पैसा आएगा. उन्होंने यह भी कहा कि बहन-भाई का रिश्ता विश्वास का होता है और इस विश्वास की डोर कभी टूटेगी नहीं. शिवराज का ये बयान लाडली बहना योजना के भविष्य को लेकर संदेह के बादल दूर करने और बहनों को यह संदेश देने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है कि वह भले ही सीएम न हों लेकिन चलेगी उनकी भी. वह लगे हाथ यह संदेश देना भी नहीं भूले कि नेता नहीं परिवार की तरह सबका खयाल रखेंगे और सबकी सेवा का अभियान निरंतर जारी रहेगा.
लाउड स्पीकर पर अंकुश के खिलाफ खड़े हो गए
मोहन यादव की कैबिनेट ने पहला आदेश जारी किया लाउड स्पीकर की तेज आवाज पर अंकुश को लेकर. मोहन सरकार के आदेश में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का जिक्र करते हुए यह साफ कहा गया कि धार्मिक और सार्वजनिक स्थलों पर निर्धारित डेसिबल के भीतर ही लाउड स्पीकर बजाना होगा. भेरुंदा में ही बैंड संचालकों ने सरकार के इस आदेश को लेकर शिवराज को ज्ञापन सौंपा. शिवराज ने बैंड संचालकों को आश्वस्त करते हुए कहा कि आप बैंड बजाएं, ढोल बजाएं, ताशे बजाएं. कोई रोकेगा तो मैं देख लूंगा. शिवराज के बयान में 'मैं देख लूंगा' के मायने क्या हैं, ये मामा ही जानें लेकिन इसे मोहन सरकार को आंख दिखाने की तरह देखा जा रहा है.

तल्खी के साथ शिवराज दिखा रहे निष्ठा भी
शिवराज के बयानों में पार्टी की प्रचंड जीत के बावजूद सीएम पद से विदाई का दर्द है तो तल्खी भी. उन्होंने पिछले दिनों यह कहा था कि कई बार राजतिलक होते-होते वनवास भी हो जाता है. वनवास और अब पोस्टर से फोटो गायब होने का बयान, दोनों ही सीएम नहीं बन पाने की कसक जाहिर कर रहे हैं. शिवराज साथ ही यह भी कह रहे कि पार्टी जो भी जिम्मेदारी देगी, उसे पूरी निष्ठा से निभाऊंगा. उनका दर्द सामने आ रहा है तो साथ ही पार्टी के प्रति निष्ठा भी.
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उमा भारती की राह पर तो नहीं मामा?
मध्य प्रदेश में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली 10 साल की कांग्रेस सरकार को सत्ता से बेदखल करने का श्रेय बीजेपी की फायरब्रांड नेता उमा भारती को दिया जाता है. उमा को सीएम कैंडिडेट घोषित कर बीजेपी ने 2003 का विधानसभा चुनाव लड़ा था और सरकार बनाई थी. पार्टी तब से 2018 तक लगातार सूबे की सत्ता में रही लेकिन उमा सीएम की कुर्सी पर पांच साल भी काबिज नहीं रह पाईं. सीएम की कुर्सी गंवाने के बाद उमा ने बागी तेवर अख्तियार कर लिए, अलग पार्टी भी बनाई लेकिन लौटकर बीजेपी में ही आईं. उमा पार्टी के नेताओं से नाराजगी खुलकर जाहिर करती रहती हैं लेकिन साथ ही पीएम मोदी और पार्टी नेतृत्व की उतनी ही तारीफ भी करती हैं.
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शिवराज सिंह चौहान भी उमा भारती के 'पार्टी नेतृत्व से बैर नहीं, स्थानीय नेताओं की खैर नहीं' वाले फॉर्मूले पर ही बढ़ते नजर आ रहे हैं. शिवराज केंद्रीय नेतृत्व के हर फैसले को पार्टी के निष्ठावान सिपाही की तरह स्वीकार करने की बात कर रहे हैं लेकिन मध्य प्रदेश के नेताओं को लेकर अपना दर्द जाहिर करने से भी नहीं चूक रहे.