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चरण सिंह-वीपी सिंह से BJP तक... सत्यपाल मलिक किसी सियासी दायरे में सिमटकर नहीं रहे!

पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का 79 वर्ष की आयु में मंगलवार को निधन हो गया. सत्यपाल मलिक ने छात्र जीवन में राजनीति में कदम रखा और लगभग सभी दलों में रहे. उन्होंने लोकदल से लेकर जनता दल और समाजवादी पार्टी होते हुए बीजेपी का दामन थामा, लेकिन किसी दल के दायरे में सिमटकर नहीं रह सके.

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पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का 79 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है (Photo-ITG)
पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का 79 वर्ष की उम्र में निधन हो गया है (Photo-ITG)

पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक का मंगलवार को 79 वर्ष की आयु में निधन हो गया है. वो लंबे समय से बीमार चल रहे थे और दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में इलाज चल रहा है, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली.  सत्यपाल मलिक जम्मू-कश्मीर, गोवा और मेघालय जैसे राज्यों में गवर्नर के रूप में अपनी सेवाएं दी.   

सत्यपाल मलिक के जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल रहते हुए धारा 370 को समाप्त करने का फैसला मोदी सरकार ने किया था. यह फैसला 5 अगस्त 2019 के दिन लिया गया था, संयोग से सत्यपाल मलिक का निधन भी पांच अगस्त 2025 को हुआ. 

जाट समाज से आने वाले सत्यापल मलिक ने राज्यपाल का पद छोड़ने के बाद से मोदी सरकार के खिलाफ बगावती तेवर अपना लिया था. बीजेपी और मोदी सरकार पर हमलावर थे. हालांकि, उनका यह तेवर शुरू से ही रहा है, जिसके चलते खरी-खरी बातें कहा करते थे. इसी अंदाज के चलते और राजनीतिक तेवर के चलते सत्यपाल मलिक की सियासी दोस्ती किसी के साथ लंबी नहीं चल सकी. सत्यपाल मलिक देश की हर विचारधारा के हिस्सेदार रहे हैं. लोकदल, समाजवादी, कांग्रेस, जनता दल और बीजेपी में रहे. 

सत्यपाल मलिक ने बचपन में पिता को खोया

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सत्यपाल मलिक का परिवार हरियाणा से था, लेकिन उनकी पैदाइश पश्चिमी यूपी की बागपत में हुई है. बागपत के गांव हिसावदा में 24 जुलाई 1946 को सत्यपाल का जन्मे  हुआ था. उनके पिता बुद्ध सिंह उत्तर प्रदेश के राजस्व विभाग में नायाब तहसीलदार थे. सत्‍यपाल मलिक जब दो वर्ष के थे तभी पिता बुद्ध सिंह का निधन हो गया.

पिता के देहांत के बाद सत्यपाल मलिक की मां उन्हें लेकर अपने मायके हरियाणा के चरखी दादरी चली गई थीं. ननिहाल में ही इनकी कक्षा चार तक की शिक्षा हुई थी और फिर बाद में यूपी के बागपत लौट आए और ढिकौली गांव के इंटर कालेज से माध्‍यमिक शिक्षा पूरी कर आगे की पढ़ाई के लिए वो मेरठ कॉलेज पहुंचे.

छात्र राजनीति से भरी सत्यापाल ने सियासी उड़ान

मेरठ में पढ़ते हुए उन्होंने सियासत में कदम रखा. लोहिया के समाजवाद से प्रभावित होकर बतौर छात्र नेता के रूप में राजनीतिक सफर शुरू करने वाले सत्यपाल मलिक1968 में मेरठ कॉलेज के छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए. इसके बाद चौधरी चरण के करीब आए, क्योंकि सत्यपाल मलिक और चरण सिंह एक ही जिले से आते थे. 

कांग्रेस विरोध की बुनियाद पर यूपी में नई ताकत बनकर उभर रहे चौधरी चरण सिंह की उंगली पकड़कर सत्यपाल मलिक आगे बढ़े. तेज तर्रार और बिना लाग लपेट के अपनी बात कहने वाले सत्‍यपाल मलिक ने पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह के सानिध्य में आकर अपनी सियासत को नई ऊंचाई दी. 

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1974 में भारतीय क्रांति दल के टिकट पर युवा सत्यपाल मलिक 28 साल की उम्र में विधायक बने और फिर मुड़कर पीछे नहीं देखा. 1977 में इमरजेंसी का विरोध कर सत्यपाल मलिक जेल में रहे, जिससे उन्हें एक युवा नेता के तौर पर पहचान मिली. 

सत्यपाल मलिक समय के साथ बदलते रहे दल

सत्यपाल मलिक जैसे-जैसे राजनीति में आगे बढ़े, वैसे-वैसे उनके राजनीतिक विचारधारा भी बदलती गई. चौधरी चरण सिंह की क्रांति दल से अपनी राजनीति सफर शुरू करने वाले सत्यपाल मलिक 1980 से 1985 तक लोकदल से राज्यसभा सांसद रहे. उम्र और तजुर्बे से परिपक्व होते वक्त सत्यपाल को जब यह अहसास हुआ कि चौधरी चरण सिंह के साथ उन्हें पश्चिम यूपी की राजनीतिक तक ही सीमित रखेगा, तो उनकी विचारधारा बदल गई. 

कांग्रेस का विरोध करते-करते कांग्रेस में ही शामिल हो गए, क्योंकि लोकदल कमजोर होने लगी थी और कांग्रेस पूरी ताकत के साथ उभर आई थी. इंदिरा गांधी हत्या के बाद कांग्रेस का हाथ थाम लिया. 1985 से 1989 तक कांग्रेस से राज्यसभा सांसद रहे. इसके बाद अगले ही कुछ सालों के भीतर कांग्रेस के अंदर से ही कांग्रेस के खिलाफ एक नारा गूंजने लगा था, 'राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है.'

बोफोर्स के मुद्दे को लेकर सत्यपाल मलिक राज्यसभा सांसद के पद से त्यागपत्र देकर पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह के जनता दल में शामिल हो गए. जनता दल से सांसद बने और वीपी सरकार में मंत्री भी बने. वीपी सिंह के साथ भी लंबी सियासी पारी नहीं खेल सके और लोकदल के दौर से साथी रहे मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. 1996 में जाट बहुल अलीगढ़ संसदीय सीट से सपा प्रत्याशी के रूप में लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके. 

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सत्यपाल मलिक ने जब थामा था बीजेपी का दामन 

सत्यपाल मलिक 1996 का लोकसभा चुनाव हार गए थे, लेकिन उस समय बीजेपी की सियासत परवान चढ़ने लगी थी. ऐसे में सत्यपाल मलिक ने  सपा के साथ लंबी सियासी पारी नहीं खेल सके और बीजेपी का उन्होंने दामन थाम लिया. 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने अपने सियासी गुरु चौधरी चरण सिंह के ही पुत्र चौधरी अजित सिंह के खिलाफ बागपत सीट से चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके. 

बीजेपी ने उन्हें अपने साथ बनाए रखने के लिए संगठन में जगह दी. 2012-13 में बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त किए गए थे. 2014 में मोदी सरकार आने के बाद सत्यपाल मलिक के सियासी दिन उभरे और उन्होंने  2017 में पहले बिहार का राज्यपाल बनाया गया और फिर वो जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बने. सत्यपाल मलिक 23 अगस्त 2018 से 30 अक्टूबर 2019 में जम्मू और कश्मीर के राज्यपाल रहे.

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को समाप्त करने में रोल

जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल रहते हुए उन्होंने जम्मू और कश्मीर में से अनुच्छेद 370 व 35 ए को हटाने में अहम भूमिका निभाई थी, क्योंकि राष्ट्रपति शासन अगर नहीं लगाते तो मोदी सरकार के लिए धारा 370 को हटाना आसान नहीं था. 

जम्मू-कश्मीर से धारा 370 समाप्त करने और केंद्र शासित राज्य बनाए जाने के बाद सत्यपाल मलिक तीन नवंबर 2019 में गोवा के राज्यपाल बन, लेकिन बहुत दिन नहीं रह सके. इसके बाद 18 अगस्त 2020 से सत्यपाल मलिक मेघालय के राज्यपाल नियुक्त कर दिया था. मेघालय से राज्यपाल पद से हटने के बाद ही खुलकर  बीजेपी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. 

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किसान आंदोलने के समर्थन में खड़े होने से लेकर गोवा में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सवाल खड़े करने और जम्मू-कश्मीर में डील कराने में अंबानी और आरएसएस नेता के नाम लेकर मोदी सरकार को घेरना शुरू कर दिया था. इसके चलते लगातार सुर्खियों में बने रहे और उम्र के आखिरी पढ़ाव पर भ्रष्टाचार के मामले में केंद्रीय जांच एजेंसी का सामना भी करना पड़ा. 
 

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