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रेवड़ी कल्चर... क्यों बिहार के लिए ज्यादा चिंताजनक?

बिहार का राजकोषीय घाटा पहले से ही खतरनाक स्तर पर है. यह 3 प्रतिशत के बजट अनुमान से बढ़कर 6 फीसदी तक पहुंच गया है. चुनाव में एनडीए द्वारा किए गए मुफ्त वादों को पूरा करने में इसके चिंताजनक स्तर तक बढ़ने का अनुमान है.

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Bihar Election 2025 NDA Freebies
Bihar Election 2025 NDA Freebies

बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) की प्रचंड जीत ने एक बार फिर चुनावों में मुफ्त सुविधाओं जिन्हें अंग्रेजी में फ्रीबीज (Freebies) कहते हैं, उनकी भूमिका को चर्चा के केंद्र में ला दिया है. बिहार चुनाव से ठीक पहले, नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना की शुरुआत की, जिसमें बिहार की महिलाओं को 'आत्मनिर्भर' बनाने, 'स्व-रोजगार' और आजीविका के अवसरों के माध्यम से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए 10,000 रुपये डीबीटी के माध्यम से उनके बैंक खातों में ट्रांसफर करने का वादा किया गया था. 

बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने इस योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों कराने का फैसला किया. पीएम मोदी ने योजना के पहले चरण में 75 लाख जीविका दीदीयों (स्वरोजगार के विभिन्न साधनों से जुड़ी महिलाएं) के बैंक खातों में 10,000 रुपये ट्रांसफर किए, यानी कुल 7,500 करोड़ रुपये. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने योजना के अन्य चरणों को आगे बढ़ाया और 21 लाख महिलाओं को 10,000 रुपये ट्रांसफर किए, यानी कुल 2,100 करोड़ रुपये. कुल मिलाकर, चुनाव से ठीक पहले एनडीए सरकार ने बिहार की 96 लाख जीविका दीदीयों के बैंक खातों में 9,600 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए.

बिहार चुनाव के दोनों ही चरणों में इस कैश ट्रांसफर का असर साफ दिखाई दिया और बड़ी संख्या में महिला मतदाता वोटिंग के लिए घरों से बाहर निकलीं. लेकिन क्या यह राजनीतिक दलों और नागरिकों, दोनों के लिए फायदेमंद साबित हुआ है? कम से कम हाल के चुनाव तो यही दर्शाते हैं. हाल के वर्षों में लगभग सभी चुनावों में राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सुविधाओं की रणनीति अपनाई गई. जो दल सत्ता में थे, उन्होंने महिला मतदाताओं को टारगेट करते हुए डायरेक्ट कैश ट्रांसफर की कोई योजना शुरू की और चुनाव से ठीक पहले कुछ किश्तें उनके बैंक खातों में भेज भी दी गईं.

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Bihar Freebies

लेकिन बिहार को कल्याणकारी योजनाओं के लिए कहीं ज्यादा कीमत चुकानी पड़ सकती है क्योंकि राज्य की वित्तीय स्थिति पहले से ही बहुत अच्छी नहीं है. हाल के रुझान बताते हैं कि चुनाव-पूर्व वर्ष और चुनाव के बाद के वर्ष के बीच राज्यों का राजकोषीय घाटा काफी बढ़ गया है. छत्तीसगढ़ का राजकोषीय घाटा एक प्रतिशत से बढ़कर 3.9 प्रतिशत, कर्नाटक का 1.7 प्रतिशत से बढ़कर 3.1 प्रतिशत और मध्य प्रदेश का 3.3 प्रतिशत से बढ़कर 4.7 प्रतिशत हो गया. एमके रिसर्च के अनुसार, कुल मिलाकर 10 राज्यों का औसत राजकोषीय घाटा 2.5 प्रतिशत से बढ़कर 3.5 प्रतिशत हो गया. 

यह स्पष्ट है कि मुफ्त सुविधाओं ने राज्यों की अर्थव्यवस्थाओं पर राजकोषीय घाटे का बोझ बढ़ा दिया है, लेकिन बिहार का मामला और भी गंभीर है. बिहार का राजकोषीय घाटा पहले से ही खतरनाक स्तर पर है. 2024-25 में बिहार में तीन प्रतिशत राजकोषीय घाटे के बजट अनुमान के मुकाबले, संशोधित राजकोषीय घाटा बढ़कर जीएसडीपी के 9.2 प्रतिशत तक पहुंच गया. अंतिम अनुमानों में यह कुछ हद तक घटकर लगभग 6 प्रतिशत रह गया. इस स्तर पर, मुफ्त सुविधाओं की अतिरिक्त लागत, जो वार्षिक पूंजीगत व्यय बजट से भी अधिक है, राज्य की वित्तीय स्थिति और उसकी विकास क्षमता पर गहरा असर डालने वाली है.

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Bihar Freebies 2nd

वित्त वर्ष 2026 में बिहार में मुफ्त सुविधाओं की अनुमानित लागत 41,200 करोड़ रुपये है, जबकि पूंजीगत व्यय बजट 40,532 करोड़ रुपये है. राज्यों के लिए 3 प्रतिशत राजकोषीय घाटे के लक्ष्य की अधिकतम सीमा अब न्यूनतम लगती है, क्योंकि मुफ्त सुविधाओं ने राज्य सरकारों के बजट में अपना स्थान बना लिया है. एमके रिसर्च की रिपोर्ट में कहा गया है, 'बिहार में मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत वितरित की गई धन राशि का चुनाव परिणामों पर जो असर हुआ, उसे देखते हुए इस स्कीम को अन्य राज्यों द्वारा थोड़े बहुत संशोधन के साथ अपनाए जाने की संभावना बढ़ गई है. अगले वर्ष तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल में चुनाव होने हैं. इस लिहाज से भारत के अधिकांश राज्यों में राजकोषीय घाटे के और नीचे की ओर जाने की यह दौड़ जारी रहेगी.'

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