वक्फ संशोधन बिल अब कानून बन गया है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस विधेयक को मंजूरी दे दी है. वहीं, इसके विरोध में समस्त केरल जमीयतुल उलेमा ने सुप्रीम कोर्ट मे याचिका दाखिल की है. वक्फ बिल के कानून बनने के बाद ये पहली याचिका है. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि वक्फ संशोधन अधिनियम का उद्देश्य वक्फ संपत्तियों के बड़े हिस्से को सरकारी संपत्ति में बदलना है.
याचिका में इस कानून को अनुच्छेद 26 के तहत संरक्षित मौलिक अधिकार का उल्लंघन बताते हुए कहा गया है कि इस कानून के लागू होने से मुस्लिम समुदाय वक्फ संपत्तियों से वंचित हो जाएगा. मुस्लिम अपनी पसंद के अनुसार वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन करने का अपना अधिकार खो देंगे.
वहीं, जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने भी वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की.
बता दें कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में अब तक 6 याचिकाएं दाखिल हो चुकी हैं. पहली याचिका कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने दाखिल की थी, जबकि दूसरी याचिका AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी, तीसरी याचिका AAP विधायक अमानतुल्लाह खान, चौथी याचिका एसोसिएशन फ़ॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, पांचवीं याचिका समस्त केरल जमीयतुल उलेमा और छठी याचिका मौलाना अरशद मदनी ने दाखिल की है.
वक्फ संशोधन विधेयक पर अब राष्ट्रपति की मुहर लग गई है, इसके साथ ही अब ये कानून बन गया है. लिहाजा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिकाओं में जिस विधेयक को चुनौती दी गई थी. उन्हें तकनीकी तौर पर अपनी याचिका में सुधार कर 'वक्फ संशोधन कानून' शब्द का प्रयोग करना होगा, क्योंकि राष्ट्रपति के दस्तखत के साथ ही संसद के दोनों सदनों से पारित विधेयक कानून बन गया. याचिका दायर करते समय तक इसे राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली थी, लिहाजा ये तकनीकी मजबूरी वाली खामी थी.