डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ वार के बीच चीन ने भारत को एक डिस्काउंट टैरिफ दिया है. चीन में इलेक्ट्रॉनिक्स सामान का उत्पादन करने वाली कंपनियों ने कहा है कि वो स्मार्ट फोन, वॉशिंग मशीन, टीवी, फ्रीज और एसी जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स सामान का आयात करने पर भारत की कंपनियों को 5 प्रतिशत डिस्काउंट देने की बात कही है.
बहुत सारे लोग इसे भारत पर चीन की मेहरबानी बता रहे हैं लेकिन हकीकत में ये चीन की एक मजबूरी है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दुनिया के सभी देशों पर जो बेसलाइन और रेसिप्रोकल टैरिफ लगाया था, उस पर उन्होंने 90 दिनों के लिए रोक लगा दी है.
इन देशों में हमारा देश भारत भी शामिल है, जिसे अब अगले 90 दिनों तक अमेरिका को निर्यात किए जाने वाले सामान पर 26 परसेंट का रेसिप्रोकल टैरिफ नहीं देना होगा. लेकिन चीन पर लगाए गए 125 प्रतिशत रेसिप्रोकल टैरिफ को राष्ट्रपति ट्रंप ने वापस नहीं लिया है.
अमेरिका के कदम से हिली चीन की इंडस्ट्री
अमेरिका ने कहा है कि अगर चीन अपना सामान उसके बाज़ार में बेचना चाहता है तो उसे 90 दिन की कोई छूट नहीं मिलेगी और उसे रेसिप्रोकल टैरिफ किसी भी हालत में देना ही होगा. दूसरी तरफ चीन ने भी ये ऐलान किया है कि अगर अमेरिका की कंपनियां चीन में अपना सामान बेचना हैं तो उन्हें 151 प्रतिशत का रेसिप्रोकल टैरिफ देना होगा. इस लड़ाई ने चीन की इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्री को पूरी तरह से हिलाकर रख दिया है और उसका कारण ये है कि चीन जो इलेक्ट्रॉनिक्स सामान अमेरिका को निर्यात करता था, अब उसमें रेसिप्रोकल टैरिफ के कारण भारी कमी आ सकती है. और ये सामान बहुत महंगा हो सकता है.
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उदाहरण के लिए, 125 प्रतिशत के रेसिप्रोकल टैरिफ के कारण 1 लाख रुपये का मोबाइल फोन अमेरिका के बाज़ार में 2 लाख 25 हज़ार रुपये का हो जाएगा. 50 हज़ार रुपये का टीवी 1 लाख 12 हज़ार 500 रुपये का हो जाएगा और डेढ़ लाख रुपये का फ्रीज 3 लाख 37 हज़ार 500 रुपये हो जाएगा. यानी इस रेसिप्रोकल टैरिफ से इन सामान की कीमतें इतनी बढ़ जाएंगी कि अमेरिका के लोग इन्हें खरीदना बंद कर देंगे.
और अगर ऐसा हुआ तो चीन की इलेक्टॉनिक इंडस्ट्री को नुकसान होगा, उसकी उत्पादन क्षमता कम हो जाएगी, कई फैक्ट्रियां बंद हो जाएंगी, लाखों लोग बेरोज़गार हो जाएंगे और चीन की अर्थव्यवस्था का दिवाला निकल जाएगा. इस नुकसान को आप इन आंकड़ों से भी समझ सकते हैं. पिछले साल चीन ने अमेरिका को 38 लाख 25 हज़ार करोड़ रुपये का सामान निर्यात किया था, जिनमें सबसे ज्यादा 28.5 प्रतिशत हिस्सेदारी इलेक्ट्रॉनिक्स सामान की थी. चीन ने लगभग 11 लाख करोड़ रुपये के इलेक्ट्रॉनिक्स सामान अमेरिका के बाज़ार में बेचे थे लेकिन अब टैरिफ के कारण चीन ऐसा नहीं कर पाएगा और उसे ज़बरदस्त नुकसान होगा.
चीन ने मांगी भारत से मदद
ये सब ना हो इसी से बचने के लिए चीन ने भारत से मदद मांगी है और भारत की कंपनियों को इलेक्ट्रॉनिक्स सामान और सेमीकंडक्टर चिप्स आयात करने पर 5 प्रतिशत डिस्काउंट देने की बात कही है. चीन इस ऑफर में अपने लिए दो फायदे देख रहा है.
पहला- वो ये सोच रहा है कि अगर अमेरिका की जगह उसने भारत को अपना सामान निर्यात कर दिया तो दुनिया के इलेक्ट्रॉनिक सेक्टर में उसकी हिस्सेदारी कम नहीं होगी और ये 35 प्रतिशत के आसपास ही रहेगी. उसकी कंपनियों को भी अपनी फैक्ट्रियां बंद नहीं करनी पड़ेगी और लोग भी बेरोज़गार नहीं होंगे.
दूसरा- इससे ये फायदा भी हो सकता है कि भारत की कम्पनियां चीन से डिस्काउंट पर ये सामान खरीद कर अमेरिका को निर्यात करेंगी और क्योंकि भारत पर अभी 90 दिनों के लिए टैरिफ लागू नहीं है इसलिए चीन का सामान भारत के रास्ते अमेरिका के बाजार में बिकता रहेगा. इससे आप ये भी समझ सकते हैं कि चीन असल में कितना चालाक है.
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क्या करेगा भारत?
अब बड़ा सवाल ये है कि भारत को चीन का ये ऑफर स्वीकार करना चाहिए या इस ऑफर को रिजेक्ट कर देना चाहिए? पिछले कुछ वर्षों में भारत ने चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने की कई कोशिश की हैं और इसलिए अगर भारत की कंपनियां चीन के इस ऑफर को स्वीकार कर लेती हैं तो इससे भारत की आत्मनिर्भर बनने की कोशिशों को झटका लगेगा.
आज भी भारत अपना सबसे ज्यादा 14 परसेंट आयात चीन से ही करता है और अगर हमने इस ऑफर को ले लिया तो ये आयात और भी बढ़ जाएगा. दूसरा- चीन भरोसा करने लायक देश नहीं है. आज भारत के प्रति चीन के रूख में इतना बदलाव इसलिए आया है क्योंकि अमेरिका के बाज़ार में उसकी एंट्री बहुत मुश्किल हो गई है. आज चीन चाहता है कि भारत भी उसके साथ मिलकर अमेरिका के Reciprocal Tariff का विरोध करे और इस लड़ाई में उसका साथ दे. लेकिन भारत ऐसा नहीं करेगा.
भारत अपने हित देखेगा और अभी हमारी सरकार ने साफ साफ कहा है कि अगर भारत की कोई भी कंपनी ये सोच रही है कि वो डिस्काउंट में चीन से इलेक्ट्रॉनिक सामान खरीदकर अमेरिका में एक्सपोर्ट कर देगी तो इसे स्वीकार नहीं किया जाएगा.
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हमारे देश में एक कहावत है कि अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे और अमेरिका के Reciprocal Tariff के बाद ये कहावत चीन पर बिल्कुल फिट बैठ रही है. चीन अब भारत की मदद चाहता है लेकिन भारत ऐसा नहीं करेगा बल्कि भारत ने इसकी जगह अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ाने का फैसला किया है और सरकार इसके लिए एक विशेष पैकेज भी ला सकती है.