उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों के उदासीन और लेटलतीफ रवैए से नाराज होकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों के प्रति राज्य सरकार के मन में थोड़ा भी सम्मान नहीं है, ऐसा लगता है क्योंकि आजीवन कारावास की सजा काट रहे कुछ दोषियों की सजा में छूट के संबंध में अदालत के निर्देश के अनुपालन में राज्य सरकार लगभग एक साल से उपेक्षा बरत रही है. आदेश पर कोई एक्शन नहीं लिया जा रहा है.
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने निर्देश दिया कि यदि यूपी के संबंधित अधिकारी याचिकाकर्ताओं की समयपूर्व रिहाई के सभी लंबित आवेदनों पर महीने भर में फैसला नहीं करेंगे तो राज्य के प्रमुख गृह सचिव को 29 अगस्त को अदालत में प्रत्यक्ष तौर पर पेश होना होगा. तब उन्हें अदालत को बताना होगा कि आखिर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन एक साल तक क्यों नहीं किया गया.
14 महीने पहले दिए आदेश का नहीं हुआ पालन
अदालत की नाराजगी इस पर थी कि उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों को सुप्रीम कोर्ट ने 16 मई, 2022 को आदेश दिया था कि कई उम्र कैदियों की समय पूर्व रिहाई के आवेदनों पर तीन महीने के भीतर अंतिम निर्णय लें, लेकिन इस आदेश को साल भर से भी ज्यादा यानी 14 महीने हो गए. इसके बावजूद कई कैदियों की समय से पहले रिहाई की याचिकाओं पर अभी तक फैसला नहीं किया गया है.
पीठ ने मई 2022 में दिए अपने पिछले आदेश में इस तथ्य पर जोर दिया था कि सभी याचिकाकर्ताओं ने अपनी वास्तविक सजा में 14 साल से अधिक की अवधि बिना छूट के पूरी कर ली है. वे सभी सेंट्रल जेल, बरेली में बंद हैं. प्रदेश सरकार की सजा में रियायत नीति और सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित कई निर्देशों के मुताबिक राज्य सरकार को किसी कैदी की सजा माफी याचिका उसके पात्र होने के तीन महीने के भीतर निपटारा करना ही होगा. ऐसा करने के लिए वह बाध्य है.
कई अपराधियों को रिहा करने का दिया था आदेश
पिछले साल शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने वाले 42 अपराधी कैदियों में से कई को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी माफी याचिका के आधार पर फैसला आने तक रिहा कर दिया था या बरी कर दिया था. तब हाईकोर्ट और अन्य प्राधिकरण के सामने समय से पहले रिहाई के लिए कम से कम सात ऐसे आवेदन लंबित थे.
अधिकारियों के ढिठाई भरे रवैए से नाराज जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आपके अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के प्रति जितना अनादर दिखा रहे हैं, हमें लगता है कि हमें अब कठोर कदम उठाने ही होंगे. आपके अधिकारियों के मन में कोर्ट ऑर्डर के प्रति तनिक भी सम्मान नहीं है. क्या आपके राज्य में यही हो रहा है?