सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों को पुलिस और जांच एजेंसियों द्वारा समन भेजे जाने को लेकर गंभीर चिंता जताई है. कोर्ट ने इसे कानून का उल्लंघन और न्याय व्यवस्था के प्रशासन में हस्तक्षेप करार दिया है. यह टिप्पणी एक ऐसे मामले की सुनवाई के दौरान की गई जिसमें गुजरात में एक वकील को केवल इसलिए गवाह के रूप में समन किया गया क्योंकि उन्होंने अपने मुवक्किल को एक मामले में जमानत दिलाई थी.
जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा कि ऐसे समन वकीलों की स्वतंत्रता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर सीधा हमला है. कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए अटॉर्नी जनरल, सॉलिसिटर जनरल, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष, सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) के अध्यक्षों को नोटिस जारी कर उनसे इस मामले में सहयोग मांगा है.
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बेंच ने खासतौर से कहा कि अगर सिर्फ मुवक्किल को सलाह देने पर ही वकीलों को समन किया जाने लगेगा तो इससे वकालत की स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाएगी और इसका न्याय व्यवस्था पर प्रभाव पड़ेगा. कोर्ट ने इस मुद्दे को सुलझाने की जरूरत बताई है ताकि वकील बिना डर के अपना काम कर सकें.
मामले में दो महत्वपूर्ण प्रश्न सुप्रीम कोर्ट के सामने रखे गए हैं:
सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही इस मामले में गुजरात हाईकोर्ट के उस आदेश पर भी रोक लगा दी है, जिसमें पुलिस द्वारा समन को वैध ठहराया गया था. साथ ही संबंधित वकील को आगे किसी भी प्रकार के जबरन नोटिस से सुरक्षा प्रदान की है.
जस्टिस विश्वनाथन ने कहा, "अगर इस तरह के समनों की अनुमति दी गई तो इसका वकीलों पर प्रभाव पड़ेगा और यह न्याय प्रशासन को बाधित करेगा." कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह मामला सिर्फ एक वकील का नहीं बल्कि पूरी जस्टिस सिस्टम की रीढ़ की सुरक्षा का है.
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यह मामला दो वरिष्ठ वकीलों को ईडी समन मिलने के कुछ ही दिनों बाद सामने आया है, क्योंकि उन्हें ऐसे मामलों में आरोपी मुवक्किलों को सलाह देने के लिए बुलाया गया था. वकीलों को पुलिस समन भेजे जाने के खिलाफ वकीलों के संगठनों ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. कुछ ही दिन पहले, जब एक वरिष्ठ वकील को समन भेजे जाने की खबर आई थी, तो वकीलों के संगठनों ने इस कदम की आलोचना की थी और कहा था कि यह वकील-मुवक्किल के विशेषाधिकार का उल्लंघन है.