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'ऑपरेशन सिंदूर में शामिल होना क्राइम करने की छूट नहीं देता', पत्नी की हत्या के आरोपी कमांडो को सुप्रीम कोर्ट की फटकार

यह मामला एक विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition) के तहत सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए आया था, जिसमें याचिकाकर्ता ने पुलिस के समक्ष सरेंडर से छूट देने की गुहार लगाई थी. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह तर्क स्वीकार करने से इनकार कर दिया और सरेंडर से छूट देने से इनकार कर दिया.

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सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी कमांडो की याचिका खारिज कर दी (फाइल फोटो)
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी कमांडो की याचिका खारिज कर दी (फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक ब्लैक कैट कमांडो की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उसने दहेज के लिए अपनी पत्नी की हत्या के मामले में सरेंडर करने से छूट की मांग की थी. कमांडो ने कोर्ट से अपील करते हुए कहा कि वह ऑपरेशन सिंदूर में हिस्सा ले चुका है और पिछले 20 वर्षों से राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात है.

दरअसल, यह मामला एक विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition) के तहत सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए आया था, जिसमें याचिकाकर्ता ने पुलिस के समक्ष सरेंडर से छूट देने की गुहार लगाई थी. याचिकाकर्ता की ओर से वकील ने कहा, "मैं ऑपरेशन सिंदूर का प्रतिभागी हूं. पिछले 20 वर्षों से ब्लैक कैट कमांडो हूं और राष्ट्रीय राइफल्स में तैनात हूं."

ब्लैक कैट कमांडो, आमतौर पर नेशनल सिक्योरिटी गार्ड (NSG) के सदस्यों को कहा जाता है, जो भारत की शीर्ष आतंकवाद-रोधी बल है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह तर्क स्वीकार करने से इनकार कर दिया और सरेंडर से छूट देने से इनकार कर दिया. 

कोर्ट की सख्त टिप्पणी

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां ने तीखी टिप्पणी करते हुए कहा, “सिर्फ इसलिए कि आप कमांडो हैं, इसका मतलब यह नहीं कि आपको घर में अपराध करने की छूट मिल जाए. यह दर्शाता है कि आप शारीरिक रूप से कितने सक्षम हैं और अकेले ही आपने अपनी पत्नी की हत्या की होगी, गला घोंटकर मारा होगा.”

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न्यायमूर्ति भुइयां ने इस हत्या को बेहद अमानवीय और निर्मम बताते हुए स्पष्ट किया कि यह मामला किसी भी प्रकार की छूट या विशेष राहत के लायक नहीं है. उन्होंने यह भी जोड़ा कि हाईकोर्ट ने पहले ही इस मामले में राहत देने से इनकार कर दिया था.

कमांडो के खिलाफ दहेज के लिए हत्या का मामला है दर्ज

बता दें कि याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 304बी के तहत मामला दर्ज है, जो दहेज मृत्यु से संबंधित है. आरोप है कि उसने दहेज के रूप में मोटरसाइकिल की मांग की थी. उसके वकील ने दलील दी कि इस आरोप का समर्थन केवल दो गवाह कर रहे हैं, जो मृतका के निकट संबंधी हैं और उनकी गवाही आपस में विरोधाभासी है.

इसके बावजूद, सुप्रीम कोर्ट ने कोई राहत नहीं दी और आत्मसमर्पण से छूट देने का आग्रह सिरे से खारिज कर दिया. कोर्ट ने याचिका पर अभियोजन पक्ष से जवाब मांगते हुए छह सप्ताह में नोटिस लौटाने का निर्देश दिया. हालांकि, जब याचिकाकर्ता के वकील ने सरेंडर करने के लिए कुछ समय की मांग की, तो कोर्ट ने उन्हें दो हफ्ते का समय दे दिया.

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