सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने फैसले में कहा कि जजों के लिए भी सीखने की प्रक्रिया हमेशा जारी रहती है. कोर्ट ने यह स्वीकार किया कि हाईकोर्ट के जज के पद पर रहने के दौरान एक जज ने अलग रुख अपनाया था.
बॉम्बे हाईकोर्ट का जज रहते हुए जस्टिस अभय ओका ने एक फैसला सुनाया था, जो बाद में गलत पाया गया था. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि घरेलू हिंसा के खिलाफ कानून महिलाओं को न्याय देने के लिए बनाया गया है. ऐसे में अगर धारा 482 के तहत अगर याचिका खारिज की जाती है तो हाईकोर्ट को इस पर गहनता से विचार करना चाहिए.
जज होने के नाते हम अपनी गलतियों को दुरुस्त करने के लिए कर्तव्यबद्ध हैं. यहां तक कि जजों के लिए भी सीखने की प्रक्रिया लगातार चलती है.